सारांश : संविधान दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए भारतीय संविधान की ऐतिहासिकता और इसकी प्रासंगिकता पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने संविधान को लोकतांत्रिक मूल्यों की आधारशिला और सामाजिक न्याय के लक्ष्य का प्रतीक बताया। इस अवसर पर उन्होंने कई स्मारक सिक्के और डाक टिकटों का विमोचन किया और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को श्रद्धांजलि अर्पित की।
नई पिढ़ी को संविधान का महत्व समझाने का प्रयास
आज संविधान दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित संयुक्त सत्र में अपना संबोधन दिया। इस दिन को लेकर देश में संविधान लागू होने के 75 वर्षों की गौरवमयी यात्रा पूरी हुई। राष्ट्रपति मुर्मू ने इस ऐतिहासिक दिन को याद करते हुए कहा कि यह एक महत्वपूर्ण अवसर है, जब हम संविधान के निर्माण और उसकी शक्ति के प्रतीक बने हैं। उन्होंने संविधान को लोकतांत्रिक मूल्यों का आधार बताया और संविधान सभा के उन महान नेताओं को श्रद्धांजलि अर्पित की जिन्होंने इस ऐतिहासिक दस्तावेज को तैयार किया।
संविधान: भारतीय लोकतंत्र की नींव
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि "संविधान दिवस पर हम सभी एक ऐतिहासिक अवसर के हिस्सेदार हैं। 75 साल पहले, इस कक्ष में संविधान को स्वीकृति दी गई और हम सभी ने इसे अपनाया। हमारा संविधान लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक है, जो हमारे स्वतंत्रता संग्राम और हमारे सामाजिक आदर्शों को समर्पित है। संविधान ने न्याय, समानता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों को न केवल स्थापित किया, बल्कि इन्हें हमारे जीवन का हिस्सा भी बना दिया।"
राष्ट्रपति ने भारतीय लोकतंत्र की उत्पत्ति पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "भारत लोकतंत्र की जननी है। हमें उन सभी महान व्यक्तित्वों को याद करना चाहिए जिन्होंने हमारे संविधान को आकार दिया। बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्होंने संविधान सभा का नेतृत्व किया, और बीएन राव जैसे महान व्यक्तित्व जिन्होंने संविधान की रूपरेखा तैयार की।"
संविधान में बदलाव और समाज का उत्थान
राष्ट्रपति ने संविधान के प्रासंगिकता को बताते हुए कहा कि यह एक जीवंत और प्रगतिशील दस्तावेज है। समय के साथ-साथ संविधान में कई बदलाव किए गए हैं, जिससे समाज में न्याय और समानता सुनिश्चित की जा सकी। उन्होंने कहा, "हमारा संविधान समय के साथ विकसित हुआ है और यह हमें हमेशा प्रेरित करता है। इसके माध्यम से हम समाज में समरसता, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर कार्य कर रहे हैं।"
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने कई योजनाओं के माध्यम से कमजोर वर्गों की भलाई के लिए ठोस कदम उठाए हैं। उदाहरण स्वरूप, गरीबों को पक्के घर, बिजली, पानी, सड़क जैसी सुविधाएं दी गईं और सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए कई योजनाएं शुरू की गईं।
संविधान की भावना के अनुसार कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका का मिलकर कार्य करना आवश्यक
राष्ट्रपति ने संविधान की भावना को निभाने की आवश्यकता को महसूस करते हुए कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका से अपील की कि वे मिलकर काम करें और जनकल्याण के लिए हमेशा समर्पित रहें। उन्होंने जीएसटी जैसे कदमों का उदाहरण देते हुए कहा कि यह देश के आर्थिक एकीकरण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
राष्ट्रपति ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम का भी उल्लेख किया, जिसे महिलाओं के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए संविधान की भावना का पालन करना जरूरी है।
समाज में समरसता और न्याय के लिए निरंतर प्रयास
राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि न्यायपालिका लगातार विचाराधीन कैदियों के कल्याण के लिए प्रयासरत है और समाज के कमजोर वर्गों को न्याय प्रदान करने की दिशा में काम कर रही है। इस प्रक्रिया से हमारे संवैधानिक अधिकारों को और मजबूती मिलती है और समाज में समानता और समरसता का निर्माण होता है।
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की श्रद्धांजलि
राष्ट्रपति ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके शब्दों को याद किया। उन्होंने कहा कि डॉ. प्रसाद ने संविधान को जीवंत बनाए रखने का महत्व बताया था। उन्होंने कहा था, "संविधान को जीवंत बनाए रखना उन लोगों पर निर्भर करता है जो उसका संचालन करते हैं।" राष्ट्रपति ने आगे कहा कि आज तीन चौथाई संविधान यात्रा के बाद देश ने उल्लेखनीय सफलता हासिल की है और आने वाली पीढ़ियों को इस सफलता से अवगत कराना चाहिए।
संविधान का वैश्विक प्रभाव
राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय संविधान केवल हमारे देश के लिए नहीं, बल्कि अन्य देशों के लिए भी एक आदर्श है। संविधान में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने का संदेश भी दिया गया है। आज भारत न केवल आर्थिक रूप से मजबूत है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी शांति और समृद्धि का प्रतीक बन चुका है।
निष्कर्ष
संविधान दिवस के इस अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने न केवल भारतीय संविधान के महत्व को रेखांकित किया, बल्कि उसकी प्रासंगिकता और विकास की यात्रा को भी उजागर किया। उनका यह संबोधन इस बात का संकेत है कि हमारा संविधान समय के साथ और समाज की जरूरतों के अनुसार विकसित हो रहा है। यह न केवल हमारे अधिकारों और कर्तव्यों का संकलन है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में निरंतर प्रगति की ओर मार्गदर्शन भी करता है।
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