सारांश: सुप्रीम कोर्ट ने एलएमवी ड्राइविंग लाइसेंस धारकों को 7500 किलोग्राम तक के हल्के ट्रांसपोर्ट वाहन चलाने की अनुमति दी है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह निर्णय सुनाया, जो दुर्घटना मामलों में मुआवजे के दावों के विवादों में बीमा कंपनियों के तर्कों को खारिज करता है। इस फैसले के अनुसार, बीमा कंपनियां एलएमवी लाइसेंस धारकों द्वारा चलाए गए वाहनों में हुए दुर्घटना मुआवजे के दावों को अस्वीकार नहीं कर सकतीं। अदालत ने इस मामले पर निर्णय दिया कि एलएमवी लाइसेंस धारकों को ट्रांसपोर्ट वाहनों के लिए अलग लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है। केंद्र सरकार इस फैसले के अनुरूप मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन लाने पर विचार कर रही है।


सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: एलएमवी लाइसेंस से 7500 किलोग्राम तक के ट्रांसपोर्ट वाहन चलाने की अनुमति

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि जिनके पास लाइट मोटर व्हीकल (एलएमवी) का ड्राइविंग लाइसेंस है, वे 7500 किलोग्राम तक के हल्के ट्रांसपोर्ट वाहन भी चला सकते हैं। यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने दिया। कोर्ट ने इस निर्णय के साथ ही बीमा कंपनियों द्वारा इस मामले में दिए गए तर्कों को खारिज किया है, जिसमें उन्होंने एलएमवी लाइसेंस धारकों द्वारा ट्रांसपोर्ट वाहन चलाने पर मुआवजे का दावा अस्वीकार करने की मांग की थी। अब बीमा कंपनियां ऐसे मामलों में मुआवजा देने से इनकार नहीं कर सकतीं।


बीमा कंपनियों के तर्क:

बीमा कंपनियों का कहना था कि मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण और अदालतें उनके आपत्तियों की अनदेखी करते हुए बीमा दावे का भुगतान करने के आदेश दे रही हैं। अदालतों में कई मामले सामने आए थे, जहां बीमा कंपनियों को मुआवजा देने के आदेश दिए गए थे। कंपनियों का मानना था कि एलएमवी लाइसेंस केवल गैर-व्यावसायिक हल्के वाहनों के लिए है और व्यावसायिक या ट्रांसपोर्ट वाहनों के लिए अलग लाइसेंस होना चाहिए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्पष्ट किया कि 7500 किलोग्राम तक वजन वाले हल्के ट्रांसपोर्ट वाहनों को चलाने के लिए एलएमवी लाइसेंस पर्याप्त है।


सरकार की योजना में बदलाव:

अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमनी ने कोर्ट को सूचित किया कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 में बदलाव पर विचार किया जा रहा है, जिसे शीतकालीन सत्र में संसद में पेश किया जा सकता है। इस फैसले के बाद केंद्र सरकार शीतकालीन सत्र में एमवी एक्ट में संशोधन ला सकती है, ताकि भविष्य में इसी तरह के विवाद न खड़े हों और बीमा कंपनियों और ड्राइवरों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश तय हो सकें।


2017 का मुकुंद देवांगन केस:

इस फैसले का आधार 2017 में मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले में दिया गया था, जिसमें अदालत ने कहा था कि 7500 किलोग्राम तक वजन वाले ट्रांसपोर्ट वाहन को एलएमवी की परिभाषा में शामिल किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद, बीमा कंपनियां एलएमवी लाइसेंस धारकों द्वारा हल्के ट्रांसपोर्ट वाहन चलाने पर मुआवजे के दावे को नकारने का अधिकार नहीं रखतीं।


बीमा कंपनियों के दावे पर सुप्रीम कोर्ट का रुख:

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने बीमा कंपनियों के दावों को निरस्त करते हुए कहा कि कानून का सामाजिक असर भी ध्यान में रखना जरूरी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में केवल कानून के नियमों की बात नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक प्रभाव भी समझना आवश्यक है, ताकि लाखों ड्राइवरों को किसी तरह की परेशानी न हो।


मुख्य याचिका बजाज आलियांज की तरफ से:

इस फैसले की मुख्य याचिका बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की तरफ से दायर की गई थी। इस फैसले में संविधान पीठ ने 76 याचिकाओं पर सुनवाई की। इन याचिकाओं में यह तर्क दिया गया था कि 7500 किलोग्राम तक के वाहनों के लिए एलएमवी लाइसेंस को अनुमति देने से दुर्घटना मामलों में बीमा दावों की संख्या बढ़ सकती है। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को खारिज करते हुए एलएमवी लाइसेंस धारकों के अधिकार को मान्यता दी।


कानून में संभावित संशोधन:

यह देखना अहम होगा कि सरकार मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन कर किस प्रकार के नियम तय करती है। नए नियमों के तहत हल्के ट्रांसपोर्ट वाहनों के लिए विशेष प्रावधान किए जाने की संभावना है, ताकि बीमा कंपनियां और लाइसेंस धारक दोनों को बेहतर स्पष्टता मिल सके।

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