सारांश: सुप्रीम कोर्ट की नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत से निर्णय सुनाया कि राज्यों को खनिजों पर कर लगाने का अधिकार है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 1989 के फैसले को गलत ठहराया, जिसमें कहा गया था कि रॉयल्टी एक कर है। यह फैसला केंद्र सरकार के खिलाफ और राज्य सरकारों के हक में आया है।
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को खनिजों पर कर लगाने के अधिकार से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत से निर्णय दिया कि संविधान के तहत राज्यों को खनिजों पर कर लगाने का अधिकार है। इस फैसले से राज्य सरकारों को बड़ा राहत मिला है।
1989 का फैसला गलत
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 1989 में शीर्ष अदालत की सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का फैसला, जिसमें रॉयल्टी को कर बताया गया था, वह गलत था। यह फैसला केंद्र सरकार के लिए झटका साबित हुआ है, जो यह दावा कर रही थी कि केवल उसे ही खनिजों पर कर लगाने का अधिकार है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना का असहमति
पीठ में न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई। उन्होंने कहा कि राज्यों के पास खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने की विधायी क्षमता नहीं है। हालांकि, बहुमत का फैसला होने के कारण उनका विचार लागू नहीं हो सका।
संविधान पीठ के अन्य जज
सुप्रीम कोर्ट की इस नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ में सीजेआई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति नागरत्ना के अलावा न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे।
राज्यों का अधिकार बहाल
यह फैसला खनिज कराधान के विवादित मुद्दे पर एक स्पष्ट निर्णय लेकर आया है। अब राज्यों को खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का अधिकार बहाल हो गया है। यह फैसला राज्य सरकारों को खनिज संसाधनों से मिलने वाली रॉयल्टी और करों के माध्यम से राजस्व बढ़ाने में मदद करेगा।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1989 में, सुप्रीम कोर्ट की सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने रॉयल्टी को एक कर के रूप में माना था। यह फैसला तब से विवादित रहा है, और राज्य सरकारें इसे चुनौती देती रही हैं। वर्तमान निर्णय ने इस विवाद को समाप्त कर दिया है और राज्य सरकारों के अधिकारों को स्पष्ट किया है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना का विचार
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने असहमति जताते हुए कहा कि राज्यों के पास खनिजों पर कर लगाने का अधिकार नहीं है। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत केवल केंद्र सरकार को ही खनिजों पर रॉयल्टी वसूलने का अधिकार है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का विचार
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 1989 का फैसला गलत था और इसे बदलने की आवश्यकता थी। उन्होंने कहा कि संविधान के तहत राज्यों को कर लगाने का अधिकार है, और यह निर्णय राज्य सरकारों के हक में है।
भविष्य की दिशा
इस फैसले से राज्य सरकारों को अपने वित्तीय संसाधनों को बढ़ाने में मदद मिलेगी। खनिज संसाधनों पर कर लगाने का अधिकार राज्यों को अपने क्षेत्र में खनिज संसाधनों के उचित प्रबंधन और विकास में सहायता करेगा। यह निर्णय राज्य सरकारों को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला राज्य सरकारों के हक में आया है, जिससे उन्हें खनिज संसाधनों पर कर लगाने का अधिकार मिला है। यह निर्णय केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवाद को समाप्त कर एक नया दृष्टिकोण प्रदान करता है। राज्य सरकारें अब अपने खनिज संसाधनों का बेहतर उपयोग कर सकेंगी और अपने राजस्व को बढ़ा सकेंगी।
إرسال تعليق