मौद्रिक नीति समिति (MPC)

मौद्रिक नीति समिति (MPC) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की एक संवैधानिक संस्था है, जिसका गठन 2016 में किया गया था। इसका मुख्य कार्य देश की मौद्रिक नीति का निर्धारण करना और उपयुक्त नीतिगत दरों (जैसे रेपो रेट) को तय करना है, जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखा जा सके और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित की जा सके। MPC का गठन भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 में किए गए संशोधन के तहत किया गया था।


मौद्रिक नीति समिति (MPC)


संरचना:

मौद्रिक नीति समिति में कुल 6 सदस्य होते हैं। इनमें से 3 सदस्य भारतीय रिजर्व बैंक के होते हैं, जबकि 3 अन्य सदस्य भारत सरकार द्वारा नामांकित होते हैं। RBI गवर्नर MPC के अध्यक्ष होते हैं। इसके अलावा, RBI के डिप्टी गवर्नर (जो मौद्रिक नीति विभाग के प्रमुख होते हैं) और एक अन्य RBI अधिकारी भी समिति के सदस्य होते हैं। सरकार द्वारा नामांकित सदस्य विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ होते हैं और उनकी नियुक्ति 4 वर्षों के लिए की जाती है।


कार्य और जिम्मेदारियां:

MPC का मुख्य उद्देश्य मुद्रास्फीति को एक निश्चित सीमा के भीतर बनाए रखना है, जो वर्तमान में 4% (2% के ऊपर या नीचे) निर्धारित है। समिति नीतिगत दरों जैसे रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) और अन्य मौद्रिक उपकरणों के माध्यम से मौद्रिक नीति का निर्धारण करती है। MPC की बैठकों में ये दरें तय की जाती हैं, और इसके निर्णयों का सीधा असर बैंकों द्वारा दी जाने वाली ब्याज दरों पर पड़ता है, जिससे आर्थिक गतिविधियों पर प्रभाव पड़ता है।


फैसले लेने की प्रक्रिया:

MPC की बैठकें नियमित रूप से होती हैं, और निर्णय बहुमत के आधार पर लिए जाते हैं। प्रत्येक सदस्य के पास एक वोट होता है, और अगर कोई मुद्दा टाई हो जाता है, तो RBI गवर्नर का वोट निर्णायक होता है। हर बैठक के बाद, MPC अपने निर्णयों की जानकारी सार्वजनिक करती है और उन निर्णयों के पीछे के कारणों को भी स्पष्ट करती है।


महत्व:

मौद्रिक नीति समिति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने के लिए नीतिगत निर्णय लेती है। MPC के निर्णयों का प्रभाव न केवल बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र पर पड़ता है, बल्कि आम जनता पर भी सीधा असर होता है, जैसे लोन की ब्याज दरें और EMI का निर्धारण।


समय-समय पर समीक्षा:

MPC की बैठकें वर्ष में चार बार होती हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर और भी बैठकें आयोजित की जा सकती हैं। समिति समय-समय पर मौद्रिक नीति की समीक्षा करती है और यदि आवश्यक हो, तो नीतिगत दरों में संशोधन करती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि अर्थव्यवस्था में कोई असंतुलन न हो, MPC अपने निर्णयों के प्रभाव का नियमित रूप से आकलन करती है।