सारांश : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के घर गणपति पूजा में शामिल होने पर राजनीतिक हलचल तेज हो गई। विपक्ष इसे न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाने वाला कदम मान रहा है, जबकि सत्तारूढ़ पार्टी इसे सामान्य शिष्टाचार बता रही है। इस मामले ने आर्टिकल 50 की चर्चा को फिर से हवा दी है, जो कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति के विभाजन का प्रावधान करता है।


Ganapati पूजा में PM Modi की CJI से मुलाकात पर विवाद: आर्टिकल 50 पर बढ़ी चर्चा


गणपति महोत्सव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के घर गणेश पूजा में शामिल होने की घटना ने देश की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके समर्थक इस मुलाकात को सामान्य शिष्टाचार और मेलजोल का हिस्सा मानते हैं, वहीं विपक्ष इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर हमला मान रहा है। इस मुद्दे पर आर्टिकल 50 की चर्चा भी जोर पकड़ रही है, जो न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्ति विभाजन का प्रावधान करता है।


गणपति पूजा और विवाद की शुरुआत

गणपति महोत्सव के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के घर गणेश पूजा में शामिल हुए। इस मुलाकात की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गए। इसके तुरंत बाद, विपक्ष ने इसे लेकर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और इस मुलाकात को न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करने वाला कदम बताया।


सीजेआई के घर गणेश पूजा में पीएम मोदी की मौजूदगी ने विपक्ष को यह कहने का मौका दिया कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच स्पष्ट अंतर होना चाहिए। इस घटना के बाद से बार-बार भारतीय संविधान के आर्टिकल 50 का हवाला दिया जा रहा है, जो "शक्ति विभाजन" पर जोर देता है। इसके तहत न्यायपालिका और कार्यपालिका को स्पष्ट रूप से अलग रखने की बात की गई है, ताकि न्यायिक स्वतंत्रता बनी रहे।


आर्टिकल 50 क्या कहता है?

भारतीय संविधान का आर्टिकल 50 न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच स्पष्ट विभाजन की बात करता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायिक प्रणाली पूरी तरह से स्वतंत्र रहे और कार्यपालिका का उस पर कोई प्रभाव न हो। आर्टिकल 50 के तहत यह प्रावधान किया गया है कि देश की सार्वजनिक सेवाओं में कार्यपालिका और न्यायपालिका को अलग-अलग रखा जाए, ताकि दोनों में कोई टकराव न हो और निष्पक्षता बरकरार रहे।


यह प्रावधान सत्ता के केंद्रीकरण को रोकने और कार्यपालिका की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए महत्वपूर्ण है। जब न्यायपालिका और कार्यपालिका स्वतंत्र होती हैं, तो न्यायिक प्रणाली बिना किसी दबाव के निष्पक्ष फैसले ले सकती है। इससे सरकार की कार्यवाही पर भी नियंत्रण रखा जा सकता है।


सीजेआईआर और विपक्ष का विरोध

कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (सीजेएआर) ने पीएम और सीजेआई की इस मुलाकात को अनुचित करार दिया है। उनका मानना है कि इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता पर प्रश्न उठते हैं और यह एक गलत उदाहरण प्रस्तुत करता है। सीजेएआर ने इससे पहले भी न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच विभाजन के उल्लंघन की घटनाओं का जिक्र किया है, जैसे पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा अपने ही मामले की सुनवाई और कुछ जजों का राजनीति में जाना।


सीजेएआर और विपक्ष ने आर्टिकल 50 का हवाला देते हुए इस मुलाकात की आलोचना की है। उनके अनुसार, इस प्रकार की मुलाकातें न्यायपालिका की निष्पक्षता को कमजोर करती हैं और इससे जनता के बीच गलत संदेश जाता है।


न्यायपालिका की स्वतंत्रता का महत्व

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में न्यायपालिका की स्वतंत्रता बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यदि न्यायपालिका कार्यपालिका के अधीन हो जाती है, तो सरकार की नीतियों और कार्यों पर निगरानी कमजोर हो जाती है। न्यायपालिका का स्वतंत्र रहना यह सुनिश्चित करता है कि सरकार की मनमानी पर रोक लगाई जा सके और जनता के अधिकारों की रक्षा हो।


1970 के दशक में इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी करार देते हुए उन्हें चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराया था। यह मामला न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता का एक बड़ा उदाहरण माना जाता है। इस फैसले ने यह साबित किया कि न्यायपालिका सरकार के खिलाफ भी निष्पक्ष फैसले लेने में सक्षम है।


सुप्रीम कोर्ट की मिसालें

सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार कार्यपालिका से दूरी बनाए रखने और न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखने पर जोर दिया है। 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फुल कोर्ट मीटिंग के दौरान यह निर्णय लिया कि जजों को अपनी गरिमा बनाए रखते हुए कार्यपालिका से दूरी बनाए रखनी चाहिए। न्यायपालिका के प्रति जनता की नज़रों में उनकी निष्पक्षता बनी रहे, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है।


हालांकि, न्यायपालिका और कार्यपालिका के प्रमुखों के बीच कई बार मुलाकातें होती हैं, खासकर जब सीबीआई प्रमुख, मुख्य सतर्कता आयुक्त जैसी नियुक्तियों के मामले आते हैं। ऐसे मामलों में प्रधानमंत्री, सीजेआई और विपक्ष के नेता मिलकर निर्णय लेते हैं। इन मुलाकातों का उद्देश्य संवैधानिक जिम्मेदारियों को पूरा करना होता है।


निष्कर्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के घर गणपति पूजा में शामिल होने से उत्पन्न विवाद ने एक बार फिर से न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संबंधों पर बहस छेड़ दी है। आर्टिकल 50 की चर्चा यह सुनिश्चित करती है कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच स्पष्ट विभाजन हो, ताकि न्यायपालिका स्वतंत्र रह सके और जनता के विश्वास को कायम रखा जा सके।


हालांकि, यह भी सच है कि दोनों शक्तियों के प्रमुखों के बीच कई बार मुलाकातें जरूरी होती हैं, लेकिन न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखना हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

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