सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के 65% आरक्षण आदेश पर रोक लगाने से मना कर दिया है। पटना हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार, आरक्षण सीमा को 65% करने के फैसले को रद्द किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
बिहार सरकार को 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाने से मना कर दिया, जिसमें बिहार में आरक्षण सीमा को 65% करने के आदेश को रद्द किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले पर सितंबर में विस्तृत सुनवाई करेगा। फिलहाल, पटना हाईकोर्ट का निर्णय बरकरार रहेगा और आरक्षण सीमा को 65% करने का फैसला लागू नहीं होगा।
पटना हाईकोर्ट का आदेश
पटना हाईकोर्ट ने मार्च में इस मामले पर दायर याचिकाओं की सुनवाई के बाद जून में फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि 65% आरक्षण संवैधानिक रूप से मान्य नहीं है। हाईकोर्ट का तर्क था कि आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती। इस फैसले के बाद बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
बिहार सरकार की प्रतिक्रिया
बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर निराशा जताई है। राज्य सरकार का मानना है कि पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लोगों के लिए अधिक अवसर देने के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाना आवश्यक है। सरकार का कहना है कि वह सुप्रीम कोर्ट में पूरी तैयारी के साथ अपना पक्ष प्रस्तुत करेगी और उम्मीद है कि अंतिम निर्णय उनके पक्ष में होगा।
आरक्षण सीमा बढ़ाने का फैसला
बिहार सरकार ने पिछड़े वर्ग, एससी और एसटी समाज के लोगों के लिए रोजगार और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की सीमा को 50% से बढ़ाकर 65% कर दिया था। इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य इन समाजों के लोगों को अधिक अवसर प्रदान करना था। हालांकि, इस फैसले के बाद कई याचिकाएं पटना हाईकोर्ट में दायर की गई थीं, जिनमें राज्य के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।
याचिकाओं की पृष्ठभूमि
जब बिहार सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने का निर्णय लिया था, तो कई संगठनों और व्यक्तियों ने इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी। याचिकाओं में दावा किया गया कि यह फैसला संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है और आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती। हाईकोर्ट ने इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था।
बिहार में आरक्षण की स्थिति
बिहार सरकार ने पिछले साल नवंबर में राज्य गजट में दो विधेयकों को नोटिफाई किया था, जिनका उद्देश्य पिछड़े और वंचित समाज के लोगों के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाना था। इस निर्णय के बाद बिहार उन बड़े राज्यों में शामिल हो गया था, जहां सबसे अधिक आरक्षण दिया जा रहा था। आरक्षण सीमा को 65% करने पर राज्य में कुल आरक्षण 75% तक पहुंच गया, जिसमें 10% ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) के लोगों के लिए आरक्षण भी शामिल था।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
अब, सभी की निगाहें सितंबर में होने वाली सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर हैं। राज्य सरकार को उम्मीद है कि अदालत का अंतिम निर्णय उनके पक्ष में होगा और वे पिछड़े वर्गों, एससी और एसटी समाज के लोगों को अधिक अवसर प्रदान कर सकेंगे। सरकार ने कानूनी रूप से मजबूत तैयारी करने का निर्णय लिया है ताकि वह अपने पक्ष को मजबूती से प्रस्तुत कर सके।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद बिहार में आरक्षण को लेकर बहस तेज हो गई है। राज्य सरकार और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच इस मसले पर चर्चा जारी है। अब सभी की निगाहें सितंबर में होने वाली सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर हैं, जो इस विवाद का अंतिम निपटारा कर सकती है।
एक टिप्पणी भेजें