सारांश : महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए सत्ता संघर्ष छिड़ने की संभावनाएं हैं। महाविकास आघाड़ी (एमवीए) और महायुति गठबंधन में शामिल दलों के बीच मुख्यमंत्री पद और अन्य मुद्दों पर गहरे मतभेद हैं। इन मतभेदों को भूलकर सरकार बनाने के लिए उन्हें केवल 72 घंटे मिलेंगे। एमवीए में जाति जनगणना और हिंदुत्व के मुद्दे पर अलग-अलग रुख हैं, जबकि महायुति में एनसीपी (अजीत पवार गुट) ने भाजपा के नारे पर सवाल उठाए हैं।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद गठबंधन में सत्ता संघर्ष
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए एक बार फिर खींचतान होने की संभावनाएं बढ़ रही हैं। महाविकास आघाड़ी (एमवीए) और सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन के दलों में मुख्यमंत्री पद पर प्रमुखता से होड़ मच सकती है। महाराष्ट्र की राजनीति में सीएम पद का सवाल हमेशा से विवादास्पद रहा है, और इस बार चुनावी नतीजों के बाद सत्ता की तस्वीर बदल सकती है।
एमवीए में मतभेदों का दौर
महाविकास आघाड़ी, जिसमें शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) शामिल हैं, में कई मुद्दों पर आपसी मतभेद हैं। शिवसेना कांग्रेस के वीर सावरकर पर बयान देने का विरोध करती है। कांग्रेस और एनसीपी की विचारधारा में अंतर के चलते एमवीए में जाति जनगणना और हिंदुत्व से जुड़े अन्य मुद्दों पर भी अलग-अलग राय देखने को मिलती है। चुनावी नतीजों के बाद, जब सरकार गठन की आवश्यकता होगी, तो एमवीए को इन मतभेदों को दरकिनार करना पड़ेगा।
महायुति गठबंधन में खींचतान
दूसरी ओर, महायुति गठबंधन में भाजपा और एनसीपी (अजीत पवार गुट) के बीच भी अनबन जारी है। अजीत पवार गुट ने भाजपा के प्रमुख नारे "बटेंगे तो कटेंगे" पर सवाल उठाए हैं। गठबंधन के सहयोगियों के बीच यह असहमति चुनाव नतीजों के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर तनाव और खींचतान का कारण बन सकती है। हालांकि भाजपा ने एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने का निर्णय लिया था, लेकिन चुनाव में उन्हें सीएम का चेहरा नहीं बनाया गया है। गृह मंत्री अमित शाह ने साफ किया है कि सीएम पद का फैसला चुनाव परिणामों के बाद ही लिया जाएगा।
महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष का इतिहास
महाराष्ट्र की राजनीतिक व्यवस्था पिछले कुछ वर्षों से अस्थिर रही है। बीते चुनाव में जनादेश के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर मतभेद के कारण राज्य में कई बार सत्ता में बदलाव हुआ। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने पहले देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी, लेकिन 80 घंटों के बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। ढाई साल बाद शिवसेना में विभाजन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में भाजपा की नई सरकार बनी। एनसीपी में भी विभाजन हो गया। ऐसे में महाराष्ट्र ने पांच साल में तीन-तीन मुख्यमंत्री देखे।
मुख्यमंत्री पद की अहमियत
मुख्यमंत्री पद महाराष्ट्र में राजनीतिक दलों के बीच आपसी संघर्ष का मुख्य कारण है। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग होकर कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, जब उन्हें सीएम पद का आश्वासन मिला था। लेकिन अब कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) की स्थिति मजबूत है, और वे खुद सरकार के नेतृत्व का सपना देख रहे हैं। भाजपा, जिसने मजबूरी में शिंदे को सीएम बनाया था, का भी सत्ता की बागडोर संभालने का सपना बरकरार है।
वोट बैंक और चुनावी रणनीतियाँ
गठबंधनों के दल चुनावी सीटों पर जोर देते हुए अपने-अपने वोट बैंक को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। शिंदे गुट मराठा वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए है, जबकि अजीत पवार गुट एनसीपी के पुराने वोट बैंक को साधने का प्रयास कर रहा है। भाजपा अपने ओबीसी-अगड़ा समीकरण को मजबूत करते हुए पुराने प्रदर्शन को दोहराना चाहती है, ताकि चुनाव के बाद सीएम पद पर दावेदारी मजबूत कर सके। यह संघर्ष चुनाव परिणाम आने के बाद मुख्यमंत्री पद की खींचतान को और बढ़ा सकता है।
चुनाव परिणाम और सरकार गठन का समय
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे 23 नवंबर को आने हैं, जबकि मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को समाप्त हो जाएगा। सरकार गठन के लिए दोनों गठबंधनों को केवल 72 घंटे का समय मिलेगा। इस अल्प अवधि में सभी मतभेदों को किनारे कर सरकार बनानी होगी। जनादेश चाहे किसी भी गठबंधन के पक्ष में हो, लेकिन सीएम पद के सवाल पर खींचतान मचने की संभावना है। यह सवाल भी उठता है कि चुनाव परिणाम के बाद महायुति और एमवीए के दल अपने गठबंधन को कायम रख पाएंगे या नहीं।
गठबंधन में भरोसे की कमी
दोनों गठबंधनों में सहयोगी दलों के बीच विश्वास की कमी स्पष्ट दिखाई देती है। शिवसेना का राजग से अलग होना, शिवसेना में विभाजन, एनसीपी में विद्रोह, भाजपा और उद्धव ठाकरे के बीच अनबन—ये सब घटनाएँ सीएम पद से जुड़ी असहमति के कारण ही हुई हैं। इसलिए, चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद की होड़ में नए समीकरण उभर सकते हैं।
निष्कर्ष
महाराष्ट्र की राजनीति में मुख्यमंत्री पद की महत्ता और चुनावी गठबंधन की जटिलताएँ चुनाव परिणाम के बाद नया मोड़ ले सकती हैं। एमवीए और महायुति दोनों ही गठबंधन के दलों के बीच की आपसी खींचतान और सत्ता की लालसा के चलते राज्य की राजनीति में अस्थिरता बनी रह सकती है। चुनाव परिणाम और इसके बाद 72 घंटों के भीतर सरकार गठन की प्रक्रिया के बीच, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कौन सा गठबंधन अंतिम रूप से सत्ता में आएगा और कैसे सत्ता का संतुलन बनाए रखेगा।
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