सारांश : केंद्र सरकार की लेटरल एंट्री योजना के तहत विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों में ज्वाइंट सेक्रेटरी और अन्य उच्च पदों पर बाहरी विशेषज्ञों की नियुक्ति को लेकर राजनीतिक विवाद छिड़ गया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस योजना को दलितों, ओबीसी और आदिवासियों के आरक्षण पर हमला बताया है, जबकि सरकार ने इसे सरकारी तंत्र में सुधार का कदम बताया है। विपक्ष इस योजना को संविधान विरोधी और बहुजन समाज के अधिकारों के खिलाफ मान रहा है।
केंद्र सरकार ने हाल ही में विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों में ज्वाइंट सेक्रेटरी, डायरेक्टर, और डिप्टी-सेक्रेटरी जैसे उच्च पदों पर नियुक्ति के लिए लेटरल एंट्री योजना की घोषणा की है। इस योजना के तहत, बाहरी विशेषज्ञों को इन पदों पर नियुक्त किया जाएगा, जो सामान्यतः भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), और भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारियों द्वारा भरे जाते हैं। इस पहल ने देश में एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है।
लेटरल एंट्री योजना और विवाद:
यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) ने 17 अगस्त को इस योजना के तहत विभिन्न मंत्रालयों में ज्वाइंट सेक्रेटरी और डायरेक्टर/डिप्टी-सेक्रेटरी के 45 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया। इनमें से 10 पद ज्वाइंट सेक्रेटरी और 25 पद डायरेक्टर/डिप्टी-सेक्रेटरी के लिए हैं। इन पदों पर नियुक्तियां कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर की जाएंगी, और उम्मीदवारों का चयन लेटरल एंट्री के माध्यम से किया जाएगा।
आमतौर पर, इन उच्च पदों पर नियुक्ति के लिए UPSC की परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है, लेकिन लेटरल एंट्री योजना के तहत यह अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है। इस योजना के अनुसार, अब बाहरी विशेषज्ञ भी इन पदों पर नियुक्त हो सकते हैं, जो सरकारी तंत्र में नई सोच और विशेषज्ञता लाने का दावा किया जा रहा है।
राहुल गांधी का विरोध:
कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस योजना की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने इसे बहुजन समाज के अधिकारों पर सीधा हमला करार दिया है। राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट में लिखा, "लेटरल एंट्री दलित, ओबीसी और आदिवासियों पर हमला है। बीजेपी का यह कदम संविधान को नष्ट करने और बहुजन समाज से आरक्षण छीनने की एक साजिश है।"
राहुल गांधी ने इस योजना को संविधान विरोधी और राष्ट्र विरोधी कदम बताया है। उनका मानना है कि यह योजना बहुजन समाज के लिए निर्धारित आरक्षित पदों को हड़पने का एक माध्यम है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार इस योजना के जरिए संविधान के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन कर रही है।
विपक्ष का समर्थन:
राहुल गांधी के साथ ही बहुजन समाज पार्टी (BSP) और समाजवादी पार्टी (SP) ने भी इस योजना का विरोध किया है। दोनों दलों ने इसे बहुजन समाज के अधिकारों के खिलाफ बताया है और इसे संविधान के खिलाफ कदम करार दिया है। विपक्ष का मानना है कि इस योजना के माध्यम से सरकार ने आरक्षित वर्गों के लिए निर्धारित पदों को कमजोर करने की कोशिश की है।
सरकार का पक्ष:
केंद्र सरकार और बीजेपी ने इस योजना के बचाव में कहा है कि लेटरल एंट्री योजना का उद्देश्य सरकारी तंत्र में बाहरी विशेषज्ञता और अनुभव को शामिल करना है, जिससे नीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन अधिक प्रभावी हो सके। बीजेपी का मानना है कि इस योजना से सरकार में नई सोच और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
सरकार का कहना है कि लेटरल एंट्री से चयनित उम्मीदवारों को उनके अनुभव और विशेषज्ञता के आधार पर चुना जाएगा, जिससे सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा। साथ ही, बीजेपी नेताओं ने यह स्पष्ट किया कि इस योजना से आरक्षण प्रणाली पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि यह केवल कुछ विशेष पदों के लिए लागू की जा रही है।
निष्कर्ष:
लेटरल एंट्री योजना ने देश में एक बड़ा राजनीतिक विवाद छेड़ दिया है। जहां एक ओर विपक्ष इसे संविधान और आरक्षण प्रणाली पर हमला बता रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकार इसे सरकारी तंत्र में सुधार के एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देख रही है। इस योजना पर दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस जारी है, और आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस योजना का देश पर क्या प्रभाव पड़ता है और इसके परिणाम क्या होते हैं।
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