सारांश : जुलाई-सितंबर तिमाही में भारत की GDP वृद्धि दर घटकर 5.4% रह गई, जो अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। भारी बारिश से खनन और निर्माण कार्य प्रभावित हुए, वहीं मांग में कमी और ऊंची ब्याज दरों ने स्थिति को और गंभीर बना दिया। विशेषज्ञ और सरकार, RBI से ब्याज दरों में कटौती की अपील कर रहे हैं, लेकिन केंद्रीय बैंक अभी भी अपने सख्त रुख पर अड़ा है।


गिरती GDP, थमी अर्थव्यवस्था और RBI की जिद: क्या ब्याज दरों में कटौती बनेगी समाधान?


GDP की गिरावट: विकास दर सात तिमाहियों के निचले स्तर पर

जुलाई-सितंबर 2024 की तिमाही में भारत की GDP वृद्धि दर 5.4% पर आ गई, जबकि इससे पहले अप्रैल-जून तिमाही में यह 6.7% थी। यह गिरावट मुख्य रूप से लंबी बारिश के कारण खनन और निर्माण गतिविधियों के ठप होने की वजह से हुई। खनन और उत्खनन उद्योग का GDP में योगदान 2.2% से 2.5% के बीच है, जबकि मैन्युफैक्चरिंग का योगदान 17% है। दोनों क्षेत्रों में आई गिरावट का असर समग्र GDP पर स्पष्ट रूप से दिखा।


मांग में गिरावट: बढ़ती चिंता

विश्लेषकों का मानना है कि देश में खपत में गिरावट, अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है। ऊंची ब्याज दरें उपभोक्ताओं की मांग को सीमित कर रही हैं। ऐसे में मांग को बढ़ाने के लिए RBI को ब्याज दरों में कटौती करनी होगी ताकि बाजार में पैसा पहुंचे और लोग खर्च करने के लिए प्रोत्साहित हों।


क्या ब्याज दरों में कटौती बनेगी समाधान?

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ब्याज दरों में कमी से उपभोक्ताओं के लिए कर्ज लेना सस्ता हो जाएगा। इससे होम लोन, कार लोन और अन्य व्यक्तिगत ऋण सस्ते होंगे, जो उपभोक्ताओं को खर्च करने के लिए प्रेरित करेगा। इसके अलावा, कम ब्याज दरें व्यवसायों को नए निवेश के लिए प्रोत्साहित करेंगी। खासतौर पर छोटे और मझोले उद्योगों (MSME) को इसका सीधा फायदा होगा, जिससे औद्योगिक उत्पादन और व्यापारिक गतिविधियां तेज होंगी।


RBI की सख्ती और बढ़ती महंगाई

हालांकि, RBI अपने सख्त रुख पर अड़ा हुआ है। गवर्नर शक्तिकांत दास ने महंगाई पर नियंत्रण को अपनी प्राथमिकता बताया है। RBI का कहना है कि नीतिगत दरें बदलने के लिए अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों का अनुसरण करना जरूरी नहीं है। हालांकि, यह भी स्पष्ट है कि ऊंची ब्याज दरों के बावजूद महंगाई पर पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका है।


अक्टूबर 2024 में खुदरा महंगाई दर 6.21% रही, जो RBI की तय सीमा से अधिक है। इससे यह सवाल उठता है कि ऊंची ब्याज दरों से महंगाई को नियंत्रित करने की रणनीति कितनी प्रभावी रही है।


सरकार और विशेषज्ञों की अपील

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल जैसे वरिष्ठ नेताओं ने RBI से ब्याज दरों में कटौती की अपील की है। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने भी संकेत दिया कि अब RBI को समय की मांग को समझना चाहिए।


आगे की राह: संतुलन की आवश्यकता

भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय दोहरी चुनौती का सामना कर रही है—महंगाई को नियंत्रित करना और विकास दर को बढ़ाना। इसके लिए जरूरी है कि RBI महंगाई और विकास के बीच संतुलन बनाए। ब्याज दरों में कटौती, घरेलू मांग को बढ़ावा देकर अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे सकती है।

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