सारांश : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए महा विकास अघाड़ी (एमवीए) में सीट बंटवारे को लेकर गहरा विवाद सामने आया है। कांग्रेस ने 99 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान करके उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी को चिंतित कर दिया है। पहले 85-85-85 सीटों का फॉर्मूला तय था, लेकिन कांग्रेस अब इससे आगे बढ़ गई है। राहुल गांधी के गुस्से के बाद कांग्रेस के इस कदम ने एमवीए के भीतर तनाव पैदा कर दिया है।

Maharashtra Election में सीट बंटवारे को लेकर Congress की 99 सीटों की रणनीति से Maha Vikas Aghadi में मचा घमासान


महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के अंदर सीट बंटवारे को लेकर संकट गहरा गया है। कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के बीच सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बन पा रही है। कांग्रेस ने 99 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर इस विवाद को और बढ़ा दिया है, जबकि पहले 85-85-85 सीटों का फॉर्मूला तय हुआ था। कांग्रेस के इस कदम ने एमवीए के बाकी दलों में तनाव और असंतोष पैदा कर दिया है, खासकर शिवसेना और एनसीपी में।


राहुल गांधी का गुस्सा और कांग्रेस की रणनीति:

राहुल गांधी के गुस्से ने एमवीए के अंदर इस विवाद को और तीव्र कर दिया है। कांग्रेस चुनाव समिति (सीईसी) की बैठक के दौरान, राहुल गांधी ने सीट बंटवारे के मुद्दे पर अपनी नाराजगी व्यक्त की। सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी इस बात से नाखुश हैं कि एमवीए के भीतर सीटों का बंटवारा अब तक साफ नहीं हो सका है। उनकी नाराजगी इस हद तक बढ़ गई कि वह बैठक बीच में ही छोड़कर चले गए। इसके बाद कांग्रेस ने बिना और देर किए 99 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया, जो एमवीए के अन्य दलों के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ।


सीट बंटवारे का पेच:

महाराष्ट्र में सीट बंटवारे को लेकर पहले 85-85-85 सीटों का फॉर्मूला तय किया गया था। इसका मतलब था कि एमवीए के तीन प्रमुख दल—कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट)—अलग-अलग 85 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। लेकिन बाद में 95 सीटों का नया फॉर्मूला सामने आया, जिसके तहत हर पार्टी को 95-95 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही गई। हालांकि, कांग्रेस के अलावा कोई भी दल इस फॉर्मूले पर आगे नहीं बढ़ पाया। एनसीपी ने 76 और शिवसेना (उद्धव गुट) ने 87 सीटों पर ही अब तक अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया है।


कांग्रेस का बड़ा भाई बनने का दांव:

कांग्रेस के 99 सीटों पर उम्मीदवार उतारने के फैसले ने महा विकास अघाड़ी में उसके 'बड़े भाई' बनने के संकेत दे दिए हैं। कांग्रेस ने अब तक सबसे अधिक सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर यह साफ कर दिया है कि वह एमवीए में प्रमुख भूमिका निभाना चाहती है। इस कदम ने शिवसेना और एनसीपी के नेताओं के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है, क्योंकि अब उन्हें सीमित सीटों पर ही संतोष करना होगा। शिवसेना और एनसीपी को अब 95-95 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार होना पड़ सकता है।


एमवीए की प्रतिक्रिया:

कांग्रेस के इस कदम ने एमवीए के अंदर विवाद को और गहरा कर दिया है। शिवसेना और एनसीपी के नेताओं में नाराजगी बढ़ती जा रही है, क्योंकि कांग्रेस ने बिना किसी व्यापक चर्चा के 99 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। इससे पहले, यह उम्मीद की जा रही थी कि सीट बंटवारे को लेकर एक सामंजस्यपूर्ण समझौता हो जाएगा। हालांकि, अब यह विवाद आगामी चुनावों में एमवीए की एकजुटता पर असर डाल सकता है।


महाराष्ट्र चुनाव की स्थिति:

महाराष्ट्र में कुल 288 विधानसभा सीटें हैं, जिन पर एक ही चरण में 20 नवंबर को चुनाव होना है। एमवीए के तीनों दलों—कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), और एनसीपी (शरद पवार गुट)—का सामना भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति से है, जो राज्य में सत्ताधारी गठबंधन है। एमवीए के भीतर सीटों का यह बंटवारा महायुति के खिलाफ एक मजबूत विपक्षी गठबंधन के रूप में उनकी संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है।


भविष्य की चुनौतियां:

महा विकास अघाड़ी के भीतर सीट बंटवारे को लेकर जो तनाव उभरा है, उससे यह स्पष्ट होता है कि चुनाव के नतीजों पर इसका गहरा असर पड़ सकता है। यदि कांग्रेस, एनसीपी, और शिवसेना (उद्धव गुट) के बीच सामंजस्य नहीं बनता है, तो यह महायुति के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। राहुल गांधी का गुस्सा और कांग्रेस का आक्रामक रुख इस बात का संकेत है कि पार्टी अब खुद को एमवीए में प्रमुख भूमिका में देखना चाहती है, जो कि बाकी दलों के लिए असहज स्थिति बना सकता है।


निष्कर्ष:

महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी के भीतर सीट बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान ने चुनावी समीकरणों को पेचीदा बना दिया है। कांग्रेस के 99 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान करने से एमवीए के भीतर सत्ता संतुलन बदल गया है। शिवसेना और एनसीपी को अब इस नई स्थिति में अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा। आगामी चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या एमवीए इस विवाद को सुलझाकर एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरती है, या यह विभाजन बीजेपी और महायुति के पक्ष में काम करेगा।

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