सारांश : संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन प्रजनन दर (Fertility Rate) में गिरावट दर्ज हो रही है। यह गिरावट आने वाले दशकों में सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय ढांचे पर गहरा असर डाल सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि फर्टिलिटी रेट में कमी के कुछ फायदे हैं, लेकिन इसके कई नुकसान भी हैं जो देश के भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं।


भारत में घटती प्रजनन दर: क्या हैं इसके संभावित प्रभाव और लाभ


संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, भारत वर्तमान में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन गया है। 10 नवंबर 2024 तक भारत की जनसंख्या 1.45 अरब से अधिक हो गई है। हालांकि, एक चिंताजनक तथ्य यह है कि बढ़ती जनसंख्या के बावजूद देश में प्रजनन दर तेजी से घट रही है। वर्ष 1950 में जहां औसत प्रजनन दर 6.2 थी, वहीं 2021 तक यह घटकर केवल 2% रह गई है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह प्रवृत्ति जारी रही तो 2050 तक यह दर घटकर 1.3 तक पहुँच सकती है, जिससे भारत की जनसंख्या 2100 तक कम होने की संभावना है।


फर्टिलिटी रेट में कमी के कारण

विशेषज्ञों का कहना है कि फर्टिलिटी रेट में गिरावट के पीछे कई कारण हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन, तनावपूर्ण जीवनशैली और खानपान की आदतों में बदलाव प्रमुख हैं। वॉशिंगटन विश्वविद्यालय और इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन की एक स्टडी के अनुसार, गर्भधारण की प्रक्रिया पहले से अधिक चुनौतीपूर्ण होती जा रही है। इसके अलावा, आधुनिक जीवनशैली के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं, जो फर्टिलिटी पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। इन कारणों से न केवल प्रजनन दर घट रही है, बल्कि बच्चों की मृत्यु दर (चाइल्ड मॉर्टेलिटी) का जोखिम भी बढ़ सकता है।


प्रजनन दर में कमी के दुष्प्रभाव

फर्टिलिटी रेट में कमी से देश के सामाजिक और आर्थिक ढांचे पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों की संख्या में कमी से भविष्य में बुजुर्गों की संख्या बढ़ेगी और युवाओं की कमी होगी, जिससे देश की कार्यबल (लेबर फोर्स) पर असर पड़ेगा। कार्यबल की कमी से देश की आर्थिक वृद्धि रुक सकती है, जिससे आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, फर्टिलिटी रेट में गिरावट से पारिवारिक और सामाजिक संरचना में भी बदलाव आ सकता है, जहां अधिक बुजुर्गों के कारण समाज पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा।


फर्टिलिटी रेट में गिरावट के संभावित लाभ

हालांकि फर्टिलिटी रेट में कमी के कुछ फायदे भी हैं। एक स्टडी के अनुसार, जिन महिलाओं की प्रजनन दर कम होती है, उनकी उम्र में वृद्धि देखी गई है। इसका मतलब है कि कम बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं का स्वास्थ्य बेहतर रहता है और वे अधिक समय तक जीवित रहती हैं। इसके अलावा, कम प्रजनन दर से जनसंख्या पर नियंत्रण होता है, जिससे देश में उपलब्ध संसाधनों पर दबाव कम होता है और उन्हें अधिक कुशलता से उपयोग किया जा सकता है। इससे देश को पर्यावरण संरक्षण और संसाधनों की बेहतर उपलब्धता के मामले में भी लाभ हो सकता है।


भविष्य की संभावनाएं

अगर वर्तमान दर से प्रजनन दर में गिरावट जारी रहती है, तो भारत को अपने जनसंख्या नियंत्रण, स्वास्थ्य सेवाओं और वृद्धजन देखभाल से जुड़े नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा। सरकार को ऐसी योजनाओं की जरूरत है जो संतुलित जनसंख्या बनाए रखने में सहायक हों और युवाओं तथा बुजुर्गों के अनुपात को संतुलित कर सकें। फर्टिलिटी रेट में गिरावट से जुड़े इन प्रभावों को समझते हुए, भारत को एक मजबूत और सतत विकासशील समाज की ओर बढ़ना होगा जो दीर्घकालिक नीतियों और उपायों पर ध्यान केंद्रित करे।

Post a Comment

और नया पुराने