सारांश : जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भारी हंगामे के बीच अनुच्छेद 370 की बहाली के समर्थन में प्रस्ताव पारित हुआ। इस दौरान बीजेपी के सदस्यों ने तीखा विरोध जताया, जिसके कारण सदन को कुछ समय के लिए स्थगित करना पड़ा। अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद यह मुद्दा एक बार फिर जोर पकड़ रहा है, जिससे राज्य के राजनीतिक माहौल में उथल-पुथल देखने को मिल रही है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में आज का सत्र काफी हंगामेदार रहा, जहां अनुच्छेद 370 की बहाली को लेकर प्रस्ताव पेश किया गया और जोरदार विरोध के बावजूद इसे पारित कर दिया गया। इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए राज्य के कुछ विधायकों ने अनुच्छेद 370 को राज्य के स्वायत्तता का प्रतीक बताया, वहीं, बीजेपी ने इसका कड़ा विरोध करते हुए सरकार पर राज्य को पीछे धकेलने का आरोप लगाया।
सदन में प्रस्ताव पास, भारी हंगामे के बीच स्थगन विधानसभा सत्र के दूसरे दिन यह प्रस्ताव भारी विवाद का कारण बना। डिप्टी सीएम सुरिंदर कुमार चौधरी ने अनुच्छेद 370 की बहाली की आवश्यकता को प्रमुखता से उठाया, जबकि विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने इसका विरोध जताया। इसके बाद बीजेपी सदस्यों ने सदन में नारेबाजी शुरू कर दी, जिससे कार्यवाही में व्यवधान उत्पन्न हुआ और सदन को 15 मिनट के लिए स्थगित करना पड़ा।
हालांकि, सदन की कार्यवाही फिर से शुरू होने पर भी बीजेपी सदस्य वेल में धरने पर बैठे रहे, और प्रस्ताव के विरोध में अपनी आवाज उठाते रहे। उनका कहना था कि 5 अगस्त 2019 के बाद राज्य का एकीकरण राष्ट्रीय हित में महत्वपूर्ण कदम था और अनुच्छेद 370 की बहाली उस दिशा में एक कदम पीछे ले जाएगा।
अनुच्छेद 370 का ऐतिहासिक संदर्भ अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान में एक विशेष प्रावधान था, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता था। इसके अंतर्गत, जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान था और भारतीय संविधान का केवल अनुच्छेद 1 ही इस पर लागू होता था। इसके तहत, राज्य में अन्य भारतीय कानून लागू नहीं होते थे और राज्य के मामलों में केंद्र की भूमिका सीमित रहती थी। इस विशेष स्थिति के चलते राज्य के पास स्वायत्तता थी और भारत के राष्ट्रपति के पास यहां के संविधान को निलंबित करने का अधिकार नहीं था।
1951 में जम्मू-कश्मीर में संविधान सभा का गठन हुआ था जिसमें अनुच्छेद 370 के जरिए राज्य को यह स्वायत्तता दी गई थी। उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के बीच पांच महीने की बातचीत के बाद इसे लागू किया गया।
अनुच्छेद 370 की समाप्ति और इसके प्रभाव 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने इस अनुच्छेद को हटाकर राज्य का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया। इसके साथ ही, अनुच्छेद 35A को भी हटाया गया, जो राज्य के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार और सुविधाएं प्रदान करता था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया गया। इस फैसले का राज्य और देशभर में व्यापक समर्थन और विरोध दोनों हुआ।
समाज पर प्रभाव और राजनीतिक गतिरोध अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर समाज में व्यापक रूप से विचारधारात्मक विभाजन हुआ है। विधानसभा में पारित इस प्रस्ताव का समर्थन करने वाले इसे राज्य की स्वायत्तता की पहचान के रूप में देखते हैं, जबकि इसके विरोधी इसे राष्ट्रीय एकीकरण और सुरक्षा का मुद्दा मानते हैं। राज्य के कई वर्गों में इसका सामाजिक प्रभाव महसूस किया जा रहा है, जिससे यह मुद्दा समय-समय पर उठता रहता है।
सरकार ने इस विषय पर एक संशोधन प्रस्ताव की संभावना जताई है, जिसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है। हालांकि, इस फैसले का राजनीतिक वातावरण पर क्या असर होगा, यह आने वाले समय में साफ हो सकेगा। इस मुद्दे पर राज्य और केंद्र के बीच तनाव और बातचीत का दौर चलता रहेगा।
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