सारांश: भारत सरकार ने अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को संतुलित करने के प्रयास में बर्बन व्हिस्की और कुछ वाइन पर आयात शुल्क में कटौती की। इस फैसले से सरकार को करोड़ों डॉलर का नुकसान होगा। यह कटौती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बैठक से कुछ घंटे पहले की गई थी। हालांकि, ट्रंप ने इसे पर्याप्त नहीं माना और भारत पर उच्च टैरिफ लगाने का इशारा दिया।


अमेरिकी शराब पर सस्ती हुई इम्पोर्ट ड्यूटी, भारत को होगा करोड़ों का नुकसान, ट्रंप की नाराजगी बरकरार


भारत सरकार का नया फैसला: शराब पर इम्पोर्ट ड्यूटी में कटौती

भारत सरकार ने अमेरिकी शराब पर आयात शुल्क घटाने का फैसला किया है। यह कटौती खासतौर पर बर्बन व्हिस्की और कुछ वाइन पर लागू होगी। पहले जहां बर्बन व्हिस्की पर 150% आयात शुल्क था, अब इसे घटाकर 100% कर दिया गया है। इसके अलावा, ताजे अंगूरों से बनी वाइन, वर्माउथ और अन्य फरमेंटेड बेवरेजेज पर भी इम्पोर्ट ड्यूटी घटाकर 100% कर दी गई है।


यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बैठक से ठीक कुछ घंटे पहले लिया गया। बीते वित्तीय वर्ष में भारत ने इन उत्पादों का करीब 1 अरब डॉलर का आयात किया था, जिससे सरकार को अच्छा खासा राजस्व प्राप्त हुआ था। लेकिन नए निर्णय से यह राजस्व घट सकता है।


बर्बन व्हिस्की और अमेरिकी वाइन पर नया शुल्क

नई नीति के तहत बर्बन व्हिस्की पर बेसिक कस्टम ड्यूटी 50% कर दी गई है, जबकि इस पर 50% एग्रीकल्चर सेस भी लगाया जाएगा। बर्बन व्हिस्की विशेष रूप से अमेरिका के केंटुकी राज्य में बनाई जाती है और इसे बनाने में कम से कम 51% मक्के का इस्तेमाल किया जाता है।


आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल भारत ने बर्बन व्हिस्की की दो टैरिफ लाइनों के तहत लगभग 2.6 मिलियन डॉलर का आयात किया था। इसमें अमेरिका से आया आयात लगभग 0.8 मिलियन डॉलर का था। इस कटौती से अमेरिका से आयातित शराब की बिक्री बढ़ सकती है, लेकिन भारत सरकार के राजस्व में भारी कमी आने की आशंका है।


व्यापारिक दबाव और ट्रंप की प्रतिक्रिया

डोनाल्ड ट्रंप पहले ही व्यापारिक संतुलन को लेकर भारत पर कई बार निशाना साध चुके हैं। मोदी से मुलाकात से ठीक पहले उन्होंने दोहराया कि अमेरिका "रेसिप्रोकल टैरिफ" लगाएगा, जिसका मतलब है कि जो देश अमेरिकी उत्पादों पर ऊंचा कर लगाते हैं, अमेरिका भी उन पर उतना ही ऊंचा कर लगाएगा।


ट्रंप ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा टैरिफ लगाने वाले देशों में से एक है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर भारत अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क में और कटौती नहीं करता है, तो अमेरिका भी भारतीय उत्पादों पर भारी शुल्क लगा सकता है।


भारत पर बढ़ रहा वैश्विक व्यापारिक दबाव

अमेरिका ही नहीं, बल्कि ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम (UK), यूरोपीय संघ (EU) और स्विट्जरलैंड भी भारत के ऊंचे आयात शुल्क से असंतुष्ट हैं। हाल ही में भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ एक व्यापार समझौते के तहत वहां की वाइन पर आयात शुल्क कम किया था। इसी तरह, यूके भी स्कॉच व्हिस्की पर टैक्स में कमी की मांग कर रहा है, जबकि यूरोपीय संघ अपने व्यापारिक समूह में उत्पादित वाइन पर शुल्क कटौती की कोशिश कर रहा है।


हार्ले डेविडसन टैक्स विवाद और अमेरिकी असंतोष

भारत सरकार ने 1 फरवरी को पेश किए गए बजट में कई उत्पादों पर आयात शुल्क में कटौती की थी। इसमें हार्ले डेविडसन जैसी महंगी बाइकों का शुल्क भी कम किया गया था। यह फैसला अमेरिका के दबाव के चलते लिया गया था ताकि टैरिफ विवाद को टाला जा सके।


हालांकि, ट्रंप इससे संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने हार्ले डेविडसन का उदाहरण देते हुए भारत पर फिर से ऊंचे टैरिफ लगाने की धमकी दी। अमेरिका चाहता है कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर टैक्स में और कमी करे ताकि अमेरिकी कंपनियों को अधिक मुनाफा हो और उनके उत्पाद भारत में अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकें।


क्या होगा भारत को नुकसान?

शुल्क में कटौती से भारत को दोहरे झटके लग सकते हैं—

  • सरकारी राजस्व में कमी: अब तक, शराब और अन्य उत्पादों पर ऊंचे आयात शुल्क से सरकार को करोड़ों डॉलर का टैक्स मिलता था। अब जब शुल्क कम किया गया है, तो इस राजस्व में गिरावट आ सकती है।
  • स्वदेशी उद्योगों पर असर: सस्ती अमेरिकी शराब के कारण भारतीय उत्पादों की मांग में गिरावट आ सकती है। इससे स्थानीय शराब निर्माताओं और उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों में सुधार हो सकता है और अमेरिका भारतीय उत्पादों पर संभावित प्रतिबंध लगाने से पीछे हट सकता है।


अमेरिका-भारत व्यापारिक संबंधों का भविष्य

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर हमेशा उतार-चढ़ाव रहे हैं। एक ओर, भारत अमेरिकी टेक कंपनियों के लिए बड़ा बाजार है, तो दूसरी ओर, अमेरिका भारतीय फार्मा और आईटी सेक्टर को अपनी नीतियों से प्रभावित करता रहा है।


ट्रंप की नीतियां "अमेरिका फर्स्ट" के सिद्धांत पर आधारित रही हैं, जिनके तहत वे चाहते हैं कि अमेरिकी कंपनियों को अधिक लाभ मिले। दूसरी तरफ, भारत अपनी अर्थव्यवस्था को संतुलित रखते हुए व्यापारिक फैसले लेता है।


अगर अमेरिका ने भारत पर और ज्यादा टैरिफ लगा दिए, तो भारत को भी जवाबी कदम उठाने पड़ सकते हैं। इससे दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों में और तनाव बढ़ सकता है।

Post a Comment

और नया पुराने