सारांश: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ‘एक देश, एक चुनाव’ प्रणाली को देश के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि इससे विकास की गति तेज होगी और शिक्षकों पर चुनाव कार्य का अतिरिक्त भार कम होगा। इसके साथ ही, उन्होंने प्रकृति केंद्रित विकास की अवधारणा पर भी बल दिया। कलबुर्गी के सेडम में आयोजित भारत संस्कृति उत्सव-7 के उद्घाटन समारोह में उन्होंने यह विचार साझा किए।
भारत की चुनाव प्रणाली में सुधार की जरूरत
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की वकालत करते हुए इसे देश के विकास के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि देश में बार-बार होने वाले चुनावों से न केवल आर्थिक संसाधनों पर भार पड़ता है, बल्कि इससे शिक्षा व्यवस्था भी प्रभावित होती है।
कलबुर्गी जिले के सेडम में आयोजित भारत संस्कृति उत्सव-7 और कोट्टल स्वर्ण जयंती समारोह में उन्होंने कहा कि ‘एक देश, एक चुनाव’ लागू होने से देश में स्थिरता आएगी और प्रशासनिक कार्यों में गति बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि इस प्रणाली को लेकर एक विस्तृत अध्ययन किया गया है, जिसके तहत 18,524 पृष्ठों की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है।
लोकसभा और विधानसभा चुनावों का एक साथ आयोजन
रामनाथ कोविंद ने बताया कि वर्तमान में देश में अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं, जिससे सरकार और प्रशासन का ध्यान बार-बार चुनावी प्रक्रियाओं में उलझ जाता है। उन्होंने सुझाव दिया कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराया जाए, जिससे सरकार की नीतियों और विकास योजनाओं को लागू करने में अधिक सुविधा होगी।
उन्होंने यह भी कहा कि स्थानीय निकाय चुनावों को भी एक निर्धारित समय सीमा में पूरा कर लिया जाना चाहिए। उनका मानना है कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव संपन्न कर लिए जाएं, तो इससे प्रशासनिक दक्षता में सुधार होगा।
शिक्षा व्यवस्था पर चुनावों का असर
कोविंद ने चुनाव प्रणाली के कारण शिक्षकों पर पड़ने वाले प्रभाव का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि चुनावी कार्यों में शिक्षकों को बार-बार संलग्न करने से स्कूलों में शिक्षा प्रभावित होती है। बच्चे सुचारू रूप से पढ़ाई नहीं कर पाते, जिससे उनकी शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि अगर ‘एक देश, एक चुनाव’ प्रणाली लागू होती है, तो इससे शिक्षकों को उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी—शिक्षण—पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलेगा।
प्रकृति केंद्रित विकास की अवधारणा
रामनाथ कोविंद ने अपने भाषण में प्रकृति केंद्रित विकास की भी वकालत की। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति वेदों और उपनिषदों से जुड़ी हुई है, जिसमें प्रकृति को पूजनीय माना गया है। उन्होंने बताया कि पंचभूत—पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश—भारतीय जीवनशैली के अभिन्न अंग हैं और हमें इनके संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सेडम में आयोजित भारत संस्कृति संगम एक ऐसा मंच है, जहां भारत की सांस्कृतिक जड़ों को और मजबूत किया जाएगा। उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम प्रकृति केंद्रित विकास को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
महाकुंभ और प्रकृति आराधना
रामनाथ कोविंद ने प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले का उदाहरण देते हुए बताया कि भारत में प्रकृति आराधना की परंपरा सदियों पुरानी है। उन्होंने कहा कि गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम स्थल को पवित्र मानकर हम वहां स्नान और पूजा करते हैं। यह भारतीय संस्कृति की प्रकृति प्रेम की परंपरा को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि हमें इस परंपरा को बनाए रखते हुए, पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास पर भी ध्यान देना चाहिए।
समारोह में प्रमुख हस्तियों की उपस्थिति
भारत संस्कृति उत्सव-7 के उद्घाटन समारोह में कई प्रमुख हस्तियां उपस्थित रहीं। इनमें भारत विकास संगम के संस्थापक के.एन. गोविंदाचार्य, कोट्टल बसवेश्वर भारतीय शिक्षण संस्थान के संस्थापक बसवराज पाटिल सेडम, विजयपुरा ज्ञान योगाश्रम के बसवलिंग श्री, बीदर के गुरुनानक संस्थान के सरदार बलबीर सिंह, अदम्य चेतना अध्यक्ष तेजस्विनी अनंत कुमार और कलबुर्गी दाहोस पीठ की डॉ. दक्षायाणी अब्बाजी शामिल थे।
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