संसद सत्र भारतीय संसद की बैठक का वह कालखंड होता है जब संसद अपनी विधायी और अन्य महत्वपूर्ण कार्यवाही संचालित करती है। भारतीय संसद, जो दो सदनों - लोकसभा और राज्यसभा - से मिलकर बनी है, साल में तीन मुख्य सत्रों में बैठती है: बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र।
सत्रों की सूची
बजट सत्र (फरवरी से मई):
बजट सत्र वर्ष का पहला सत्र होता है और यह सबसे लंबा सत्र होता है। इस सत्र में अगले वित्तीय वर्ष के लिए सरकार का वार्षिक बजट प्रस्तुत किया जाता है। यह सत्र फरवरी के अंतिम सप्ताह में शुरू होता है और मई के प्रारंभ तक चलता है, जिसमें दो चरण होते हैं। पहले चरण में बजट प्रस्तुत किया जाता है और दूसरे चरण में इसे पारित किया जाता है।
मानसून सत्र (जुलाई से सितंबर):
मानसून सत्र जुलाई के तीसरे सप्ताह से शुरू होकर सितंबर के पहले सप्ताह तक चलता है। यह सत्र मुख्यतः नई विधेयकों और प्रस्तावों पर चर्चा करने और उन्हें पारित करने के लिए आयोजित किया जाता है।
शीतकालीन सत्र (नवंबर से दिसंबर):
शीतकालीन सत्र नवंबर के तीसरे सप्ताह से शुरू होकर दिसंबर के मध्य तक चलता है। यह सत्र भी विधायी कार्यवाही और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिए महत्वपूर्ण होता है।
सत्र का महत्व
संसद सत्र के दौरान विभिन्न विधेयकों, प्रस्तावों, नीतियों और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा और निर्णय लिया जाता है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहां निर्वाचित प्रतिनिधि जनता के हितों को संसद में प्रस्तुत करते हैं और उन पर बहस करते हैं।
सत्र की कार्यवाही
संसद सत्र के दौरान सदनों की बैठकें आयोजित होती हैं, जहां विभिन्न मंत्रालयों के कामकाज पर सवाल पूछे जाते हैं, विधेयकों पर चर्चा होती है और उन्हें पारित किया जाता है। सत्र की कार्यवाही के दौरान प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों द्वारा महत्वपूर्ण घोषणाएँ भी की जाती हैं।
विशेष सत्र
कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में संसद का विशेष सत्र भी बुलाया जाता है। यह सत्र सामान्य सत्रों के अतिरिक्त होता है और विशेष मुद्दों या आपातकालीन परिस्थितियों पर चर्चा करने के लिए बुलाया जाता है।
समापन
संसद सत्र का समापन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। सत्र के समापन पर सदन की कार्यवाही की समीक्षा की जाती है और भविष्य के सत्रों के लिए एजेंडा निर्धारित किया जाता है।
भारतीय संसद सत्र भारतीय लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो शासन और नीति निर्माण में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करती है।