सारांश : पश्चिम एशिया में जारी तनाव से तेल की वैश्विक कीमतों में वृद्धि की आशंका पैदा हो गई है। इजराइल और ईरान के बीच संभावित संघर्ष के कारण भारत को गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। भारत अपनी 85% से अधिक तेल की जरूरत आयात से पूरी करता है, ऐसे में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक कैबिनेट बैठक आयोजित की गई, जिसमें इस संकट और इसके संभावित प्रभावों पर विचार किया गया।
पश्चिम एशिया में मौजूदा संकट न केवल उस क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है, बल्कि इसका असर वैश्विक स्तर पर महसूस किया जा रहा है। विशेष रूप से भारत जैसे देश, जो अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए तेल आयात पर निर्भर हैं, इस संकट के चलते आर्थिक दबाव का सामना कर सकते हैं। इजराइल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव और संभावित संघर्ष से तेल की कीमतों में अप्रत्याशित उछाल की आशंका है, जो भारत के लिए गहरी चिंता का विषय बन गया है।
इजराइल-ईरान संघर्ष की संभावना
हाल ही में, इजराइल ने ईरान समर्थित हिजबुल्ला प्रमुख हसन नसरल्ला पर हवाई हमला किया था, जिसमें उनकी मृत्यु हो गई। इस हमले के जवाब में, ईरान ने मंगलवार को इजराइल पर मिसाइल और रॉकेट से हमला किया, जिसके बाद इजराइल ने भी कड़ी जवाबी कार्रवाई करने की धमकी दी। इस घटनाक्रम के बाद, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक बयान में कहा कि इजराइल ईरान के तेल ठिकानों पर हमला कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में भारी उछाल आएगा।
भारत पर संभावित प्रभाव
भारत की आर्थिक संरचना तेल आयात पर अत्यधिक निर्भर है। भारत अपनी कुल तेल जरूरतों का 85% से अधिक हिस्सा आयात से पूरा करता है, और वैश्विक तेल बाजार में किसी भी प्रकार की अस्थिरता से इसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत ने लगभग 2 करोड़ 94 लाख टन कच्चे तेल का आयात किया था, जिसके लिए 132.4 अरब डॉलर का भुगतान किया गया। इस भारी खर्च के बावजूद, अगर तेल की कीमतें और बढ़ती हैं, तो इसका भारतीय खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा और सरकार के बजट पर गंभीर दबाव बनेगा।
वैश्विक तेल बाजार में अस्थिरता
तेल की कीमतों में अस्थिरता पश्चिम एशिया में चल रहे मौजूदा संकट के कारण और भी बढ़ गई है। अगर इजराइल और ईरान के बीच यह तनाव युद्ध में बदलता है, तो वैश्विक तेल आपूर्ति श्रृंखला पर गहरा असर पड़ेगा। इससे तेल की कीमतों में तेजी आएगी, जिससे भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए यह एक आर्थिक आपदा साबित हो सकती है। तेल की बढ़ती कीमतें भारत की आर्थिक स्थिति को कमजोर कर सकती हैं और आम जनता को महंगाई का सामना करना पड़ सकता है।
भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर संकट
भारत दुनिया के तीसरे सबसे बड़े तेल आयातक देशों में से एक है। मौजूदा स्थिति को देखते हुए, तेल की कीमतों में वृद्धि भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है। इससे न केवल सरकार के बजट पर दबाव बढ़ेगा, बल्कि ईंधन की बढ़ती कीमतों के कारण परिवहन और अन्य सेवाओं की लागत भी बढ़ेगी। इसका असर आम जनता पर पड़ेगा और महंगाई दर में तेजी आएगी।
कैबिनेट बैठक में चर्चा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में शुक्रवार को आयोजित एक महत्वपूर्ण कैबिनेट बैठक में इस संकट पर गहन विचार-विमर्श किया गया। इस बैठक में पश्चिम एशिया के मौजूदा संकट और इसके भारत पर संभावित प्रभावों पर चर्चा की गई। बैठक में यह बात उभर कर आई कि भारत को इस संकट के समाधान के लिए कूटनीतिक और आर्थिक कदम उठाने होंगे।
सरकार ने यह भी चर्चा की कि भारत को अपनी ऊर्जा आयात निर्भरता को कम करने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर जोर देना चाहिए। सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाने से तेल आयात पर निर्भरता घटाई जा सकती है, जिससे भविष्य में ऐसे संकटों का प्रभाव कम हो सकेगा।
वैकल्पिक उपाय
भारत को इस संकट से निपटने के लिए अपने वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और हाइड्रो पावर जैसे स्रोतों को बढ़ावा देना न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से फायदेमंद होगा, बल्कि इससे भारत की तेल पर निर्भरता भी कम होगी। इसके अलावा, घरेलू तेल उत्पादन को बढ़ाने और कच्चे तेल के भंडारण के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार करने की जरूरत है, ताकि वैश्विक बाजार में अस्थिरता का प्रभाव कम किया जा सके।
वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका
इस संकट के दौरान, भारत को अपने कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है। पश्चिम एशिया में स्थिरता बनाए रखने के लिए भारत को प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ मिलकर काम करना होगा। साथ ही, तेल उत्पादक देशों के साथ अपने आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
पश्चिम एशिया का मौजूदा संकट भारत के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में सामने आ रहा है। तेल की बढ़ती कीमतों से न केवल देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा, बल्कि आम जनता को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। हालांकि, भारत सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से सतर्क है और विभिन्न रणनीतियों पर काम कर रही है। वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना और तेल आयात पर निर्भरता कम करना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकते हैं। इसके अलावा, सरकार को इस संकट से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी मजबूती देनी होगी।
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