सारांशसुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी आरक्षण पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए 'कोटे के अंदर कोटा' प्रावधान किया जा सकता है। जस्टिस बी आर गवई ने सामाजिक लोकतंत्र की आवश्यकता पर बल दिया और संविधान निर्माता बीआर अंबेडकर के विचारों को याद किया।


एससी/एसटी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: कोटे के अंदर कोटा


नई दिल्लीसुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एससी/एसटी आरक्षण पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और जनजातियों (एससी/एसटी) के लिए अब 'कोटे के अंदर कोटा' का प्रावधान किया जा सकता है। यह फैसला 6 जजों के समर्थन और 1 जज के विरोध से पास हुआ। इस फैसले में शामिल सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस बी आर गवई ने इसे सामाजिक लोकतंत्र के लिए आवश्यक बताया।


फैसले का महत्व और संदर्भ


सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले में, न्यायमूर्ति बी आर गवई ने संविधान निर्माता बीआर अंबेडकर के सामाजिक लोकतंत्र की आवश्यकता पर दिए गए भाषण को याद किया। उन्होंने कहा कि राज्य का कर्तव्य है कि वह पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता दे। उन्होंने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) वर्ग के केवल कुछ ही लोग आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं। हम जमीनी हकीकत से इनकार नहीं कर सकते हैं। एससी/एसटी के भीतर ऐसी श्रेणियां हैं, जिन्हें सदियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है और इन्हें विशेष ध्यान की आवश्यकता है।


2004 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला


इससे पहले, 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों को उप-श्रेणियों में विभाजित कर आरक्षण देना असंवैधानिक होगा। उस समय कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि ऐसा करना समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा। हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 2004 के फैसले को पलट दिया है। अब राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों और जनजातियों के बीच उप-श्रेणियां बनाने का अधिकार होगा, जिससे उन समुदायों को बेहतर लाभ मिल सकेगा जो अब तक आरक्षण का पूरा फायदा नहीं उठा पाए थे।


फैसले का व्यापक असर


इस फैसले का प्रभाव न केवल अनुसूचित जाति और जनजातियों पर पड़ेगा, बल्कि यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। इस फैसले से उन समुदायों को अधिक लाभ मिलेगा जो अब तक आरक्षण का पूरा लाभ नहीं उठा पाए थे। इसके साथ ही, यह फैसला सामाजिक असमानता को दूर करने और समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने में मदद करेगा।


फैसले में असहमति


इस ऐतिहासिक फैसले में, जहां 6 जजों ने समर्थन किया, वहीं जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इसके खिलाफ वोट किया। उन्होंने अपने असहमति में कहा कि 'कोटे के अंदर कोटा' बनाने से आरक्षण की मूल भावना कमजोर हो सकती है। उनका मानना था कि यह कदम सामाजिक समानता की दिशा में बाधा बन सकता है।


आगे की राह


सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद, राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों और जनजातियों के बीच उप-श्रेणियां बनाने का अधिकार मिल गया है। अब यह देखना होगा कि राज्य सरकारें इस फैसले को कैसे लागू करती हैं और समाज के सबसे कमजोर वर्गों को कैसे इसका लाभ पहुंचाती हैं। इस फैसले से सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है, जो भविष्य में समाज के कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण में मदद करेगा।

Post a Comment

और नया पुराने