सारांश: भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने चेतावनी दी है कि इस साल देश में कड़ाके की ठंड पड़ सकती है। खासकर उत्तर भारत, दिल्ली-एनसीआर और पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान सामान्य से काफी नीचे जा सकता है। मौसम के इस बदलाव का मुख्य कारण ला नीना बताया जा रहा है, जो अक्टूबर-नवंबर में सक्रिय हो सकता है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बीते समय में भारी गर्मी और बारिश के बाद अब देश को भीषण ठंड का सामना करना पड़ सकता है।
ठंड के बढ़ने के संकेत:
देशभर में मानसून के विदा होने के साथ ही अब ठंड के आसार नजर आने लगे हैं। IMD के अनुसार, इस साल उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में कड़ाके की ठंड पड़ने की संभावना है। दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में अधिक ठंड का अनुभव हो सकता है। IMD ने साफ किया है कि 15 अक्टूबर तक मानसून देश से पूरी तरह चला जाएगा, जिसके बाद सर्दियों की शुरुआत होने लगेगी।
ला नीना की मुख्य भूमिका:
मौसम में हो रहे इस बदलाव के पीछे ला नीना की स्थिति बताई जा रही है। मौसम विभाग के मुताबिक, अक्टूबर और नवंबर के बीच ला नीना सक्रिय हो सकता है, जिससे सर्दी की तीव्रता और भी बढ़ जाएगी। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल ला नीना की 71 प्रतिशत संभावना है, जिससे सर्दियों में तापमान सामान्य से काफी नीचे जा सकता है। यह स्थिति उत्तर भारत में खासकर देखने को मिलेगी, जहां तापमान में भारी गिरावट हो सकती है।
ला नीना का प्रभाव:
ला नीना के सक्रिय होने पर समुद्र की सतह ठंडी हो जाती है, जिससे पूर्वी हवाएं समुद्र के पानी को पश्चिम की ओर धकेल देती हैं। इससे ठंड और बारिश में वृद्धि हो जाती है। IMD के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र के अनुसार, ला नीना के चलते दिसंबर और जनवरी के महीनों में तापमान सामान्य से नीचे रहेगा, जिससे इस साल कड़ाके की ठंड पड़ने की पूरी संभावना है। इसका असर सर्दियों के दौरान अधिक बारिश के रूप में भी दिख सकता है, जिससे ठंड का प्रभाव और भी ज्यादा हो जाएगा।
पिछले वर्षों से तुलना:
इस साल पहले ही भीषण गर्मी और भारी बारिश का सामना कर चुका देश अब कड़ाके की ठंड का भी सामना कर सकता है। पिछले कुछ वर्षों में तापमान के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह देखा गया है कि ला नीना की स्थिति में ठंड और बारिश दोनों ही सामान्य से ज्यादा होती हैं। IMD की भविष्यवाणी के अनुसार, उत्तर भारत में ठंड का यह दौर लंबा और तीव्र हो सकता है, खासकर दिसंबर और जनवरी के महीने में।
विश्व मौसम संगठन की रिपोर्ट:
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने भी पिछले महीने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि अक्टूबर-नवंबर के बीच तटस्थ स्थितियों से ला नीना में परिवर्तन होने की 55 प्रतिशत संभावना है। इसके बाद फरवरी 2025 तक इस स्थिति के और मजबूत होने की संभावना है, जिससे इस साल की सर्दी का प्रभाव और भी बढ़ सकता है। WMO ने यह भी स्पष्ट किया कि अल नीनो की वापसी की संभावना फिलहाल शून्य है, जिससे ठंड की तीव्रता को और भी बढ़ावा मिल सकता है।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव:
कड़ाके की ठंड का असर सिर्फ मौसम तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था और समाज पर भी पड़ेगा। विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में, जहां फसलों पर ठंड का सीधा असर हो सकता है। इसके अलावा, ठंड के चलते बिजली की मांग में भी बढ़ोतरी हो सकती है, क्योंकि लोग हीटिंग उपकरणों का ज्यादा इस्तेमाल करेंगे। साथ ही, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ सकती हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो ठंड के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, जैसे बुजुर्ग और बच्चे।
तैयारी की जरूरत:
ऐसे समय में जब मौसम के इतने बड़े बदलाव की संभावना है, आम जनता और सरकार को इसके लिए तैयार रहना होगा। सरकार को विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवाओं, बिजली आपूर्ति और ग्रामीण इलाकों में ठंड से निपटने के लिए योजनाएं बनानी होंगी। वहीं, आम जनता को भी अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा का ध्यान रखना होगा। ठंड के दौरान सही कपड़े पहनना, घरों को गर्म रखना और ज्यादा ठंड से बचने के उपाय करना जरूरी है।
नवंबर में मिलेंगे ठंड के सटीक अनुमान:
हालांकि IMD की रिपोर्ट में ठंड के आसार जरूर बताए गए हैं, लेकिन ठंड कितनी तीव्र होगी और कितने लंबे समय तक चलेगी, इसका सटीक अनुमान नवंबर में ही मिलेगा। मौसम विभाग का कहना है कि ठंड की सही भविष्यवाणी नवंबर के बाद ही की जा सकेगी, जब ला नीना की स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो जाएगी। लेकिन अभी तक के संकेत यही बताते हैं कि इस साल ठंड सामान्य से अधिक होगी और इसका असर लंबे समय तक रहेगा।
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