सारांश : दिल्ली में मंकीपॉक्स के क्लैड-2 वायरस का एक मामला सामने आया है, लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह वायरस डब्ल्यूएचओ द्वारा घोषित क्लैड-1 वायरस जितना खतरनाक नहीं है। क्लैड-2 का संक्रमण दर और गंभीरता कम है, जिससे इस मरीज की स्थिति स्थिर बनी हुई है। फिर भी, एहतियात बरतना जरूरी है क्योंकि मंकीपॉक्स के अन्य प्रकार दुनिया भर में कहर मचा रहे हैं।

Delhi में Monkeypox का मामला: कितना खतरनाक है क्लैड-2 वायरस?


दिल्ली के एक अस्पताल में 26 वर्षीय व्यक्ति को मंकीपॉक्स के क्लैड-2 वायरस से संक्रमित पाया गया है। इस खबर ने लोगों में चिंता जरूर पैदा की है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में घबराने की जरूरत नहीं है। क्लैड-2 वायरस की पहचान के बावजूद यह वायरस उतना खतरनाक नहीं है जितना कि अफ्रीका में फैलने वाला क्लैड-1 वायरस, जिसे डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया है।


भारत में मंकीपॉक्स का यह मामला तब सामने आया जब संक्रमित व्यक्ति ने एक ऐसे देश की यात्रा की थी, जहां मंकीपॉक्स का प्रकोप हो चुका था। इस मामले की पुष्टि लैब परीक्षणों के बाद हुई, जिसके आधार पर इस मरीज को दिल्ली के एक आइसोलेशन वार्ड में भर्ती किया गया है। मरीज की स्थिति फिलहाल स्थिर है और उसमें कोई गंभीर लक्षण दिखाई नहीं दे रहे हैं। उसे निगरानी में रखा गया है ताकि बीमारी के संभावित प्रसार को रोका जा सके।


कुछ समय पहले ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिल्ली के प्रमुख अस्पतालों, जैसे एम्स, सफदरजंग, आरएमएल, और लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में मंकीपॉक्स के मरीजों के लिए विशेष वार्ड बनाने का निर्देश दिया था। इन वार्डों को किसी भी संभावित मंकीपॉक्स के मामलों के लिए तैयार रखा गया है। दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में भी इस मरीज को आइसोलेशन में रखा गया है।


मंकीपॉक्स वायरस: क्लैड-1 बनाम क्लैड-2

स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो मंकीपॉक्स के दो प्रमुख प्रकार होते हैं: क्लैड-1 और क्लैड-2। क्लैड-1 वायरस, जो मुख्य रूप से पूर्वी और मध्य अफ्रीका में पाया जाता है, अधिक घातक और संक्रामक है। डब्ल्यूएचओ ने इसे वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया है क्योंकि इस वायरस ने अफ्रीका में भारी संख्या में मौतें और गंभीर संक्रमण फैलाए हैं। दूसरी ओर, क्लैड-2 वायरस कम गंभीर है और इसका संक्रमण दर भी कम है। यही कारण है कि विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में घबराने की जरूरत नहीं है।


डॉ. सुनीत के सिंह, जो नई दिल्ली के अंबेडकर सेंटर फॉर बायोमेडिकल रिसर्च के डायरेक्टर हैं, बताते हैं कि क्लैड-2 वायरस उतना खतरनाक नहीं है जितना कि क्लैड-1। उन्होंने कहा कि मंकीपॉक्स का क्लैड-1 वायरस अधिक गंभीर बीमारियों का कारण बनता है और इसके कारण होने वाली मौतों का अनुपात भी अधिक है। इसके विपरीत, क्लैड-2 वायरस में यह क्षमता कम होती है और यह कम गंभीरता वाली बीमारी पैदा करता है।


