सारांश : सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट निगरानी के लिए बोर्ड के गठन की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह नीतिगत मामला है, जिसे सरकार देखेगी। याचिका में नेटफ्लिक्स की एक सीरीज का हवाला देते हुए ओटीटी पर प्रदर्शित सामग्री पर सर्टिफिकेशन प्रक्रिया लागू करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप से मना कर दिया और कहा कि यह निर्णय लेना सरकार का काम है, न कि न्यायालय का।
ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नियंत्रण की मांग सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी (ओवर-द-टॉप) प्लेटफॉर्म पर कंटेंट की निगरानी के लिए बोर्ड के गठन की मांग को खारिज कर दिया। यह मांग एक याचिका के माध्यम से की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर हिंसा, जुआ, ड्रग्स, और अन्य अवैध चीजों को बढ़ावा देने वाली सामग्री बिना किसी सर्टिफिकेशन के दिखाई जा रही है। इस याचिका को सुनने से इनकार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह मामला सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है और इसे कोर्ट द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
याचिका का आधार और कोर्ट का फैसला
याचिका में कहा गया कि भारत में फिल्म और टीवी कार्यक्रमों का सर्टिफिकेशन केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) द्वारा किया जाता है, लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर दिखाई जाने वाली सामग्री के लिए ऐसी कोई सर्टिफिकेशन व्यवस्था नहीं है। याचिका में नेटफ्लिक्स की सीरीज 'आईसी 814: द कंधार हाईजैक' का उदाहरण दिया गया था, जिसमें कहा गया कि यह सीरीज बिना किसी सर्टिफिकेशन प्रक्रिया के प्रसारित की गई, जो नियमों का उल्लंघन है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इस याचिका को सुनने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि यह मामला सरकार के नीतिगत दायरे में आता है, और न्यायालय इस पर कोई निर्णय नहीं ले सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि ओटीटी पर सामग्री की निगरानी के लिए सरकार पहले से ही आईटी गाइडलाइंस बना चुकी है, लेकिन इस गाइडलाइंस का प्रभाव कितना हो रहा है, इसका मूल्यांकन सरकार करेगी।
ओटीटी कंटेंट पर सर्टिफिकेशन की आवश्यकता
याचिकाकर्ता, वकील शशांक झा, ने कोर्ट में दलील दी कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम सर्टिफिकेशन प्रक्रिया से नहीं गुजरते, जिसके कारण ऐसे दृश्य भी दिखा दिए जाते हैं, जो हिंसा, शराब सेवन, और अन्य हानिकारक चीजों को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की सामग्री पर नियंत्रण न होने से समाज में गलत संदेश जा रहा है और युवा पीढ़ी पर इसका नकारात्मक असर हो रहा है।
याचिका में इस बात का भी उल्लेख किया गया कि 2021 में सरकार द्वारा जारी की गई आईटी गाइडलाइंस का ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स इस गाइडलाइंस का पालन नहीं कर रहे हैं, और विवादित सामग्री को बिना किसी रोक-टोक के प्रसारित कर रहे हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव
याचिकाकर्ता का यह भी तर्क था कि ओटीटी पर दिखाई जाने वाली सामग्री का राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। उनका दावा था कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर हिंसा, अश्लीलता, और अभद्र भाषा से भरे शो आसानी से उपलब्ध हैं, जो न केवल समाज में अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं, बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा कर रहे हैं। उन्होंने इस पर सख्त नियम लागू करने की मांग की, ताकि ऐसी सामग्री को रोका जा सके।
कोर्ट का रुख और सरकारी भूमिका
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपनी पुरानी राय को फिर से दोहराया कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर सामग्री की निगरानी के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं है। इससे पहले 2020 में भी कोर्ट ने इस मुद्दे पर टिप्पणी की थी और कहा था कि सरकार को ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर सामग्री की निगरानी के लिए सख्त नियम बनाने चाहिए। हालांकि, इस बार भी कोर्ट ने कहा कि यह नीतिगत मामला है और इसे सरकार ही देखेगी।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
हालांकि, 2021 में आईटी गाइडलाइंस लागू की गई थीं, जिनके तहत ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को सामग्री की निगरानी और विवादित कंटेंट को हटाने के निर्देश दिए गए थे। लेकिन याचिकाकर्ता का दावा था कि इन गाइडलाइंस का पालन नहीं हो रहा है, और विवादित सामग्री लगातार दिखाई जा रही है।
सरकार द्वारा अब यह देखा जाना बाकी है कि इन प्लेटफॉर्म्स पर सख्ती से गाइडलाइंस का पालन किया जाए या नहीं। सरकार के लिए यह एक चुनौती है कि कैसे ओटीटी पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों को नियंत्रित किया जाए, क्योंकि यह माध्यम बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रहा है और इसमें विविधता और स्वतंत्रता भी अधिक है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया, लेकिन यह स्पष्ट किया कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर सामग्री की निगरानी के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया गया है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर हिंसा, अश्लीलता और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाली सामग्री न दिखाई जाए। इसके लिए जरूरी है कि सरकार नए और सख्त नियम बनाए, ताकि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर सर्टिफिकेशन प्रक्रिया को भी अनिवार्य किया जा सके।
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