सारांश : संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत को स्थायी सदस्यता न मिलने के पीछे सिर्फ चीन ही नहीं बल्कि कई अन्य महत्वपूर्ण कारण भी हैं। भारत की बढ़ती विदेश नीति और आर्थिक ताकत के बावजूद, अमेरिका और चीन जैसे देशों की नीतिगत विरोधाभास भारत के स्थायी सदस्य बनने में बाधा बने हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव और कई देशों के समर्थन के बावजूद, चीन का विरोध और अमेरिका का पुराना राजनीतिक दृष्टिकोण इसके प्रमुख कारण हैं।

India को UNSC की स्थायी सदस्यता क्यों नहीं मिली: China के साथ अन्य बड़ी बाधाएं


भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट क्यों नहीं मिल पाई: कारण सिर्फ चीन नहीं


भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति और विदेश नीति में 21वीं सदी में बड़ा उछाल देखने को मिला। जैसे-जैसे भारत का प्रभाव बढ़ा, ब्रिटेन और अमेरिका भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करने लगे। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी सुरक्षा परिषद को ‘आउटडेटेड’ कहा, खासकर जब कई युद्धों में इसकी सीमित भूमिका रही और इसमें नए देशों को जगह नहीं दी गई। इसके बावजूद, भारत को अब तक सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट क्यों नहीं मिली, इसका विश्लेषण करने पर कई गहरे कारण सामने आते हैं।


नेहरू का नाम जुड़ने की मिथक

भारत की स्थायी सीट न मिलने के मामले में एक मिथक अक्सर उभरता है कि इसके पीछे जवाहरलाल नेहरू का दोष है। सोशल मीडिया पर यह दावा किया जाता है कि नेहरू की एक गलती के कारण भारत को सुरक्षा परिषद की सीट और वीटो पावर नहीं मिली। हालांकि, यह दावा केवल एक भ्रांति है। वास्तविकता यह है कि सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के मामले में कई जटिलताएँ हैं, जिन्हें केवल एक कारण से नहीं समझा जा सकता।


फ्रांसीसी राष्ट्रपति का समर्थन और रूस का पुराना रुख

हाल ही में, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की 79वीं बैठक में भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट देने की बात दोहराई। इससे पहले रूस भी आजादी के बाद से ही भारत के स्थायी प्रतिनिधित्व का समर्थन करता रहा है। रूस का यह समर्थन हमेशा से भारत के पक्ष में रहा है, जो दोनों देशों के ऐतिहासिक और मजबूत संबंधों को दर्शाता है।


चीन: प्रमुख बाधा

जब बात आती है कि भारत को स्थायी सदस्यता क्यों नहीं मिल पाई, तो सबसे बड़ा नाम चीन का आता है। चीन, जो दक्षिण चीन सागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी प्रभुत्व की राजनीति खेलता है, भारत को एक प्रमुख चुनौती के रूप में देखता है। सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के खिलाफ चीन वीटो का इस्तेमाल करता है, और जब उसके पास कोई और कारण नहीं बचता, तो वह पाकिस्तान को वीटो देने की बात उठाता है। चीन का यह रुख केवल भू-राजनीतिक हितों पर आधारित है, जहां वह भारत को स्थायी सदस्यता देने से रोकने का हर संभव प्रयास करता है।


अमेरिका: एक और बड़ी बाधा

चीन की चुनौती के अलावा, अमेरिका की स्थिति भी भारत के लिए बड़ी बाधा रही है। हालांकि अब अमेरिका भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन कर रहा है, लेकिन यह हमेशा से ऐसा नहीं था। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की समाजवादी लोकतंत्र की नीति के चलते भारत और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच गहरे रिश्ते थे, जिसके कारण अमेरिका भारत के खिलाफ था। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अमेरिका का भारत विरोधी रुख स्पष्ट रूप से देखने को मिला था।


इस दौरान अमेरिका ने कई बार भारत के खिलाफ अपने सहयोगी देशों का उपयोग किया। इस विरोधी माहौल के चलते, अमेरिका ने कई मौकों पर भारत की वैश्विक स्थिति को कमजोर करने की कोशिश की। हालांकि, अब अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में सुधार हुआ है, लेकिन अमेरिका का पुराना विरोधी रुख आज भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। यही कारण है कि भारत को स्थायी सदस्यता मिलना इतना कठिन हो गया है।


ब्रिटेन का रुख और मौजूदा स्थिति

अमेरिका और चीन के अलावा, ब्रिटेन भी एक समय भारत के स्थायी सदस्यता के खिलाफ था। हालांकि, 21वीं सदी में भारत की कूटनीति में बड़े बदलाव आने के बाद, ब्रिटेन ने भी अपना रुख बदला और अब वह भारत का समर्थन करता है। इसके बावजूद, चीन और उसके सहयोगी देशों, विशेषकर पाकिस्तान का प्रभाव, भारत के स्थायी सदस्य बनने की राह में सबसे बड़ा अवरोधक है।


संयुक्त राष्ट्र महासचिव का बयान

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी अपनी नाराजगी व्यक्त की थी कि सुरक्षा परिषद में नए देशों को शामिल न किया जाना इसे ‘आउटडेटेड’ बनाता है। संयुक्त राष्ट्र की सीमित भूमिका और UNSC में नए देशों को न आने देने की नीति अब अंतरराष्ट्रीय मामलों में इसकी प्रासंगिकता पर सवाल खड़े करती है। गुटेरेस का बयान यह दर्शाता है कि सुरक्षा परिषद में बदलाव की आवश्यकता है, और भारत इसका एक मजबूत उम्मीदवार हो सकता है।


निष्कर्ष

भारत की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की लड़ाई केवल चीन के विरोध पर निर्भर नहीं है, बल्कि इसके पीछे अमेरिका की पुरानी नीतियाँ और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जटिल समीकरण भी जिम्मेदार हैं। भारत को अभी भी कई वैश्विक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन उसके पक्ष में बढ़ता अंतरराष्ट्रीय समर्थन इसे एक दिन सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट दिला सकता है।


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