सारांश : सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट की वैधता को बरकरार रखते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को पलट दिया। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार शिक्षा को नियमित करने का अधिकार रखती है, लेकिन किसी छात्र को धार्मिक शिक्षा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा बोर्ड को दी गई फाजिल और कामिल जैसी डिग्री प्रदान करने की शक्ति को असंवैधानिक बताते हुए इसे हटा देने का आदेश दिया।


सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट को दी मान्यता, धार्मिक शिक्षा पर मजबूरी नहीं, डिग्री देने का अधिकार खत्म

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट को दिया समर्थन, छात्रों पर धार्मिक शिक्षा का दबाव न डालने का निर्देश


सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट की संवैधानिकता पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस एक्ट को मान्यता देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया जिसमें मदरसों के छात्रों का दाखिला सामान्य स्कूलों में करवाने का आदेश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मदरसा एक्ट संवैधानिक है, लेकिन मदरसा बोर्ड को डिग्री देने का अधिकार हटाया जाना चाहिए।


मदरसा शिक्षा को लेकर सरकार का अधिकार और कोर्ट की प्रतिक्रिया


सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, राज्य सरकार के पास शिक्षा को नियंत्रित और नियमित करने का अधिकार है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि शिक्षा प्रणाली में कुछ बुनियादी मानदंडों का पालन हो। इनमें से कुछ पहलुओं में छात्रों का स्वास्थ्य, सिलेबस और प्रशासनिक व्यवस्थाएं शामिल हो सकती हैं।


सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा शिक्षा के धार्मिक पहलू को समझते हुए कहा कि यद्यपि मदरसे धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य छात्रों को शिक्षित करना ही होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी छात्र को धार्मिक शिक्षा के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, और इस दिशा में कोई भी कदम संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।


मदरसा बोर्ड को डिग्री देने का अधिकार खत्म


इस फैसले का एक अहम हिस्सा मदरसा बोर्ड द्वारा फाजिल, कामिल जैसी डिग्रियां देने के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी रही। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मदरसा एक्ट में यह प्रावधान देना असंवैधानिक है क्योंकि यह यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) एक्ट का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने इस प्रावधान को हटाने का निर्देश दिया, जिससे अब मदरसे छात्रों को आधिकारिक डिग्री नहीं दे सकेंगे।


इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को पलटा


इससे पहले, मार्च में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी मदरसा एक्ट को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताया था। हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्य के मदरसों के सभी छात्रों को सामान्य स्कूलों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए। इसके बाद, इस आदेश पर विवाद बढ़ा, और सुप्रीम कोर्ट ने इसे 5 अप्रैल को अंतरिम रोक लगाकर विचाराधीन बना लिया। सुप्रीम कोर्ट ने 22 अक्टूबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा, और अब 5 नवंबर को अंतिम निर्णय सुनाया।


धार्मिक और सेक्युलर शिक्षा का संतुलन बनाए रखने पर जोर


सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और मदरसा बोर्ड को ऐसी व्यवस्था बनाने की भी अनुमति दी, जिसमें मदरसे के धार्मिक चरित्र को बनाए रखते हुए छात्रों को सेक्युलर शिक्षा दी जा सके। कोर्ट का मानना है कि धार्मिक शिक्षा का अधिकार रखते हुए भी, छात्रों के हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और उन्हें आधुनिक और सेक्युलर शिक्षा से भी जोड़ा जाना चाहिए।


सुप्रीम कोर्ट का निर्देश - शिक्षा पर कोई बाध्यता न हो


सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी छात्र को धार्मिक शिक्षा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। यह फैसला उन सभी शिक्षण संस्थानों पर लागू होगा जो धार्मिक शिक्षा देने के साथ-साथ सामान्य शिक्षा भी प्रदान करते हैं। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की शिक्षा नीति सुनिश्चित करती है कि छात्रों को उनकी पसंद के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने की स्वतंत्रता मिले और किसी भी प्रकार का धार्मिक दबाव उन पर न हो।


योगी सरकार को झटका


इस फैसले से योगी सरकार को झटका माना जा रहा है। यूपी सरकार ने मदरसा एक्ट में कुछ बदलावों का प्रस्ताव किया था, जिसमें मदरसा शिक्षा में सुधार लाने और इसे नियंत्रित करने के प्रयास शामिल थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यूपी सरकार के प्रयासों को एक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।

Post a Comment

और नया पुराने