सारांश : अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2024 में कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। 50 राज्यों और वॉशिंगटन डीसी के कुल 538 इलेक्टोरल वोट में से 270 सीटों की आवश्यकता है। ट्रंप और कमला हैरिस के बीच कड़ा मुकाबला है, खासकर महत्वपूर्ण ‘स्विंग’ राज्यों में जहां परिणाम किसी भी समय बदल सकते हैं। इस चुनाव को ऐतिहासिक और रोमांचक माना जा रहा है, जो दुनिया भर के लिए उत्सुकता का केंद्र बन गया है।

US Presidential election 2024 : 50 राज्य, 538 सीटें, Trump और Kamala के बीच कांटे की टक्कर


अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हर चार साल बाद एक खास रोमांच देखने को मिलता है। इस बार भी 2024 के चुनाव में स्थिति कुछ अलग नहीं है। अमेरिका के 50 राज्य और राजधानी वॉशिंगटन डीसी के 538 इलेक्टोरल सीटों में से 270 सीटें जीतने वाला उम्मीदवार अगले राष्ट्रपति के रूप में चुना जाएगा। इस चुनाव में मुख्य मुकाबला डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस और रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के बीच है। चुनावी स्थिति को और भी पेचीदा बनाते हैं ‘स्विंग’ राज्य, जिनके परिणाम किसी भी समय बदल सकते हैं।


क्या हैं ‘स्विंग’ राज्य और क्यों हैं महत्वपूर्ण?

अमेरिका में अधिकतर राज्य परंपरागत रूप से एक ही पार्टी को समर्थन देते हैं। लेकिन चुनावी मुकाबले में अहम माने जाने वाले कुछ राज्य, जिन्हें ‘स्विंग’ राज्य कहा जाता है, में मतदाताओं का रुझान बदलता रहता है। इन्हीं राज्यों पर चुनाव का परिणाम काफी हद तक निर्भर करता है। इन ‘स्विंग’ राज्यों की वजह से चुनावी तस्वीर बदल सकती है, क्योंकि इन राज्यों में मतदाताओं की सोच और रुझान बदलता रहता है।


एनबीसी न्यूज के एग्जिट पोल्स की भूमिका

अमेरिकी चुनावों में एग्जिट पोल्स एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एनबीसी न्यूज के एग्जिट पोल्स के मुताबिक, ट्रंप ने अब तक 54.8% वोटों के साथ बढ़त बना रखी है, जबकि कमला हैरिस 44.4% वोटों के साथ पीछे हैं। हालांकि, यह केवल एक प्रारंभिक आंकड़ा है, और स्विंग राज्यों में किसी भी समय नतीजे बदल सकते हैं। कई एग्जिट पोल्स ट्रंप को बढ़त दिखा रहे हैं, लेकिन अंतिम नतीजे घोषित होने तक कुछ नहीं कहा जा सकता।


इलेक्टोरल कॉलेज का महत्व

इलेक्टोरल कॉलेज के तहत हर राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर एक निश्चित संख्या में इलेक्टोरल वोट मिलते हैं। ये वोट एक तरह से राज्य के मतदाताओं के वोटों को प्रतिनिधित्व करते हैं। इस बार चुनाव जीतने के लिए बहुमत का आंकड़ा 270 है। हालांकि, अगर कोई उम्मीदवार बहुमत में होने के बावजूद इलेक्टोरल कॉलेज में सीटें नहीं जीतता, तो वह राष्ट्रपति नहीं बन सकता।


किन राज्यों में कौन आगे?

नीचे विभिन्न राज्यों में ट्रंप और कमला के बीच का मुकाबला दर्शाया गया है:

अलबामा (9 सीटें): ट्रंप

कैलिफोर्निया (54 सीटें): कमला हैरिस

फ्लोरिडा (25 सीटें): ट्रंप

न्यूयॉर्क (33 सीटें): कमला हैरिस

टेक्सस (32 सीटें): ट्रंप

हर राज्य का इलेक्टोरल वोट मायने रखता है, और प्रत्येक वोट से चुनाव की तस्वीर बदल सकती है। ‘स्विंग’ राज्यों जैसे फ्लोरिडा, पेंसिलवेनिया और जॉर्जिया में कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है।


बहुमत की चुनौती

अमेरिका का चुनावी प्रणाली कुछ इस तरह से है कि कोई उम्मीदवार लोकप्रिय वोट में बढ़त बना सकता है, लेकिन फिर भी राष्ट्रपति नहीं बन सकता। ऐसा कई बार हुआ है जब किसी उम्मीदवार को जनता का समर्थन तो मिला लेकिन इलेक्टोरल वोट में हार का सामना करना पड़ा। इस बार भी ऐसी संभावनाएं हैं कि ट्रंप लोकप्रियता में बढ़त बना सकते हैं, लेकिन इलेक्टोरल कॉलेज में चुनौती बरकरार रहेगी।


चुनावी मुकाबले को लेकर उत्सुकता

इस बार का चुनाव अमेरिकी इतिहास के सबसे दिलचस्प चुनावों में से एक माना जा रहा है। जहां एक ओर ट्रंप की लोकप्रियता उनके समर्थकों में बरकरार है, वहीं कमला हैरिस अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल हैं। दोनों के बीच के इस कांटे के मुकाबले को दुनियाभर में देखा जा रहा है। अमेरिकी नागरिकों के साथ-साथ वैश्विक समुदाय भी इस चुनाव के परिणामों को लेकर उत्सुक है, क्योंकि यह दुनिया की राजनीति और नीति-निर्माण पर गहरा असर डाल सकता है।


आखिरकार कौन बनेगा राष्ट्रपति?

आखिरी नतीजे आने में थोड़ा और समय लग सकता है, लेकिन शुरुआती रुझानों और एग्जिट पोल्स के आधार पर ट्रंप और कमला के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। जैसे-जैसे मतगणना आगे बढ़ रही है, उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। हालांकि, अगर कोई उम्मीदवार बहुमत से आगे भी हो, तो भी उसे इलेक्टोरल वोट में जीत दर्ज करनी होगी।


निष्कर्ष

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2024 एक ऐतिहासिक चुनाव साबित हो सकता है। यहां कांटे की टक्कर के साथ-साथ इलेक्टोरल कॉलेज की जटिलता भी चुनाव को रोचक बनाती है। ट्रंप और कमला के बीच के इस मुकाबले का असर केवल अमेरिका तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भी प्रभाव डाल सकता है। चुनावी परिणाम चाहे जो भी हो, यह चुनाव अमेरिका की लोकतांत्रिक प्रक्रिया और इलेक्टोरल कॉलेज प्रणाली को एक नई दृष्टि से देखने का अवसर प्रदान करेगा।

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