सारांश : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले हुए सर्वे में शिंदे सरकार की लोकप्रियता बढ़ती दिख रही है। महाविकास अघाड़ी में सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद चल रहा है, जबकि भाजपा और महायुति ने चुनाव की तैयारी कर ली है। सर्वे में लोगों ने शिंदे सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की सराहना की है, हालांकि महंगाई और बेरोजगारी अभी भी जनता के लिए बड़े मुद्दे बने हुए हैं। विपक्ष के लिए यह सवाल उठता है कि वे इस बदलते माहौल में कैसे मुकाबला करेंगे।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। दिल्ली से मुंबई तक की सियासत में हलचल मची हुई है। लेकिन इस बीच एक अहम सर्वे ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। यह सर्वे चुनाव से ठीक पहले राज्य के राजनीतिक माहौल का जायजा लेने के उद्देश्य से किया गया है और इसके नतीजे भाजपा और महायुति सरकार के लिए राहत भरे हो सकते हैं। सर्वे के अनुसार, पिछले चार महीनों में महाराष्ट्र की जनता का मूड बदलता दिख रहा है, और शिंदे सरकार के प्रति जनता की नाराजगी में काफी कमी आई है।
महाविकास अघाड़ी की चुनौती
विपक्षी महाविकास अघाड़ी, जिसमें कांग्रेस, शिवसेना उद्धव गुट और एनसीपी शरद पवार गुट शामिल हैं, सीटों के बंटवारे पर मतभेद के कारण आंतरिक विवादों से जूझ रहा है। अभी तक विपक्षी गठबंधन ने अपने किसी भी उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की है, जिससे चुनाव की तैयारी में देरी हो रही है। इसके विपरीत, भाजपा और महायुति गठबंधन ने अपनी चुनावी रणनीति लगभग तय कर ली है, और भाजपा ने 99 उम्मीदवारों की सूची भी जारी कर दी है। यह स्पष्ट संकेत है कि महायुति गठबंधन चुनाव की तैयारी में विपक्ष से आगे चल रहा है।
बदलता हुआ माहौल
'MIT-SOG-Lokniti-CSDS Pre-Poll Survey', जिसे 'द हिन्दू' अखबार ने प्रकाशित किया, के अनुसार, पिछले चार महीनों में राज्य का राजनीतिक परिदृश्य काफी बदल गया है। चार महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन को अपेक्षाकृत कमजोर परिणाम मिले थे। राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से भाजपा को सिर्फ 9, शिवसेना को 7, और एनसीपी को 1 सीट मिली थी। इसके विपरीत, कांग्रेस को 13, शिवसेना उद्धव गुट को 9, और एनसीपी शरद गुट को 8 सीटें मिली थीं। लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले जनता में शिंदे सरकार के प्रति कोई बड़ी नाराजगी दिखाई नहीं दे रही है, जिससे महायुति के प्रदर्शन में सुधार की संभावना बढ़ गई है।
शिंदे सरकार की कल्याणकारी योजनाएं
सर्वे के अनुसार, महायुति सरकार के प्रति जनता की नाराजगी न होने के पीछे मुख्य कारण शिंदे सरकार द्वारा चलाई गई कल्याणकारी योजनाएं हैं। विशेष रूप से, 'लड़की बहिन योजना', जो राज्य की महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान करती है, को जनता द्वारा सराहा गया है। चुनाव की घोषणा से पहले ही सरकार ने इस योजना के तहत नवंबर तक की किश्त जारी कर दी है, जिससे महिलाओं के बैंक खातों में 7500 रुपये पहले ही पहुंच चुके हैं। इस तरह की योजनाओं ने शिंदे सरकार को जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया है।
जनता की राय और सरकार की तुलना
सर्वे में यह भी पाया गया कि लोगों की एक बड़ी संख्या शिंदे सरकार के कामकाज से संतुष्ट है। शिंदे सरकार ने हाल ही में अपना दो साल का कार्यकाल पूरा किया है, और सर्वे में लोगों से शिंदे सरकार और पूर्व की उद्धव ठाकरे सरकार की तुलना करने के लिए कहा गया। अधिकांश लोगों का मानना था कि विकास और सामाजिक सौहार्द के मामले में उद्धव ठाकरे की महाविकास अघाड़ी सरकार बेहतर थी, लेकिन पानी, बिजली और सड़क जैसी बुनियादी सेवाओं की उपलब्धता के मामले में शिंदे सरकार को अधिक बेहतर माना गया। इससे स्पष्ट होता है कि शिंदे सरकार ने बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए कड़ी मेहनत की है, जिसका जनता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
महंगाई और बेरोजगारी जैसे बड़े मुद्दे
हालांकि शिंदे सरकार की योजनाओं को सराहा जा रहा है, लेकिन सर्वे में यह भी सामने आया कि महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे अब भी जनता के लिए चिंता का विषय हैं। आधे से अधिक लोगों ने इन दोनों मुद्दों को चुनाव में उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण बताया। महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर भी जनता की चिंता जाहिर की गई। पिछले पांच वर्षों में इन समस्याओं में वृद्धि हुई है, जिससे यह सवाल उठता है कि जनता इस स्थिति में किसे समर्थन देगी।
मराठा आरक्षण का मुद्दा
मराठा आरक्षण भी महाराष्ट्र की राजनीति का एक अहम मुद्दा बना हुआ है। सर्वे में पाया गया कि अधिकतर लोग मराठा समुदाय को आरक्षण देने के पक्ष में हैं, लेकिन इस मामले पर सर्वसम्मति नहीं है कि मराठा आरक्षण आंदोलन के प्रमुख नेता मनोज जरांगे को चुनाव में उतरना चाहिए या नहीं। यह मुद्दा आगामी चुनाव में भी चर्चा का विषय बना रहेगा और इससे यह तय होगा कि मराठा वोट बैंक किसके पक्ष में जाएगा।
विपक्ष के लिए कठिन दौर
शिंदे सरकार के प्रति जनता में नाराजगी कम होने के साथ-साथ विपक्ष के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है। शरद पवार, राहुल गांधी, और उद्धव ठाकरे जैसे विपक्षी नेताओं के सामने यह सवाल खड़ा है कि वे कैसे इस बदलते माहौल में अपनी रणनीति बनाएंगे। महाविकास अघाड़ी में सीटों के बंटवारे पर मतभेद और चुनावी उम्मीदवारों की घोषणा में देरी ने विपक्ष की स्थिति को और कमजोर किया है। अगर विपक्ष जल्द ही अपनी रणनीति को साफ नहीं करता, तो शिंदे सरकार और महायुति को इस चुनाव में बड़ा फायदा हो सकता है।
निष्कर्ष
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले का यह सर्वे बताता है कि राज्य की राजनीतिक स्थिति पिछले चार महीनों में काफी बदल गई है। शिंदे सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और बुनियादी ढांचे में सुधार ने जनता का विश्वास जीतने में सफलता पाई है। हालांकि महंगाई, बेरोजगारी, और मराठा आरक्षण जैसे मुद्दे अब भी चुनावी संघर्ष का केंद्र बने हुए हैं, लेकिन महायुति सरकार के प्रति नाराजगी कम होने से भाजपा और उसके सहयोगियों को इस चुनाव में लाभ मिल सकता है। दूसरी ओर, विपक्ष को अपनी रणनीति पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, ताकि वे इस बदलते माहौल का सामना कर सकें।
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