सारांश: सुप्रीम कोर्ट ने जीएसटी और कस्टम्स एक्ट के तहत बिना उचित कारण गिरफ्तारी को अवैध ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि इन मामलों में भी नागरिकों को वही अधिकार प्राप्त हैं, जो सीआरपीसी और बीएनएसएस में दिए गए हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जीएसटी और कस्टम्स अधिकारी पुलिस अधिकारियों की तरह शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकते।
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: जीएसटी और कस्टम्स एक्ट के तहत गिरफ्तारी पर नई गाइडलाइंस
सुप्रीम कोर्ट ने जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) और कस्टम्स एक्ट (सीमा शुल्क अधिनियम) के तहत होने वाली मनमानी गिरफ्तारियों को अवैध करार दिया है। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस एम.एम. सुंदरेश की तीन सदस्यीय बेंच द्वारा सुनाया गया। कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी केवल तभी हो सकती है, जब उसके लिए ठोस कारण दर्ज किए जाएं और उसका उचित आधार हो।
गिरफ्तारी पर रोक: नागरिकों के अधिकारों की रक्षा
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जीएसटी और कस्टम्स मामलों में नागरिकों को वह सभी अधिकार मिलते हैं, जो दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के तहत दिए गए हैं। कोर्ट ने कहा कि सरकार किसी भी कानून के माध्यम से नागरिकों को डराने या उन पर मनमाने ढंग से कार्रवाई करने का अधिकार नहीं रखती।
गिरफ्तारी से पहले उचित कारण जरूरी
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से जुड़े पीएमएलए (मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम) कानून में दी गई गाइडलाइंस का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि पीएमएलए की धारा 19(1) के अनुसार, गिरफ्तारी से पहले यह लिखित रूप में दर्ज किया जाना आवश्यक है कि आरोपी की गिरफ्तारी क्यों जरूरी है। इसी तर्ज पर अब कोर्ट ने कस्टम्स एक्ट की धारा 104 और जीएसटी एक्ट की धारा 132 को भी इसी श्रेणी में रखा है। इसका मतलब यह है कि अब जीएसटी और कस्टम्स अधिकारियों को भी गिरफ्तारी से पहले ठोस कारण बताना अनिवार्य होगा।
गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर किसी व्यक्ति को जीएसटी या कस्टम्स एक्ट के तहत गिरफ्तारी का अंदेशा है, तो उसे एफआईआर दर्ज होने तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है। वह पहले से ही अग्रिम जमानत की याचिका दायर कर सकता है। यह फैसला उन व्यापारियों और व्यवसायियों के लिए राहत लेकर आया है, जो बिना किसी ठोस आरोप के गिरफ्तारी के डर में रहते थे।
मनमानी शक्ति नहीं कर सकते अधिकारी इस्तेमाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीएसटी और कस्टम्स अधिकारी पुलिस अधिकारी नहीं हैं, इसलिए उन्हें पुलिस जैसी शक्ति का प्रयोग करने की अनुमति नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि तलाशी और जब्ती अभियान के दौरान किसी व्यक्ति को जबरदस्ती बयान देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। अगर किसी व्यक्ति पर दबाव डाला जाता है, तो वह अदालत की शरण में जा सकता है।
200 से अधिक याचिकाओं का निपटारा
इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 200 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई की। इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि जीएसटी और कस्टम्स एक्ट के तहत गिरफ्तारी प्रावधानों का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। कोर्ट ने इन सभी मामलों पर गहन विचार किया और निष्कर्ष निकाला कि इन अधिनियमों को नागरिकों को धमकाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
सरकार और व्यापारिक संगठनों की प्रतिक्रिया
इस फैसले के बाद व्यापारिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह फैसला व्यापारियों के अधिकारों की रक्षा करेगा और सरकारी एजेंसियों द्वारा की जा रही अनावश्यक परेशानियों को कम करेगा। वहीं, सरकारी अधिकारियों ने कहा कि वे कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हैं और आवश्यकतानुसार नई गाइडलाइंस जारी करेंगे।
भविष्य में क्या होगा असर?
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कानून प्रवर्तन एजेंसियों और व्यापारिक समुदाय दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस फैसले से व्यापारियों को मनमानी गिरफ्तारी से राहत मिलेगी और अधिकारियों को अपनी कार्रवाई से पहले उचित प्रक्रिया का पालन करना होगा। अब कोई भी गिरफ्तारी बिना ठोस कारण और लिखित दस्तावेजों के आधार पर नहीं की जा सकेगी।
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