सारांश: हरियाणा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस को झारखंड और महाराष्ट्र में सीट बंटवारे को लेकर भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जहां झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने कांग्रेस की सीटें घटाने का फैसला किया, वहीं महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव) के साथ सीटों को लेकर खींचतान जारी है। कांग्रेस की सुस्ती और प्रदेश इकाइयों के अंदरूनी मतभेदों के चलते गठबंधन में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। दोनों ही राज्यों में चुनाव नजदीक हैं, लेकिन कांग्रेस अब तक सीट बंटवारे को अंतिम रूप नहीं दे पाई है, जिससे पार्टी सहयोगियों में नाराजगी देखी जा रही है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार ने न केवल राज्य में पार्टी की स्थिति को कमजोर किया है, बल्कि झारखंड और महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। गठबंधन दल अब कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के लिए तैयार नहीं हैं, जिससे सीट बंटवारे में पेच फंस गया है। झारखंड में झामुमो और महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव) के साथ कांग्रेस की सीटों को लेकर विवाद जारी है।
झारखंड में सीटों पर फंसा पेच
झारखंड में दो चरणों में चुनाव होने हैं, और पहले चरण के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। राज्य में कुल 81 सीटें हैं और कांग्रेस के साथ झामुमो, आरजेडी और माले गठबंधन में हैं। लेकिन झामुमो, जो राज्य में बड़ी पार्टी की भूमिका निभा रही है, कांग्रेस को पिछली बार से कम सीटें देना चाह रही है।
सूत्रों के अनुसार, आरजेडी को 5 और माले को 4 सीटें दी जा रही हैं, जबकि कांग्रेस को 27 सीटें मिल रही हैं। पिछली बार कांग्रेस ने 31 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन झामुमो का तर्क है कि कांग्रेस का प्रदर्शन केवल 27 सीटों पर ही संतोषजनक रहा था।
कांग्रेस इस बार पलामू की चार सीटों पर नहीं लड़ना चाहती, बल्कि दक्षिणी छोटानागपुर की सीटों पर जोर दे रही है। इस मुद्दे पर झामुमो से बातचीत जारी है, और उम्मीद है कि राहुल गांधी की बैठक के बाद सीटों का मामला सुलझ जाएगा।
महाराष्ट्र में कांग्रेस-शिवसेना गठबंधन में खींचतान
महाराष्ट्र में कुल 288 सीटों पर चुनाव होने हैं और यहां कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे), एनसीपी (शरद पवार) और सपा गठबंधन में शामिल हैं। लेकिन सीट बंटवारे को लेकर विवाद जारी है, विशेष रूप से 28 सीटों पर जहां कांग्रेस और शिवसेना के बीच पेच फंसा हुआ है। कांग्रेस मुंबई की सीटों पर दावेदारी कर रही है, जबकि शिवसेना विदर्भ की सीटों पर जोर दे रही है।
महाराष्ट्र में विदर्भ को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, वहीं मुंबई पर शिवसेना का प्रभाव है। शिवसेना के नेता संजय राउत के अनुसार, केवल कुछ सीटों पर ही विवाद है, जिसे कांग्रेस की प्रदेश इकाई जल्द हल कर लेगी।
हरियाणा की हार का असर
झारखंड और महाराष्ट्र में सीट बंटवारे को लेकर सबसे बड़ी बाधा हरियाणा चुनाव में कांग्रेस की हार मानी जा रही है। हरियाणा में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन ने गठबंधन दलों को ज्यादा सीटें न देने का मन बना दिया है। झारखंड में पहले तय हुआ फॉर्मूला, जिसमें कांग्रेस को 29 सीटें मिलनी थीं, अब घटकर 27 पर आ गया है।
यहां तक कि महाराष्ट्र में भी कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के बीच मतभेद हैं, जिससे सीट बंटवारे का मामला सुलझ नहीं पा रहा है। प्रदेश इकाई के नेताओं की सीटों को लेकर आपसी खींचतान ने गठबंधन में असंतोष पैदा कर दिया है।
राहुल गांधी की सक्रियता से उम्मीदें
सीट बंटवारे को लेकर बनी उलझन के बीच कांग्रेस के नेतृत्व की सक्रियता से समाधान की उम्मीद जताई जा रही है। झारखंड और महाराष्ट्र दोनों राज्यों में राहुल गांधी की बैठक के बाद सीट बंटवारे का मामला हल होने की संभावना है। पार्टी की तरफ से उम्मीद जताई जा रही है कि अगले एक-दो दिनों में सीटों का अंतिम फैसला हो जाएगा और उम्मीदवारों का चयन भी जल्द हो सकेगा।
चुनौती: सत्ता में वापसी और कांग्रेस की स्थिति
झारखंड में कांग्रेस की चुनौती सत्ता में वापसी की है, क्योंकि वर्तमान में कांग्रेस झामुमो के साथ राज्य सरकार में शामिल है। 2019 के चुनाव में कांग्रेस को झारखंड की 16 सीटों पर जीत मिली थी, और इस बार उसे अपने पुराने प्रदर्शन को दोहराने की बड़ी चुनौती का सामना करना है।
दूसरी ओर, महाराष्ट्र में कांग्रेस 2014 से सत्ता से बाहर है और पार्टी के लिए यहां जीतना बड़ी चुनौती बनी हुई है। 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने 44 सीटें जीती थीं, लेकिन शिवसेना के साथ महाविकास अघाड़ी सरकार में रहते हुए उसे बड़ी हिस्सेदारी नहीं मिली थी। अब कांग्रेस का उद्देश्य न केवल ज्यादा सीटों पर लड़ना है, बल्कि सत्ता में बड़ी भूमिका निभाने की भी कोशिश है।
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