सारांश: भारत ने सौर ऊर्जा से संचालित एक मानव रहित विमान विकसित किया है, जो 90 दिनों तक लगातार उड़ान भर सकता है। यह विमान 5G सिग्नल प्रसारण और निगरानी जैसे उद्देश्यों के लिए उपयोगी है। यह उपलब्धि भारत को उच्च ऊंचाई वाले प्लेटफॉर्म विकसित करने वाले देशों की श्रेणी में शामिल करती है। इसका पहला प्रोटोटाइप फरवरी में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था, और यह देश की एयरोस्पेस तकनीक में एक बड़ा कदम है।
भारत ने एयरोस्पेस तकनीक के क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है। नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरी (NAL), बेंगलुरु में वैज्ञानिकों ने एक सौर ऊर्जा से संचालित मानव रहित विमान विकसित किया है, जो लगातार 90 दिनों तक उड़ान भरने में सक्षम है। यह विमान सोलर पावर का उपयोग करता है और उच्च ऊंचाई वाले प्लेटफॉर्म (HAPS) के रूप में काम करेगा। इस तकनीक के विकसित होने से भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है, जिन्होंने HAPS तकनीक में महारत हासिल की है।
इस विमान का पहला प्रोटोटाइप सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है, और इसके छोटे मॉडल की लंबाई 5 मीटर है, जिसका वजन मात्र 23 किलोग्राम है। यह विमान निगरानी, संचार और 5G सिग्नल प्रसारण के लिए एक नई क्रांति ला सकता है। एयरोस्पेस लेबोरेटरी द्वारा यह भारत का पहला सोलर पावर से संचालित मानव रहित विमान है, जो भविष्य की रक्षा और संचार जरूरतों के लिए उपयोगी साबित होगा।
एयरोस्पेस प्रदर्शनी में हुआ प्रदर्शन:
12 से 15 सितंबर तक आयोजित भारत रक्षा विमानन प्रदर्शनी में इस तकनीक का प्रदर्शन किया गया था। इस कार्यक्रम का उद्घाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया, जिसमें भारत की उन्नत एयरोस्पेस तकनीक को दिखाया गया। प्रदर्शनी में HAPS तकनीक को व्यापक रूप से समझाया गया और इसके उपयोगों पर चर्चा की गई।
HAPS की क्षमताएं:
यह मानव रहित विमान, एक ड्रोन की तरह, उच्च ऊंचाई पर स्थिर रहकर काम करता है। यह न केवल निगरानी करने में सक्षम है, बल्कि इसके माध्यम से 5G सिग्नल भी प्रसारित किए जा सकते हैं। 5G तकनीक का प्रसारण करने की क्षमता इसे दूरसंचार क्षेत्र में भी बेहद उपयोगी बनाती है। HAPS तकनीक का उपयोग रक्षा, संचार, आपदा प्रबंधन, और पर्यावरण निगरानी जैसे कई क्षेत्रों में हो सकता है।
फरवरी में किया गया सफल परीक्षण:
फरवरी 2024 में, NAL ने इस विमान के छोटे प्रोटोटाइप का परीक्षण कर्नाटक के चैलकेरे में किया था। इस प्रोटोटाइप की लंबाई सिर्फ 5 मीटर थी और इसका वजन 23 किलोग्राम था। वैज्ञानिकों का कहना है कि 2027 तक वे 30 मीटर पंखों वाला और 100 किलोग्राम वजन वाला विमान तैयार करेंगे। यह विमान 15 किलोग्राम पेलोड को ले जाने में सक्षम होगा।
सौर ऊर्जा से चलने वाले विमान:
सोलर एयरक्राफ्ट वे विमान होते हैं जो अपनी ऊर्जा सौर पैनल के माध्यम से प्राप्त करते हैं। इस तरह के विमानों में सौर कोशिकाओं से प्राप्त ऊर्जा का उपयोग होता है, जिसे बैटरी या हाइड्रोजन सेल के माध्यम से संग्रहित किया जाता है। इन विमानों में लगे सोलर पैनल विमान के कुल वजन का लगभग 25% हिस्सा होते हैं। सोलर ऊर्जा का यह उपयोग विमान को लंबे समय तक उड़ान में बनाए रखने में मदद करता है।
सौर ऊर्जा संचालित यह मानव रहित विमान, भारतीय एयरोस्पेस तकनीक के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह तकनीक न केवल भारत को रक्षा क्षेत्र में मजबूत बनाएगी, बल्कि देश को वैश्विक तकनीकी प्रतिस्पर्धा में भी आगे ले जाएगी। HAPS विमान का उपयोग दूर-दराज के क्षेत्रों में संचार सुविधाएं प्रदान करने के लिए भी किया जा सकेगा।
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