अगर आप किसी कंपनी में निवेश करना चाहते हैं या उसका असली आर्थिक हाल जानना चाहते हैं, तो बैलेंस शीट समझना बहुत ज़रूरी है। यह एक ऐसा दस्तावेज़ है जो बताता है कि कंपनी के पास क्या है और उस पर कितना कर्ज़ है — यानी उसकी नेट वर्थ।
बैलेंस शीट का फॉर्मूला है:
संपत्ति (Assets) = देनदारियाँ (Liabilities) + शेयरहोल्डर्स इक्विटी (Shareholders' Equity)
🔹 संपत्ति (Assets)
यह वो सब कुछ है जो कंपनी के पास है।
इसे दो भागों में बाँटा जाता है:
-
करंट एसेट्स (Current Assets): एक साल के अंदर इस्तेमाल या नकद में बदल सकने वाली चीज़ें — जैसे कैश, इनवॉइस, इन्वेंट्री।
-
लॉन्ग-टर्म एसेट्स (Long-Term Assets): एक साल से ज़्यादा समय तक काम आने वाली संपत्तियाँ — जैसे बिल्डिंग, मशीनरी और गुडविल।
सबसे लिक्विड एसेट कैश है, जबकि कम लिक्विड गुडविल या इंटैन्जिबल एसेट्स होते हैं।
🔹 देनदारियाँ (Liabilities)
ये बताती हैं कि कंपनी पर कितना कर्ज़ या ज़िम्मेदारी है।
-
करंट लायबिलिटीज़: एक साल के अंदर चुकाई जाने वाली रकम।
-
लॉन्ग-टर्म लायबिलिटीज़: एक साल से ज़्यादा अवधि के लिए देनदारियाँ — जैसे बैंक लोन।
🔹 शेयरहोल्डर्स इक्विटी (Shareholders' Equity)
यह कंपनी की नेट वर्थ है। अगर कंपनी को बंद कर दिया जाए तो बचे हुए पैसे शेयरहोल्डर्स को मिलेंगे।
फॉर्मूला: इक्विटी = एसेट्स - लायबिलिटीज़
🔍 बैलेंस शीट को समझने के मुख्य सवाल:
-
कंपनी के पास कितना कैश है?
-
क्या अकाउंट्स रिसीवेबल बहुत बढ़ रहे हैं?
-
कंपनी पर कितना कर्ज़ है?
-
सबसे बड़ी देनदारियाँ कौन सी हैं?
-
क्या रिटेन्ड अर्निंग्स पॉज़िटिव हैं?
-
क्या गुडविल बहुत ज़्यादा है?
⚠️ किन संकेतों से सावधान रहें:
-
कंपनी के पास कुल कर्ज़ से कम नकद।
-
मुनाफे की तुलना में इन्वेंट्री या रिसीवेबल का तेज़ी से बढ़ना।
-
गुडविल या इंटैन्जिबल एसेट्स का 50% से ज़्यादा होना।
-
निगेटिव रिटेन्ड अर्निंग्स।
अगर आप इन संकेतों पर ध्यान देंगे तो किसी भी कंपनी की असली वित्तीय स्थिति को आसानी से समझ सकते हैं।
إرسال تعليق