राष्ट्रपति शासन (President's Rule) भारत के संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत एक असाधारण प्रावधान है, जिसका उपयोग तब किया जाता है जब किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाता है। इसके अंतर्गत, राज्य सरकार को भंग कर, उस राज्य के प्रशासन की पूरी ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार को सौंप दी जाती है। इस दौरान राज्य की विधायिका (Legislative Assembly) को निलंबित कर दिया जाता है और राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद को हटा दिया जाता है। राज्य के राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं।
राष्ट्रपति शासन के लागू होने के कारण
राष्ट्रपति शासन तब लागू किया जाता है जब:
- राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य करने में विफल रहती है।
- विधानसभा में स्थिर सरकार नहीं बन पाती या सरकार का बहुमत सिद्ध नहीं हो पाता।
- कानून और व्यवस्था की स्थिति गंभीर हो जाती है, जिससे राज्य में शासन चलाना असंभव हो जाता है।
- संविधान का उल्लंघन होता है या राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जो भारत की अखंडता, संप्रभुता और एकता के लिए खतरा पैदा करती है।
राष्ट्रपति शासन की प्रक्रिया
राज्यपाल की रिपोर्ट: राष्ट्रपति शासन की सिफारिश राज्यपाल द्वारा की जाती है, जो राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के बारे में राष्ट्रपति को रिपोर्ट देते हैं।
राष्ट्रपति की घोषणा: राष्ट्रपति राज्यपाल की रिपोर्ट या अन्य जानकारी के आधार पर अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की घोषणा करते हैं।
संसद की मंजूरी: राष्ट्रपति शासन की घोषणा के बाद, इसे संसद के दोनों सदनों से मंजूरी लेनी होती है। यदि संसद की मंजूरी प्राप्त नहीं होती, तो राष्ट्रपति शासन छह महीने के बाद स्वतः समाप्त हो जाता है।
अधिकतम अवधि: राष्ट्रपति शासन अधिकतम तीन वर्षों तक लागू रह सकता है, लेकिन इसके लिए प्रत्येक छह महीने पर संसद से मंजूरी लेनी होती है। तीन वर्ष से अधिक समय तक राष्ट्रपति शासन जारी रखने के लिए संविधान के अनुच्छेद 356(5) के तहत विशेष परिस्थितियों का होना आवश्यक है।
राष्ट्रपति शासन के प्रभाव
राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य में निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं:
राज्य विधायिका का निलंबन: राज्य की विधानसभा को निलंबित कर दिया जाता है, और विधानमंडल के सभी कार्य राष्ट्रपति द्वारा सीधे नियंत्रित होते हैं।
राज्यपाल की शक्ति में वृद्धि: राज्य के प्रशासन की ज़िम्मेदारी राज्यपाल के हाथों में होती है, जो राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं।
केंद्र का सीधा नियंत्रण: राज्य में केंद्र सरकार का सीधा हस्तक्षेप होता है, और राज्य के सभी प्रशासनिक कार्य केंद्र सरकार के अधीन होते हैं।
आलोचना और न्यायिक समीक्षा
राष्ट्रपति शासन को लेकर समय-समय पर आलोचनाएं भी होती रही हैं। इसे कई बार राजनीतिक कारणों से इस्तेमाल किए जाने के आरोप लगे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने "एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ" मामले (1994) में यह फैसला दिया कि राष्ट्रपति शासन की न्यायिक समीक्षा हो सकती है, और यह देखा जा सकता है कि राष्ट्रपति शासन लगाने के पीछे के कारण संवैधानिक हैं या नहीं।
निष्कर्ष
राष्ट्रपति शासन भारत के संघीय ढांचे का एक महत्वपूर्ण लेकिन असाधारण प्रावधान है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने की स्थिति में केंद्र सरकार हस्तक्षेप कर सके। हालांकि, इसका उपयोग सावधानीपूर्वक और संविधान के दायरे में रहकर ही किया जाना चाहिए।