सारांश : रूस और यूक्रेन के बीच ढाई साल से चल रहे युद्ध को समाप्त करने के प्रयासों में भारत ने एक अहम कदम उठाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल को रूस की यात्रा पर भेजा गया। इस कूटनीतिक कदम से चीन बैकफुट पर आ गया है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने युद्ध के अंत के लिए भारत और चीन की महत्वपूर्ण भूमिका की बात कही थी, जिसके बाद चीन को सफाई देनी पड़ी। चीन ने बातचीत और शांति की वकालत की, लेकिन भारत की रूस और यूक्रेन से करीबी संबंधों के कारण चीन को पीछे हटना पड़ा।

Russia-Ukraine युद्ध में India की बड़ी भूमिका: Ajit Doval की यात्रा से China बैकफुट पर, विदेश मंत्रालय की सफाई


रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे लंबे युद्ध में दुनिया के कई देश शांति बहाल करने के प्रयास कर रहे हैं। इस युद्ध को ढाई साल बीत चुके हैं, और अब दोनों ही पक्ष थकान महसूस कर रहे हैं। एक ओर जहां रूस शुरू में यूक्रेन पर हावी था, वहीं यूक्रेन ने भी अपनी ताकत और साहस दिखाकर आक्रामकता को बढ़ा दिया है। इस निरंतर युद्ध से निकलने के लिए रूस और यूक्रेन दोनों ही अपने-अपने देश की प्रतिष्ठा को बनाए रखते हुए इसका अंत चाहते हैं।


हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि भारत और चीन जैसे देश इस युद्ध को समाप्त करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। पुतिन के इस बयान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कूटनीतिक मास्टर स्ट्रोक खेला और अजित डोभाल को रूस की यात्रा पर भेज दिया। डोभाल, जिन्हें भारतीय कूटनीति का चाणक्य कहा जाता है, इस यात्रा के माध्यम से भारत के प्रभाव को मजबूत करने और युद्ध को समाप्त करने की दिशा में प्रयासरत हैं।


प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दो महीनों में रूस और यूक्रेन दोनों देशों का दौरा किया है, जहां उन्होंने स्पष्ट किया कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। मोदी के इस शांति संदेश के बाद रूस और यूक्रेन दोनों ही इस दिशा में बातचीत को प्राथमिकता दे रहे हैं। अजित डोभाल की रूस यात्रा इसी कड़ी का हिस्सा है, जिसका मकसद शांति वार्ता को और अधिक गहरा करना है।


चीन पर बढ़ता दबाव

अजित डोभाल की इस यात्रा से चीन बैकफुट पर आ गया है। चीन, जो अब तक इस युद्ध में अपनी भूमिका को लेकर शांत था, अब अचानक सक्रिय हो गया है। पुतिन के बयान के बाद इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने भी कहा कि भारत और चीन रूस-यूक्रेन संकट को समाप्त करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। मेलोनी के इस बयान ने चीन को और अधिक सतर्क कर दिया।


चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने हाल ही में एक बयान में कहा कि चीन हमेशा से युद्ध के समाप्त होने और राजनीतिक समाधान की तलाश के पक्ष में रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करना सभी पक्षों के हित में है। हालांकि, यह बयान केवल चीन की प्रतिक्रिया को संतुलित करने के लिए था, क्योंकि चीन के रूस के साथ बेहतर संबंध तो हैं, लेकिन यूक्रेन के साथ उसका करीबी रिश्ता नहीं है। इस कारण, चीन शांति वार्ता में उतना प्रभावी नहीं हो सकता जितना भारत हो सकता है।


भारत की कूटनीतिक सफलता

भारत और रूस के लंबे समय से चले आ रहे घनिष्ठ संबंध किसी से छिपे नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यूक्रेन दौरा और दोनों देशों के नेताओं के साथ उनकी बातचीत ने भारत को एक अनूठी स्थिति में ला खड़ा किया है, जहां भारत शांति वार्ता को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। चीन, जो युद्ध को समाप्त करने में अपनी हिस्सेदारी दिखाने की कोशिश कर रहा है, वह भारत की इस कूटनीतिक सफलता से काफी पीछे छूटता दिख रहा है।


हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति और स्थिरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। डोभाल की रूस यात्रा भी इसी का एक हिस्सा है। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि डोभाल जल्द ही यूक्रेन की यात्रा भी कर सकते हैं, जहां वह शांति वार्ता को और आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे।


चीन की सीमित भूमिका

चीन भले ही रूस के साथ घनिष्ठ संबंधों का दावा करता हो, लेकिन यूक्रेन के साथ उसकी नीतिगत दूरियां उसे इस स्थिति में लाकर खड़ा करती हैं कि वह युद्ध को समाप्त करने में निर्णायक भूमिका नहीं निभा सकता। दूसरी ओर, भारत के रूस और यूक्रेन दोनों के साथ अच्छे संबंध उसे एक मजबूत कूटनीतिक स्थिति में रखते हैं। अजित डोभाल की रूस यात्रा ने इस अंतर को और स्पष्ट कर दिया है, जहां चीन को अपने बयान देकर संतुलन बनाने की जरूरत महसूस हो रही है।


भारत की इस कूटनीतिक सफलता से साफ हो गया है कि भविष्य में रूस-यूक्रेन युद्ध के समाधान में भारत की भूमिका अहम होगी। चीन भले ही अपने विदेश मंत्रालय की ओर से बयान जारी कर रहा हो, लेकिन वह चाह कर भी कुछ खास नहीं कर सकता। भारत की तटस्थ और प्रभावी कूटनीति से वैश्विक स्तर पर शांति वार्ता की दिशा में उम्मीद की किरण दिख रही है।

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