सारांश : केंद्र सरकार ने एससी-एसटी आरक्षण में 'क्रीमी लेयर' लागू करने से इनकार किया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अलग विचार व्यक्त किया है। 'क्रीमी लेयर' उन लोगों को संदर्भित करता है जिन्होंने आर्थिक और सामाजिक रूप से उन्नति कर ली है, और जिनके लिए आरक्षण की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। यह मामला संविधान और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के बीच संतुलन बनाने की एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है।

हाल ही में केंद्र सरकार ने एससी-एसटी आरक्षण में 'क्रीमी लेयर' का प्रावधान लागू न करने का निर्णय लिया। यह फैसला केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में लिया गया, जहां इस मुद्दे पर गहन विचार-विमर्श किया गया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस निर्णय की पुष्टि करते हुए कहा कि डॉ. बी. आर. आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान में एससी-एसटी के लिए आरक्षण की जो व्यवस्था है, उसमें 'क्रीमी लेयर' का कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए, केंद्र सरकार ने संविधान के मौलिक सिद्धांतों का पालन करते हुए इस प्रावधान को लागू न करने का फैसला किया है।
'क्रीमी लेयर' की अवधारणा
'क्रीमी लेयर' का अर्थ उन व्यक्तियों से है जिन्होंने सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पर्याप्त प्रगति कर ली है। ऐसे लोग आरक्षण के दायरे में नहीं आते और उन्हें सरकारी नौकरियों या शैक्षणिक संस्थानों में सामान्य श्रेणी से प्रवेश मिलता है। वर्तमान में, 'क्रीमी लेयर' का प्रावधान अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण में लागू है। ओबीसी के अंतर्गत आने वाले परिवारों की सालाना आय यदि 8 लाख रुपये से अधिक है, तो वे आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकते।
'क्रीमी लेयर' की शुरुआत
भारत में 'क्रीमी लेयर' का सिद्धांत पहली बार 1993 में लागू किया गया था। उस समय, 1 लाख रुपये वार्षिक आय वाले व्यक्तियों को इस श्रेणी में शामिल किया गया था। समय के साथ, इस आय सीमा को बढ़ाया गया, और वर्तमान में यह 8 लाख रुपये तक पहुँच गई है। इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि केवल वास्तविक रूप से पिछड़े वर्गों को ही आरक्षण का लाभ मिले।
संविधान और 'क्रीमी लेयर'
संविधान के अनुच्छेद 15(4), 16(4), और 340(1) में पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधानों का उल्लेख है। ये अनुच्छेद राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने की अनुमति देते हैं। हालांकि, 'क्रीमी लेयर' का सिद्धांत विशेष रूप से ओबीसी के लिए लागू किया गया था, जबकि एससी-एसटी आरक्षण में इसका कोई उल्लेख नहीं है।
'क्रीमी लेयर' में कौन शामिल है?
'क्रीमी लेयर' में वे लोग आते हैं जो उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन हैं, जैसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के जज, यूपीएससी के अध्यक्ष, और अन्य संवैधानिक अधिकारी। इसके अलावा, केंद्र और राज्य सरकार की सेवाओं में ग्रुप ए और ग्रुप बी के अधिकारी भी इस श्रेणी में आते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
1 अगस्त 2024 को, सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण के संबंध में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने एससी-एसटी आरक्षण में 'क्रीमी लेयर' के सिद्धांत को लागू करने की अनुमति दी। हालांकि, इस निर्णय से एक जज असहमत थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एससी-एसटी के 'क्रीमी लेयर' को ओबीसी 'क्रीमी लेयर' से अलग रखा जाना चाहिए, और इसे लागू करने से संविधान में निहित समानता के सिद्धांत को सुदृढ़ किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि यदि एक छात्र शहरी क्षेत्र के प्रतिष्ठित संस्थान में शिक्षा प्राप्त कर रहा है और दूसरा छात्र ग्रामीण क्षेत्र के साधारण स्कूल में, तो दोनों को समान नहीं माना जा सकता। यदि एक पीढ़ी ने आरक्षण का लाभ लेकर उन्नति कर ली है, तो अगली पीढ़ी को इसका लाभ नहीं मिलना चाहिए।
निष्कर्ष
एससी-एसटी आरक्षण में 'क्रीमी लेयर' का मुद्दा संवैधानिक और सामाजिक न्याय के बीच एक गंभीर बहस का विषय है। जबकि केंद्र सरकार ने इसे लागू करने से इनकार कर दिया है, सुप्रीम कोर्ट ने इसे महत्वपूर्ण माना है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस मुद्दे का भविष्य में क्या समाधान निकलता है और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है।
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