सारांश : विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ उनके पद से हटाने का प्रस्ताव लाने की योजना बनाई है, जिसमें उनका आरोप है कि धनखड़ राज्यसभा में पक्षपातपूर्ण रवैया अपना रहे हैं। संविधान के अनुच्छेद 67 के तहत, उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए राज्यसभा और लोकसभा के बहुमत की आवश्यकता होती है। इस लेख में इस प्रक्रिया, इसके नियमों और प्रस्ताव के संभावित परिणामों पर विस्तार से चर्चा की गई है।

Vice President को हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया: opposition का आरोप और संभावनाएं

भारतीय राजनीति में हाल के दिनों में विपक्ष और सरकार के बीच बढ़ती खींचतान ने एक नई दिशा ले ली है। विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ उन्हें उनके पद से हटाने के लिए एक प्रस्ताव लाने की तैयारी शुरू कर दी है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य उपराष्ट्रपति के कथित पक्षपातपूर्ण रवैये के खिलाफ आवाज उठाना है, जिसे विपक्ष लंबे समय से निशाने पर ले रहा है।


विपक्ष के आरोप और नाराजगी:

इंडिया अलायंस और अन्य विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसमें कहा गया है कि धनखड़ राज्यसभा में विपक्ष के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि उनके इशारे पर विपक्ष के नेताओं के माइक बार-बार बंद कर दिए जाते हैं, और संसद के नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। इस मुद्दे ने तब और जोर पकड़ा जब समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन और उपराष्ट्रपति के बीच तीखी बहस हुई। जया बच्चन ने सभापति के टोन पर सवाल उठाया, जिस पर धनखड़ ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह अनुचित व्यवहार को बर्दाश्त नहीं करेंगे।


इस घटना के बाद, सोनिया गांधी की अगुवाई में विपक्षी दलों ने राज्यसभा से वॉकआउट किया और उपराष्ट्रपति के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर की। विपक्ष का कहना है कि उपराष्ट्रपति राज्यसभा में विपक्ष को वह सम्मान नहीं दे रहे हैं, जिसकी वे हकदार हैं। विपक्षी दलों का यह कदम इस नाराजगी की परिणति के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें उन्होंने उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाने का प्रस्ताव लाने का निर्णय लिया है।


उपराष्ट्रपति को हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया:

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67 के तहत, उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाने के लिए एक सख्त और विशिष्ट प्रक्रिया निर्धारित की गई है। उपराष्ट्रपति, जो राज्यसभा के पदेन सभापति भी होते हैं, उन्हें उनके पद से हटाने के लिए राज्यसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित और लोकसभा द्वारा सहमति प्राप्त एक प्रस्ताव के माध्यम से हटाया जा सकता है। इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए कम से कम 14 दिनों का नोटिस देना अनिवार्य है, जिसमें यह स्पष्ट किया जाता है कि ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है।


संविधान के अनुच्छेद 67(बी) के तहत, उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव केवल राज्यसभा में ही पेश किया जा सकता है, और इसे सदन के बहुमत से पारित किया जाना चाहिए। इसके बाद, लोकसभा में इसे साधारण बहुमत से पारित करना आवश्यक है। जब यह प्रस्ताव सदन में विचाराधीन हो, तब उपराष्ट्रपति सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकते।


उपराष्ट्रपति को हटाने के नियम:

उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव केवल राज्यसभा में ही पेश किया जा सकता है।

इस प्रस्ताव को लाने से पहले 14 दिनों का नोटिस देना अनिवार्य है।

प्रस्ताव को राज्यसभा में 'प्रभावी बहुमत' से पारित किया जाना चाहिए, जिसका अर्थ है कि सदन के सभी तत्कालीन सदस्यों का बहुमत इसका समर्थन करे।

इसके बाद, लोकसभा में इसे 'साधारण बहुमत' से पारित करना होगा।

जब यह प्रस्ताव विचाराधीन हो, तो उपराष्ट्रपति सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकते।

राज्यसभा के सभापति के विपरीत, लोकसभा के अध्यक्ष मतदान कर सकते हैं। हालांकि, उपराष्ट्रपति को हटाने के प्रस्ताव के विचाराधीन होने पर उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं मिलता।


क्या प्रस्ताव पारित हो सकेगा?

विपक्षी दलों द्वारा उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव लाने की योजना तो बना ली गई है, लेकिन इसके पारित होने की संभावना पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष के पास उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए आवश्यक संख्या बल नहीं है, जो इस प्रस्ताव के पारित होने की संभावना को कम करता है। हालांकि, विपक्ष का यह कदम राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हो सकता है। इस प्रस्ताव का संकेतात्मक महत्व हो सकता है, जिसका उद्देश्य सरकार पर दबाव बनाना और राजनीतिक माहौल में बदलाव लाना हो सकता है।


विपक्षी दलों का यह कदम संसद में एक नई बहस को जन्म देगा, और यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस पर कैसी प्रतिक्रिया देती है। इस प्रस्ताव के पारित होने की संभावना भले ही कम हो, लेकिन यह विपक्ष की रणनीतिक सोच और उनकी नाराजगी को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।


निष्कर्ष:

उपराष्ट्रपति को हटाने की यह प्रक्रिया न केवल संवैधानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी इसका बड़ा महत्व है। विपक्षी दलों का यह कदम सरकार पर दबाव बनाने और अपने विरोध की आवाज को मजबूत करने का प्रयास है। हालांकि इस प्रस्ताव के पारित होने की संभावना कम है, लेकिन यह भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के रूप में देखा जाएगा, जो भविष्य की राजनीति के लिए एक नजीर पेश कर सकता है।

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