सारांश: सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से EVM वेरिफिकेशन प्रक्रिया को लेकर जवाब मांगा है। कोर्ट ने बर्न मेमोरी और सिंबल लोडिंग यूनिट (SLU) के डेटा मिटाने और पुनः लोड करने पर सख्त आपत्ति जताई। चुनाव निगरानी संस्था ADR की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि वेरिफिकेशन प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए और 40,000 रुपये की वेरिफिकेशन फीस को भी ज्यादा बताया।


सुप्रीम कोर्ट ने EVM डेटा मिटाने पर चुनाव आयोग को लगाई फटकार, वेरिफिकेशन प्रक्रिया पर उठाए सवाल


सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब


चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (EC) को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की बर्न मेमोरी और सिंबल लोडिंग यूनिट (SLU) से जुड़ी वेरिफिकेशन प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने आयोग से स्पष्ट किया कि वेरिफिकेशन के दौरान किसी भी डेटा को मिटाया या दोबारा लोड नहीं किया जाना चाहिए।


यह मामला एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा दायर याचिका से जुड़ा हुआ है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि चुनाव आयोग की वर्तमान वेरिफिकेशन प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2024 के फैसले का पालन नहीं कर रही है।


EVM डेटा मिटाने पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती


मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने चुनाव आयोग के वेरिफिकेशन मैकेनिज्म की जांच करते हुए सवाल उठाए कि आयोग आखिर वेरिफिकेशन के दौरान डेटा को क्यों मिटा या दोबारा लोड कर रहा है।


CJI खन्ना ने स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा, "डेटा को न मिटाया जाए और न ही दोबारा लोड किया जाए। हमने सिर्फ यह कहा था कि एक योग्य इंजीनियर उम्मीदवारों की मौजूदगी में प्रमाणित करे कि माइक्रोचिप के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है।"


इस फैसले के बाद चुनाव आयोग को अपनी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना होगा ताकि भविष्य में EVM से जुड़े किसी भी विवाद से बचा जा सके।


मॉक पोल पर भी जताई आपत्ति


चुनाव आयोग द्वारा EVM की जांच के लिए "मॉक पोल" कराने की प्रक्रिया पर भी सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि मॉक पोल से यह साबित नहीं होता कि EVM में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि मॉक पोल, मशीन की फोरेंसिक जांच का विकल्प नहीं हो सकता।


प्रशांत भूषण ने कोर्ट से मांग की कि EVM की जांच एक स्वतंत्र विशेषज्ञ द्वारा की जाए ताकि हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके। उनका तर्क था कि बिना विस्तृत तकनीकी जांच के चुनाव प्रक्रिया पर जनता का भरोसा कमजोर हो सकता है।


EVM वेरिफिकेशन की फीस को बताया ज्यादा


सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग द्वारा EVM वेरिफिकेशन के लिए 40,000 रुपये शुल्क वसूलने पर भी सवाल उठाया। याचिकाकर्ताओं के वकील देवदत्त कामत ने कोर्ट को बताया कि एक EVM की कीमत 30,000 रुपये से भी कम है, ऐसे में वेरिफिकेशन शुल्क इतनी अधिक क्यों रखा गया है?


कोर्ट ने चुनाव आयोग से इस लागत को कम करने का निर्देश दिया और कहा कि वेरिफिकेशन की प्रक्रिया उम्मीदवारों के लिए सुलभ और पारदर्शी होनी चाहिए।


चुनाव आयोग को पारदर्शिता बढ़ाने की जरूरत


इस पूरे मामले से स्पष्ट होता है कि चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाए रखने के लिए सुधारों की जरूरत है। चुनाव आयोग को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि EVM वेरिफिकेशन में किसी भी तरह की गड़बड़ी न हो और यह प्रक्रिया अदालत के निर्देशों के अनुसार संचालित की जाए।


सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग इस पर क्या प्रतिक्रिया देता है और क्या बदलाव करता है।

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