भारत में स्थिति

भारत में मंकीपॉक्स का यह नया मामला 2022 के बाद सामने आए 30वें मामले के रूप में दर्ज हुआ है। हालांकि, राहत की बात यह है कि भारत में अभी तक कोई भी मामला क्लैड-1 वायरस से जुड़ा नहीं है। जो भी मामले सामने आए हैं, वे सभी क्लैड-2 वायरस के हैं, जो कि कम घातक होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अफ्रीका में हो रही मौतें और गंभीर संक्रमण क्लैड-1 वायरस के कारण हैं, न कि क्लैड-2 के।


हालांकि, इसका यह मतलब नहीं है कि लोग पूरी तरह निश्चिंत हो जाएं। मंकीपॉक्स का संक्रमण किसी भी तरह का हो, सावधानी बरतना जरूरी है। मंकीपॉक्स वायरस का प्रसार मुख्य रूप से संक्रमित व्यक्ति के शारीरिक संपर्क, त्वचा के घावों, या अन्य शारीरिक द्रव्यों के संपर्क में आने से होता है। इसलिए सामाजिक दूरी और व्यक्तिगत स्वच्छता का पालन करना आवश्यक है, खासकर उन लोगों के लिए जिन्होंने हाल ही में मंकीपॉक्स प्रभावित क्षेत्रों की यात्रा की है।


सावधानी और एहतियात

मंकीपॉक्स से बचाव के लिए कुछ साधारण सावधानियां बरती जा सकती हैं। किसी भी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क से बचें और ऐसे लोगों से भी दूरी बनाए रखें, जिन्हें मंकीपॉक्स के लक्षण दिखाई देते हों। संक्रमित व्यक्ति के इस्तेमाल किए गए बिस्तर, कपड़े, या अन्य वस्तुओं से संपर्क से भी बचा जाना चाहिए। इसके अलावा, अगर किसी को बुखार, थकान, या त्वचा पर घाव जैसे लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत चिकित्सकीय सलाह लें।


विशेषज्ञों का मानना है कि क्लैड-2 वायरस भले ही कम खतरनाक हो, लेकिन इसकी रोकथाम और उपचार में ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए। भारत में मंकीपॉक्स के मामलों की संख्या सीमित है, लेकिन इसे नजरअंदाज करना खतरनाक साबित हो सकता है। देश में स्वास्थ्य विभाग और अस्पतालों ने इस वायरस के खिलाफ पर्याप्त तैयारी कर रखी है और किसी भी संभावित मामले के लिए आइसोलेशन वार्ड तैयार किए गए हैं।


मंकीपॉक्स के लक्षण और इलाज

मंकीपॉक्स के लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, थकान, और शरीर पर त्वचा पर घाव शामिल हैं। यह वायरस शरीर में घुसने के बाद 5 से 21 दिनों के भीतर लक्षण पैदा कर सकता है। हालांकि, अधिकतर मामलों में यह वायरस कुछ ही हफ्तों में ठीक हो जाता है और इलाज की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन गंभीर मामलों में अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता पड़ सकती है।


भारत में मंकीपॉक्स के मामलों को नियंत्रित करने के लिए, सरकार ने कई कदम उठाए हैं। इसमें अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों की जांच, संक्रमित क्षेत्रों से आने वाले लोगों की स्क्रीनिंग, और स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण देना शामिल है। इसके साथ ही, लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि मंकीपॉक्स के लक्षणों को नजरअंदाज न करें और तुरंत चिकित्सा सहायता लें।


निष्कर्ष

दिल्ली में सामने आए मंकीपॉक्स के इस मामले ने हमें एक बार फिर सतर्क कर दिया है, लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है। क्लैड-2 वायरस का संक्रमण दर और गंभीरता कम होने के कारण मरीज की स्थिति फिलहाल स्थिर है। फिर भी, सभी को सतर्क रहना चाहिए और जरूरी सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि इस बीमारी का प्रसार रोका जा सके। भारत में स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से तैयार है और हमें उनकी सलाहों का पालन करना चाहिए।

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