पॉक्सो एक्ट (POCSO Act)

पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) का पूर्ण रूप "प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट, 2012" (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) है। यह कानून भारत में बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से संबंधित मामलों को रोकना और पीड़ितों को न्याय दिलाना है।


पॉक्सो एक्ट (POCSO Act)


इतिहास और आवश्यकता

भारत में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की बढ़ती घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, 2012 में यह कानून पारित किया गया। इससे पहले, बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने के लिए कोई विशेष कानून नहीं था, और ऐसे मामलों की सुनवाई सामान्य कानूनी धाराओं के अंतर्गत की जाती थी। बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, पॉक्सो एक्ट विशेष रूप से बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तैयार किया गया।


परिभाषा और प्रावधान

पॉक्सो एक्ट में 18 साल से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को "बच्चा" या "नाबालिग" के रूप में परिभाषित किया गया है। इस कानून के तहत यौन अपराधों की विस्तृत परिभाषा दी गई है, जिसमें यौन शोषण, यौन उत्पीड़न, यौन शोषण से जुड़ी सामग्री का निर्माण, भंडारण और प्रसारण शामिल है।


पॉक्सो एक्ट के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:


यौन उत्पीड़न (Sexual Assault): किसी बच्चे के साथ यौन शोषण, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, इसे अपराध माना गया है।

गंभीर यौन उत्पीड़न (Aggravated Sexual Assault): अगर कोई व्यक्ति पुलिस, सेना, या अन्य सरकारी संस्थानों से जुड़ा हो और उसने बच्चे का शोषण किया हो, तो इसे गंभीर अपराध माना जाता है।

यौन शोषण (Sexual Harassment): बच्चों को अनुचित तरीके से छूने या यौन सामग्री दिखाने को अपराध की श्रेणी में रखा गया है।

चाइल्ड पोर्नोग्राफी (Child Pornography): बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री का निर्माण, भंडारण या प्रसारण करना अपराध है।

प्रक्रियात्मक सुरक्षा (Procedural Safeguards): पॉक्सो एक्ट के तहत पीड़ित बच्चों की गोपनीयता को बनाए रखना अनिवार्य है, और उनकी पहचान को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।

पॉक्सो एक्ट की विशेषताएँ


फास्ट ट्रैक कोर्ट: पॉक्सो एक्ट के तहत मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का प्रावधान किया गया है। इसका उद्देश्य है कि बच्चों को शीघ्र न्याय मिले।

बच्चों के अधिकारों की रक्षा: यह एक्ट सुनिश्चित करता है कि पीड़ित बच्चे की काउंसलिंग की जाए, और उसे न्याय प्रक्रिया के दौरान असुविधा न हो। बच्चे के बयान के दौरान कैमरा ट्रायल और अन्य सुरक्षा उपायों का पालन किया जाता है।

धारा 19 (सूचना देने का कर्तव्य): एक्ट के अनुसार, किसी भी व्यक्ति के पास यदि यौन शोषण की जानकारी होती है, तो उसे तत्काल पुलिस या संबंधित अधिकारी को सूचित करना अनिवार्य है।

पॉक्सो एक्ट में संशोधन

2019 में पॉक्सो एक्ट में संशोधन किया गया, जिसके तहत बच्चों के खिलाफ यौन शोषण के गंभीर मामलों में दोषी पाए जाने पर मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया। इसके अलावा, चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामलों में भी सख्त दंड का प्रावधान किया गया है।


समस्याएं और चुनौतियाँ

हालांकि पॉक्सो एक्ट एक महत्वपूर्ण कानून है, परंतु इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं। जैसे कि:


मामलों की धीमी सुनवाई और न्याय प्रक्रिया में देरी।

सामाजिक और पारिवारिक दबाव के कारण कई मामले सामने नहीं आ पाते।

ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में पॉक्सो एक्ट के प्रति जागरूकता की कमी।