सारांश : महाराष्ट्र के वर्ली विधानसभा क्षेत्र में चुनावी मुकाबला तेज हो गया है, जहां आदित्य ठाकरे के खिलाफ शिवसेना (शिंदे गुट) ने राज्यसभा सांसद मिलिंद देवड़ा को मैदान में उतारने का फैसला किया है। इस सीट पर मनसे के संदीप देशपांडे भी पहले से ही चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे यह त्रिकोणीय मुकाबला बन गया है। वर्ली की सामाजिक संरचना में मराठी मध्यम वर्ग और मछुआरा समुदाय की भूमिका अहम मानी जा रही है, और सभी उम्मीदवारों के बीच कड़ा संघर्ष देखने को मिल सकता है।
महाराष्ट्र की राजनीति में इस समय वर्ली विधानसभा क्षेत्र पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख नेता आदित्य ठाकरे के खिलाफ शिवसेना (शिंदे गुट) ने अपने उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा सांसद मिलिंद देवड़ा को उतारने का फैसला किया है। यह चुनावी मुकाबला इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने पहले ही इस सीट से संदीप देशपांडे को उम्मीदवार घोषित कर रखा है। इससे वर्ली में त्रिकोणीय संघर्ष का माहौल बन गया है, जो मुंबई की राजनीति को एक नया मोड़ दे सकता है।
शिवसेना (शिंदे गुट) की रणनीति:
शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आदित्य ठाकरे को चुनौती देने के लिए अपने गुट के उम्मीदवार की घोषणा करने में काफी विचार-विमर्श किया। कई संभावित नामों पर चर्चा हुई, जिनमें भाजपा की प्रवक्ता शाइना एनसी और मराठी अभिनेता सुशांत शेलार भी शामिल थे। हालांकि, अंत में पार्टी ने मिलिंद देवड़ा पर भरोसा जताया, जो वर्तमान में राज्यसभा सांसद हैं और दक्षिण मुंबई से तीन बार सांसद रह चुके हैं।
मिलिंद देवड़ा को इस चुनावी मुकाबले में उतारने के पीछे पार्टी की यह सोच है कि वर्ली में मराठी मध्यम वर्ग, मछुआरा समुदाय और संपन्न वर्ग का अच्छा मिश्रण है, जिसे मिलिंद देवड़ा अपने पक्ष में कर सकते हैं। देवड़ा के पास न केवल राजनीतिक अनुभव है, बल्कि उनका एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से संबंध भी है, जिससे उन्हें इस क्षेत्र में खासा समर्थन मिल सकता है।
मनसे की चुनौती:
मनसे ने इस बार वर्ली से अपने उम्मीदवार संदीप देशपांडे को उतारने का फैसला किया है, जो एक प्रमुख नेता हैं और उनकी पार्टी शिवसेना (शिंदे गुट) से समर्थन की उम्मीद कर रही थी। हालांकि, एकनाथ शिंदे ने स्पष्ट कर दिया है कि वे आदित्य ठाकरे के खिलाफ अपनी पार्टी का उम्मीदवार उतारेंगे। इससे मनसे और शिवसेना (शिंदे गुट) के बीच प्रतिस्पर्धा और गहरी हो गई है।
संदीप देशपांडे को वर्ली के स्थानीय मराठी मतदाताओं के बीच अच्छी पकड़ मानी जाती है, लेकिन शिवसेना (शिंदे गुट) से समर्थन न मिलने के बाद उनके लिए चुनौती और भी बढ़ गई है। इसके बावजूद मनसे इस सीट पर एक मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रही है।
आदित्य ठाकरे का किला:
वर्ली विधानसभा क्षेत्र आदित्य ठाकरे के लिए बेहद अहम है। उन्होंने इस सीट से पिछला चुनाव जीता था, हालांकि शिवसेना (यूबीटी) को उस समय मात्र 6500 वोटों की बढ़त मिली थी। यह संकेत देता है कि वर्ली में मुकाबला हमेशा कड़ा रहा है और इस बार तीन प्रमुख उम्मीदवारों के मैदान में होने से यह संघर्ष और भी तीव्र हो गया है।
आदित्य ठाकरे ने हाल ही में वर्ली से अपना नामांकन दाखिल किया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि वे इस सीट पर अपनी पकड़ को बनाए रखने के लिए पूरी तैयारी के साथ चुनावी मैदान में उतरेंगे। उनके नेतृत्व में शिवसेना (यूबीटी) ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया है, जो वर्ली के मतदाताओं के बीच उनकी लोकप्रियता को बढ़ा सकता है।
चुनावी समीकरण:
वर्ली विधानसभा क्षेत्र में इस बार का चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है, जहां तीन प्रमुख नेता आमने-सामने हैं। एक तरफ आदित्य ठाकरे हैं, जो शिवसेना (यूबीटी) का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, दूसरी तरफ मिलिंद देवड़ा, जो शिवसेना (शिंदे गुट) के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतर रहे हैं, और तीसरी तरफ मनसे के संदीप देशपांडे हैं। तीनों ही नेता अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभावशाली हैं और उनके पास मतदाताओं को आकर्षित करने की ताकत है।
वर्ली की सामाजिक संरचना में मराठी मध्यम वर्ग, मछुआरा समुदाय और संपन्न वर्ग का मिश्रण है, जिससे यह चुनाव और भी जटिल हो गया है। शिवसेना (शिंदे गुट) को उम्मीद है कि मिलिंद देवड़ा इन सभी वर्गों को अपने पक्ष में कर सकते हैं, जबकि मनसे अपने मराठी समर्थकों के बीच अच्छा प्रभाव डालने की कोशिश करेगी। आदित्य ठाकरे को अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, क्योंकि उनके सामने अब दो मजबूत प्रतिद्वंद्वी हैं।
निष्कर्ष:
वर्ली विधानसभा चुनाव का यह त्रिकोणीय मुकाबला महाराष्ट्र की राजनीति को एक नया मोड़ दे सकता है। आदित्य ठाकरे, मिलिंद देवड़ा और संदीप देशपांडे के बीच यह संघर्ष राजनीतिक पटल पर कई नए समीकरणों को जन्म दे सकता है। शिवसेना (शिंदे गुट) द्वारा मिलिंद देवड़ा को उम्मीदवार बनाकर यह साफ कर दिया गया है कि वे इस चुनाव को बेहद गंभीरता से ले रहे हैं और आदित्य ठाकरे को चुनौती देने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं।
अब यह देखना होगा कि वर्ली के मतदाता किसे अपना समर्थन देते हैं। क्या आदित्य ठाकरे अपनी पकड़ बनाए रखेंगे या फिर मिलिंद देवड़ा और संदीप देशपांडे में से कोई इस सीट को छीनने में कामयाब होगा? चुनावी नतीजे महाराष्ट्र की राजनीति के भविष्य को दिशा देंगे और यह तय करेंगे कि शिवसेना (शिंदे गुट) और शिवसेना (यूबीटी) के बीच की इस लड़ाई का अंत किस रूप में होगा।
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