सारांश : तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में पहली बार कश्मीर मुद्दे पर चुप्पी साधी, जिससे पाकिस्तान को झटका लगा है। यह बदलाव तुर्की के भारत के साथ संबंध सुधारने और BRICS समूह में शामिल होने की उसकी इच्छा को दर्शाता है। 2019 के बाद पहली बार एर्दोगन ने कश्मीर पर कुछ नहीं कहा, जो तुर्की की नई कूटनीतिक दिशा की ओर इशारा करता है।
तुर्की का यूएन में कश्मीर पर चुप रहना: पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 79वें सत्र में तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने कश्मीर मुद्दे पर चुप रहकर एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत दिया है। 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद से एर्दोगन लगातार कश्मीर का मुद्दा उठाते रहे थे, लेकिन इस बार उन्होंने चुप्पी साध ली। यह निर्णय पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि तुर्की पहले कश्मीर पर पाकिस्तान का समर्थक रहा है।
एर्दोगन की इस चुप्पी को कई लोग तुर्की की बदलती कूटनीतिक रणनीति के रूप में देख रहे हैं। पाकिस्तान ने हमेशा कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश की है और इसमें तुर्की का समर्थन भी उसे मिला था। हालांकि, अब तुर्की का यह रुख बदल रहा है, जो भारत के साथ उसके संबंधों को और बेहतर करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
BRICS में शामिल होने की तुर्की की महत्वाकांक्षा
तुर्की अब उभरती अर्थव्यवस्थाओं के समूह BRICS का हिस्सा बनने के लिए जोर-शोर से प्रयास कर रहा है। BRICS के सदस्य देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। हाल ही में मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को भी BRICS में शामिल किया गया है। तुर्की भी अब इस समूह में अपनी जगह बनाना चाहता है, और इसके लिए उसे भारत के साथ मजबूत संबंधों की आवश्यकता है।
एर्दोगन ने UNGA में अपने भाषण के दौरान कहा, "हम BRICS के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करना चाहते हैं।" यह बयान तुर्की की BRICS में शामिल होने की महत्वाकांक्षा को स्पष्ट करता है। अगर तुर्की BRICS में शामिल हो जाता है, तो वह पहला NATO सदस्य देश होगा, जो इस समूह का हिस्सा बनेगा।
पुतिन की एर्दोगन से उम्मीदें
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी उम्मीद जताई है कि एर्दोगन BRICS शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे, जो अक्टूबर में रूस के कज़ान में होने वाला है। पुतिन ने कहा कि वह 23 अक्टूबर को एर्दोगन से मुलाकात करेंगे। तुर्की की BRICS में शामिल होने की इच्छा को देखते हुए, यह मुलाकात महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। अगर तुर्की BRICS का सदस्य बनता है, तो यह न केवल उसके लिए बल्कि समूह के अन्य सदस्यों के लिए भी एक बड़ा कूटनीतिक कदम होगा।
एर्दोगन और कश्मीर: बदलते रुख की ओर इशारा
पिछले पांच सालों में एर्दोगन ने कई बार UNGA में कश्मीर का मुद्दा उठाया था। उन्होंने 2019 में कश्मीर को लेकर विवादित बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि कश्मीर मुद्दे को न्याय और निष्पक्षता के आधार पर सुलझाया जाना चाहिए। एर्दोगन का यह बयान पाकिस्तान के लिए समर्थन का प्रतीक था, लेकिन इस बार उन्होंने इस मुद्दे पर चुप्पी साधकर एक नया संकेत दिया है।
कश्मीर मुद्दे पर तुर्की की इस चुप्पी को भारत के लिए एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है। इससे यह स्पष्ट होता है कि तुर्की अब भारत के साथ अपने संबंधों को सुधारने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। यह कदम तुर्की की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में बदलाव की ओर इशारा करता है, जहां वह पाकिस्तान की तुलना में भारत के साथ बेहतर संबंधों को प्राथमिकता दे रहा है।
गाजा पर एर्दोगन का फोकस
इस बार UNGA में कश्मीर मुद्दे को उठाने के बजाय, एर्दोगन ने गाजा पर हो रहे अत्याचारों का मुद्दा उठाया। उन्होंने अपने भाषण में कहा, "गाजा में न केवल बच्चे मर रहे हैं, बल्कि संयुक्त राष्ट्र की प्रणाली भी मर रही है, सच्चाई मर रही है, और मानवता की एक बेहतर दुनिया में रहने की उम्मीदें खत्म हो रही हैं।" इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि एर्दोगन अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी प्राथमिकताएं बदल रहे हैं और कश्मीर के बजाय अन्य वैश्विक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
भारत-तुर्की संबंधों की नई दिशा
तुर्की की कूटनीतिक नीति में यह बदलाव भारत के लिए एक सकारात्मक संकेत है। इससे यह स्पष्ट होता है कि तुर्की अब भारत के साथ गहरे संबंध बनाना चाहता है। एर्दोगन की कश्मीर मुद्दे पर चुप्पी और BRICS में शामिल होने की उसकी महत्वाकांक्षा तुर्की की बदलती विदेश नीति की दिशा को दर्शाती है। यह भारत के लिए एक अवसर है, जहां वह तुर्की के साथ अपने संबंधों को और मजबूत कर सकता है।
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