सारांश : ब्रिक्स देशों के बीच स्थानीय मुद्रा में व्यापार को बढ़ावा देने का ऐलान किया गया है, जिससे अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को सीधी चुनौती मिलने की संभावना है। इस निर्णय से वैश्विक वित्तीय तंत्र में नए बदलाव देखने को मिल सकते हैं। भारत, रूस और चीन जैसे महाशक्तियों ने मिलकर इस योजना पर सहमति जताई है, जिसका उद्देश्य डॉलर पर निर्भरता कम करना है।
ब्रिक्स सम्मेलन में डॉलर की चुनौतियों पर चर्चा
ब्रिक्स सम्मेलन में इस बार दुनिया की तीन बड़ी आर्थिक महाशक्तियों - भारत, रूस और चीन ने मिलकर पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका को सीधी चुनौती दी है। यह चुनौती व्यापार और वित्तीय लेन-देन में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करने के लिए है। सम्मेलन में इन तीन देशों के साथ-साथ ब्रिक्स समूह के अन्य सात देशों ने भी स्थानीय मुद्रा में व्यापार करने के प्रस्ताव पर सहमति जताई। इस कदम का मुख्य उद्देश्य वैश्विक व्यापार में डॉलर के प्रभाव को कमजोर करना और एक नई व्यापारिक व्यवस्था का निर्माण करना है।
स्थानीय मुद्रा में व्यापार की सहमति
ब्रिक्स देशों के बीच यह सहमति हुई कि आपसी व्यापार के लिए अब डॉलर के बजाय स्थानीय मुद्राओं का उपयोग किया जाएगा। इसका मतलब है कि भारत और अन्य ब्रिक्स देश अब अपने व्यापारिक लेन-देन में अमेरिकी डॉलर की जगह अपनी-अपनी मुद्रा का प्रयोग करेंगे। उदाहरण के तौर पर, भारत रूस या चीन से व्यापार करते वक्त डॉलर की जगह रुपये या युआन का इस्तेमाल कर सकेगा। यह फैसला वैश्विक व्यापारिक व्यवस्था में बड़े बदलाव का संकेत दे रहा है, क्योंकि अभी तक अधिकांश अंतरराष्ट्रीय व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता आया है।
नए बैंकिंग नेटवर्क की योजना
ब्रिक्स सम्मेलन में एक और महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया, जिसके तहत ब्रिक्स देशों ने 'कॉरेस्पॉन्डेंट बैंकिंग नेटवर्क' को मजबूत करने का फैसला किया है। यह नया बैंकिंग नेटवर्क स्थानीय मुद्राओं में भुगतान और निपटान को सक्षम बनाने में मदद करेगा। यह पहल ब्रिक्स सीमापार भुगतान पहल (बीसीबीपीआई) के तहत शुरू की जाएगी, जो स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी है। इससे ब्रिक्स देशों के बीच व्यापारिक लेन-देन सरल और सस्ता हो जाएगा, जो अब तक डॉलर के माध्यम से किया जाता था।
ब्रिक्स में नए सदस्यों का शामिल होना
इस बार के ब्रिक्स सम्मेलन की एक और खासियत यह थी कि इसमें पांच नए सदस्य देशों को भी शामिल किया गया। ब्रिक्स में अब ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के अलावा मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हो गए हैं। इन नए सदस्यों के शामिल होने से ब्रिक्स का वैश्विक प्रभाव और भी बढ़ जाएगा। इसके अलावा, ब्रिक्स समूह में अब अधिक व्यापारिक और आर्थिक सहयोग देखने को मिल सकता है।
अमेरिकी डॉलर पर संभावित प्रभाव
ब्रिक्स देशों का यह फैसला अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व पर सीधी चोट करता है। अब तक अधिकांश वैश्विक व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता था, जो अमेरिका की सबसे बड़ी ताकत मानी जाती है। डॉलर में होने वाले व्यापार से अमेरिका को कई आर्थिक लाभ मिलते थे, लेकिन ब्रिक्स देशों के इस कदम के बाद अमेरिका को आर्थिक मोर्चे पर नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। अगर अधिक देश स्थानीय मुद्रा में व्यापार करना शुरू करते हैं, तो अमेरिकी डॉलर की मांग में कमी आ सकती है, जिससे इसका वैश्विक प्रभाव कमजोर हो सकता है।
भारत, रूस और चीन का नेतृत्व
ब्रिक्स सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मिलकर इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। इन तीन देशों के बीच हुई सहमति से स्पष्ट संकेत मिलता है कि यह महाशक्तियां अब अमेरिकी दबदबे से मुक्त होकर स्वतंत्र व्यापारिक व्यवस्था की ओर बढ़ना चाहती हैं। यह फैसला न केवल आर्थिक, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव देखने को मिल सकता है।
डिजिटल बुनियादी ढांचे का विकास
ब्रिक्स घोषणा पत्र में यह भी कहा गया कि सदस्य देश संयुक्त रूप से डिजिटल बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की संभावनाओं का अध्ययन करेंगे। इस बात पर भी चिंता व्यक्त की गई कि 21वीं सदी में तेजी से हो रहे डिजिटलीकरण से मानव जीवन के हर पहलू पर असर पड़ा है। ब्रिक्स नेताओं ने डेटा की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचाना और इसके समाधान के लिए सहयोग को तेज करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
वित्तीय निपटान और पुनर्बीमा कंपनी
ब्रिक्स देशों ने व्यापार बढ़ाने के साथ-साथ स्थानीय मुद्राओं में वित्तीय निपटान की व्यवस्था बनाने पर भी सहमति जताई है। इसके अलावा, ब्रिक्स पुनर्बीमा कंपनी की स्थापना के लिए भी सकारात्मक कदम उठाए गए हैं। यह कंपनी सदस्य देशों के बुनियादी ढांचे और सतत विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
नव विकास बैंक की भूमिका
ब्रिक्स सम्मेलन में नव विकास बैंक (एनडीबी) की भूमिका पर भी चर्चा हुई। नेताओं ने इसे 21वीं सदी के एक नए प्रकार के बहुपक्षीय विकास बैंक के रूप में विकसित करने पर सहमति जताई। इस बैंक की सदस्यता बढ़ाने और इसके संचालन को प्रभावी बनाने पर भी जोर दिया गया। एनडीबी का उद्देश्य सदस्य देशों के बुनियादी ढांचे और सतत विकास को बढ़ावा देना है।
अंतिम विचार
ब्रिक्स देशों के बीच स्थानीय मुद्रा में व्यापार को बढ़ावा देने का यह फैसला वैश्विक व्यापारिक व्यवस्था में नए बदलावों का संकेत है। इससे न केवल अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती मिलेगी, बल्कि ब्रिक्स देशों के बीच व्यापारिक और आर्थिक सहयोग भी बढ़ेगा। यह कदम भारत, रूस और चीन के नेतृत्व में वैश्विक शक्ति संतुलन को नए सिरे से परिभाषित कर सकता है।
एक टिप्पणी भेजें