सारांश: वन नेशन वन इलेक्शन (ONOE) के 2029 से लागू होने की स्थिति में कई राज्यों की विधानसभाएं अपने कार्यकाल से पहले भंग करनी पड़ेंगी। इसमें उत्तर प्रदेश, पंजाब, बंगाल जैसे प्रमुख राज्य शामिल हैं। इस प्रक्रिया के तहत केंद्र सरकार को संविधान में संशोधन कर विधानसभाओं के पांच साल का कार्यकाल छोटा करना होगा। कोविंद समिति की सिफारिशों के अनुसार, एक साथ चुनाव कराना संभव हो सकेगा। इस प्रक्रिया में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों की विधानसभाओं को 2029 में समय से पहले भंग करना पड़ेगा।
वन नेशन वन इलेक्शन की दिशा में सरकार का कदम
मोदी सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन (ONOE) पर काम शुरू कर दिया है। कोविंद समिति की सिफारिशों को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है। गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा था कि ONOE को इस सरकार के कार्यकाल में ही लागू किया जाएगा। यह योजना बीजेपी के पिछले तीन लोकसभा चुनाव घोषणापत्र का हिस्सा रही है। सरकार द्वारा कोविंद समिति का गठन इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इस वर्ष लोकसभा चुनाव से पहले सौंपी। इसमें लोकसभा और विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की गई है, जिसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराने का प्रस्ताव दिया गया है। अब, कोविंद समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार संसद में विधेयक पेश करेगी।
2029 से लागू होने की संभावनाएं
अगर 2029 से वन नेशन वन इलेक्शन लागू किया जाता है, तो इसके लिए सरकार को अभी से ही संवैधानिक और विधायी प्रक्रियाओं की तैयारी करनी होगी। लोकसभा और विधानसभाओं की अवधि पर संवैधानिक प्रावधानों में संशोधन के बाद, कई राज्यों की विधानसभाओं को 2029 में उनके पांच साल के कार्यकाल से पहले ही भंग करना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम और केरल जैसे राज्यों में कार्यकाल छोटा करना पड़ेगा, ताकि एक साथ चुनाव हो सकें।
कौन से राज्य होंगे प्रभावित?
वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करने के लिए जिन राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल छोटा होगा, उनमें उत्तर प्रदेश का नाम प्रमुख है। 2022 में विधानसभा चुनाव के बाद इसका कार्यकाल 2027 से 2032 तक चलना चाहिए था, लेकिन ONOE लागू होने पर इसे 2029 में ही भंग करना पड़ेगा। इसी तरह, 2026 में चुनाव होने वाले पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम और केरल में भी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 में समाप्त होगा, जिससे ये राज्य भी प्रभावित होंगे।
वहीं, 2023 में 10 राज्यों में चुनाव हुए, जिनमें हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, तेलंगाना, मिजोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान शामिल हैं। इन राज्यों में अगला विधानसभा चुनाव 2028 में होगा, जिससे सरकार का कार्यकाल केवल एक साल या उससे कम समय का होगा।
मौजूदा स्थिति
कुछ राज्यों में वर्तमान में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, जैसे ओडिशा, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश। इन राज्यों में वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने में ज्यादा समस्या नहीं होगी। वहीं, झारखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, मिजोरम, छत्तीसगढ़ और हरियाणा जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले या बाद में होते हैं, जो कि अधिकतम 5-6 महीनों का अंतर रखते हैं। इन राज्यों में भी ONOE को लागू करना संभव है।
संवैधानिक संशोधन की जरूरत
एक साथ चुनाव कराना संविधान का उल्लंघन न हो, इसके लिए कोविंद समिति ने अनुच्छेद 83 में संशोधन की सिफारिश की है, जो लोकसभा की अवधि से संबंधित है। इसी प्रकार, अनुच्छेद 172 में संशोधन की जरूरत है, जो राज्य विधानसभाओं की अवधि से संबंधित है। अगर संसद से इन संशोधनों को मंजूरी मिलती है, तो एक साथ चुनाव कराना संभव हो जाएगा।
समस्या और समाधान की दिशा
वन नेशन वन इलेक्शन के लागू होने के बाद राज्यों की विधानसभाओं को समय से पहले भंग करने की समस्या को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार को अन्य दलों से समर्थन लेना होगा। वर्तमान में कई राज्यों में बीजेपी या एनडीए की सरकार है, जो इस प्रस्ताव के पक्ष में है, लेकिन जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं, उन्हें मनाना आसान नहीं होगा। ऐसे में सरकार को राजनीतिक संवाद के जरिए इसे सफल बनाना होगा।
वन नेशन वन इलेक्शन का उद्देश्य न केवल चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाना है, बल्कि इससे सरकारी खर्च में भी कमी आएगी। यह देश के लोकतांत्रिक ढांचे को भी नई दिशा देगा, जिससे चुनावों में बार-बार आने वाली बाधाएं दूर हो सकेंगी।
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