सारांश : मकर संक्रांति भारत का एक प्रमुख पर्व है जो विभिन्न राज्यों में स्थानीय परंपराओं और मान्यताओं के साथ मनाया जाता है। उत्तर में लोहड़ी, पूर्व में बिहू, दक्षिण में पोंगल और उत्तराखंड में उत्तरायणी जैसे त्योहार इस सांस्कृतिक विविधता के प्रतीक हैं। ये उत्सव न केवल बदलते मौसम का स्वागत करते हैं बल्कि सामाजिक मेलजोल और समृद्धि के भी प्रतीक हैं।


Makar Sankranti : विविध परंपराओं का अनोखा संगम


मकर संक्रांति: परंपराओं का अनोखा संगम

मकर संक्रांति का पर्व भारत की सांस्कृतिक विविधता का अद्भुत उदाहरण है। यह त्योहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने और दिन-रात की अवधि में बदलाव के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। देशभर में यह पर्व अपने स्थानीय रूपों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे खिचड़ी पर्व के रूप में जाना जाता है, तो दक्षिण भारत में इसे पोंगल और असम में माघ बिहू के नाम से मनाया जाता है।


लोहड़ी: पंजाब की परंपराओं का प्रतीक

पंजाब और हरियाणा में मकर संक्रांति से पहले लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। 13 जनवरी को धूमधाम से मनाए जाने वाले इस पर्व से जुड़ी दुल्ला भाटी की कहानी समाज में विद्रोह और न्याय की प्रेरणा देती है। लोकगीतों और रेवड़ी-मूंगफली के साथ मनाए जाने वाले इस त्योहार का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी गहरा है। आग जलाकर उसके चारों ओर नृत्य करना इस पर्व का मुख्य आकर्षण होता है।


उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी पर्व

उत्तर भारत के राज्यों में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व के रूप में मनाने की परंपरा है। इस दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व होता है। लोग तिल-गुड़ के लड्डू बांटते हैं और खिचड़ी बनाकर सहभोज करते हैं। खिचड़ी न केवल सरल भोजन है, बल्कि सादगी और सामूहिकता का प्रतीक भी है।


पोंगल: तमिलनाडु का फसल उत्सव

तमिलनाडु में मकर संक्रांति को पोंगल के नाम से जाना जाता है। यह चार दिवसीय त्योहार समृद्धि और फसल के आगमन का प्रतीक है। पहले दिन भोगी पोंगल के साथ घर की सफाई और पुराने सामान का त्याग होता है। दूसरे दिन थाई पोंगल पर सूर्य देव की पूजा की जाती है। मट्टू पोंगल के दिन मवेशियों की पूजा होती है, जबकि चौथा दिन कन्या पोंगल परिवार और सामाजिक संबंधों को समर्पित होता है।


उत्तराखंड का उत्तरायणी पर्व और घुघुतिया की परंपरा

उत्तराखंड में मकर संक्रांति को उत्तरायणी के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व पर तिल-गुड़ बांटने के अलावा ‘घुघुतिया’ नामक विशेष पकवान बनाया जाता है। एक लोककथा के अनुसार, राजा कल्याण चंद के पुत्र घुघुती की कहानी इस परंपरा से जुड़ी है। इस दिन कौवों को घुघुतिया खिलाने की प्रथा भी है, जो प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का प्रतीक है।


त्योहारों का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

मकर संक्रांति और इसके विविध रूपों के माध्यम से भारतीय समाज में एकता और सांस्कृतिक साझेदारी की भावना प्रकट होती है। इन त्योहारों का मूल उद्देश्य न केवल मौसम परिवर्तन का उत्सव मनाना है, बल्कि लोगों को आपस में जोड़ना और सामूहिकता की भावना को जीवित रखना भी है। तिल-गुड़ के साथ सामाजिक मेलजोल का यह पर्व हर उम्र के लोगों को आपस में जोड़ता है।


निष्कर्ष:

मकर संक्रांति के विविध रूप और परंपराएं भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं। चाहे वह लोहड़ी की आग हो, पोंगल की मिठास हो या खिचड़ी का साधारण भोजन, ये सभी त्योहार हमारे जीवन में आनंद और सामूहिकता का संदेश देते हैं।

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