सारांश: वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में जोरदार उछाल देखने को मिला है। इस अवधि में एफडीआई इक्विटी इनफ्लो 47.8% की वृद्धि के साथ $16.17 बिलियन तक पहुंच गया, जो पिछले साल की तुलना में काफी अधिक है। सर्विस, कंप्यूटर, टेलीकॉम और फार्मा सेक्टर ने इस वृद्धि में मुख्य भूमिका निभाई। कुल मिलाकर, एफडीआई इनफ्लो $22.49 बिलियन तक पहुंच गया। सिंगापुर, मॉरीशस और अमेरिका से सबसे ज्यादा निवेश आया, जबकि जापान, ब्रिटेन और जर्मनी से कमी दर्ज की गई।
वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में ऐतिहासिक वृद्धि दर्ज की गई है। इस अवधि में एफडीआई इक्विटी इनफ्लो $16.17 बिलियन तक पहुंच गया, जो कि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की तुलना में 47.8% अधिक है। यह वृद्धि ऐसे समय में आई है जब जीडीपी की विकास दर में कुछ हद तक सुस्ती देखने को मिली है, लेकिन विदेशी निवेशकों का भारत पर भरोसा बरकरार है।
एफडीआई में उछाल के मुख्य कारण:
एफडीआई की इस जोरदार वृद्धि के पीछे मुख्य रूप से सर्विस, कंप्यूटर, टेलीकॉम और फार्मा सेक्टर का योगदान रहा है। इन सेक्टरों में लगातार निवेश बढ़ रहा है, जिससे भारत में निवेश का माहौल सकारात्मक बना हुआ है। डीपीआईआईटी (उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, अगर इक्विटी इनफ्लो के साथ-साथ पुनर्निवेशित आय और अन्य पूंजी को भी जोड़ा जाए, तो पहली तिमाही में कुल एफडीआई 28% बढ़कर $22.49 बिलियन हो जाता है।
प्रमुख निवेशक देश:
भारत में सबसे अधिक एफडीआई निवेश सिंगापुर से आया, जहां से $3.9 बिलियन का निवेश दर्ज किया गया। इसके बाद मॉरीशस ($3.2 बिलियन), अमेरिका, नीदरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, केमैन आइलैंड और साइप्रस का स्थान रहा। हालांकि, जापान, ब्रिटेन और जर्मनी से आने वाले निवेश में गिरावट देखी गई है, जो कि कुछ हद तक चिंताजनक है।
पिछले वित्त वर्ष की स्थिति:
पिछले वित्त वर्ष में, एफडीआई के इक्विटी इनफ्लो में गिरावट देखी गई थी। वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान, कुल एफडीआई $44.42 बिलियन रहा, जो कि एक साल पहले की तुलना में 3.49% कम था। इस गिरावट का प्रमुख कारण वैश्विक आर्थिक अस्थिरता और निवेशकों की चिंता रही, लेकिन इस वर्ष की शुरुआत में ही निवेश के आंकड़े सकारात्मक संकेत दे रहे हैं।
निवेश के प्रमुख क्षेत्र:
वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में सर्विस सेक्टर में सबसे अधिक निवेश हुआ है। इसके साथ ही, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर, टेलीकॉम और फार्मास्यूटिकल्स सेक्टरों में भी जबरदस्त निवेश हुआ है। इन क्षेत्रों में बढ़ते निवेश का कारण सरकार की प्रोत्साहन योजनाओं और नीतिगत सुधारों को माना जा सकता है, जिसने विदेशी निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है।
चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ:
हालांकि एफडीआई में इतनी वृद्धि उत्साहजनक है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ भी बनी हुई हैं। जापान, ब्रिटेन और जर्मनी से निवेश में गिरावट का मतलब है कि इन देशों के साथ द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को और मजबूत करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक तनावों का असर भी निवेश प्रवाह पर पड़ सकता है।
भारत में एफडीआई का भविष्य संभावनाओं से भरा है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ नवाचार और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है। सरकार की "मेक इन इंडिया" और "डिजिटल इंडिया" जैसी योजनाओं ने भी विदेशी निवेश को आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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