सारांश : पश्चिम बंगाल में एक बार फिर राष्ट्रपति शासन की अटकलें तेज हो गई हैं, खासकर कोलकाता में डॉक्टर के साथ हुई बलात्कार और हत्या की घटना के बाद। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के इस मामले पर गहरी चिंता व्यक्त करने के बाद, बंगाल में राजनीतिक माहौल गर्म हो गया है। बीजेपी और ममता बनर्जी के बीच बढ़ते तनाव से राज्य में संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। कांग्रेस की आलोचना के बीच, क्या बीजेपी उसी नीति का अनुसरण कर रही है, जिसे कांग्रेस ने वर्षों से लागू किया था? बंगाल में संभावित राष्ट्रपति शासन के मुद्दे पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।

West Bengal : में President's Rule की चर्चा : Mamata Banerjee की सत्ता पर संकट के बादल


पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की चर्चा: ममता बनर्जी की सत्ता पर संकट के बादल


पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की संभावनाओं पर एक बार फिर चर्चा गर्म हो गई है। यह चर्चा तब शुरू हुई जब कोलकाता में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना के बाद राज्य भर में उबाल आ गया। यह घटना न केवल पश्चिम बंगाल बल्कि पूरे देश में गहरे आक्रोश का कारण बनी है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस घटना पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की है, जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है।


राजनीतिक उठापटक के बीच बंगाल की सियासत गरमाई


पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा और अपराध की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं। राज्य में पहले भी कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जो राज्य की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाती रही हैं। कोलकाता में हुई इस घटना के बाद राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने दिल्ली में राष्ट्रपति और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की, जिससे राज्य में राष्ट्रपति शासन की संभावनाओं पर अटकलें तेज हो गईं।


बीजेपी लगातार राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रही है। पार्टी का मानना है कि ममता बनर्जी की सरकार राज्य की कानून व्यवस्था को बनाए रखने में विफल रही है। वहीं, दूसरी ओर, ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) इस मुद्दे पर भाजपा पर राजनीति करने का आरोप लगा रही है।


बलात्कार: सियासत से परे एक गंभीर मुद्दा


बलात्कार एक ऐसा अपराध है जो न केवल पीड़िता बल्कि पूरे समाज के लिए शर्मसार करने वाला होता है। इसके बावजूद, इस मुद्दे पर राजनीति करने का चलन सा हो गया है। बीजेपी और विपक्षी दल, दोनों ही इस मुद्दे को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे नेताओं ने इस संवेदनशील मुद्दे को भी दलगत राजनीति का हिस्सा बना दिया है।


राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस घटना पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि हम समाज में फैली इस मानसिकता के खिलाफ लड़ाई लड़ें, जो महिलाओं को कमतर समझती है। राष्ट्रपति का यह बयान स्पष्ट रूप से दिखाता है कि वह इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से लेती हैं और इससे जुड़े सियासी खेल से परे एक सामाजिक चेतना जागृत करने की आवश्यकता पर जोर देती हैं।


क्या ममता बनर्जी की कुर्सी खतरे में है?


ममता बनर्जी की सरकार पर खतरा मंडरा रहा है, यह चर्चा अब हर राजनीतिक मंच पर सुनाई दे रही है। बीजेपी के नेता लगातार ममता बनर्जी से इस्तीफा मांग रहे हैं और उन पर आरोप लगा रहे हैं कि उनकी सरकार राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने में पूरी तरह से विफल रही है।


वहीं, ममता बनर्जी भी इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठी हैं। उन्होंने बीजेपी पर तीखे हमले करते हुए कहा है कि बीजेपी शासित राज्यों में हो रही घटनाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता और केवल विपक्षी शासित राज्यों में ही राजनीति की जाती है। ममता बनर्जी की यह प्रतिक्रिया उनके भीतर के भय को भी दिखाती है कि कहीं राष्ट्रपति शासन लगाकर उनकी सरकार को गिराने की कोशिश न की जाए।


कांग्रेस की नीतियों का अनुसरण कर रही है बीजेपी?


भारत में कांग्रेस ने अपने लंबे शासनकाल में कई बार राज्यों की सरकारों को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाया था। अब कांग्रेस के नेता यह आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी उसी नीति का अनुसरण कर रही है।


संविधान के अनुच्छेद 355 और 356 के तहत केंद्र सरकार को यह शक्ति प्राप्त है कि वह राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ने पर राष्ट्रपति शासन लगा सकती है। यदि ममता बनर्जी की सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है, तो ममता बनर्जी के पास कोर्ट का सहारा लेने का विकल्प होगा।


बंगाल में राष्ट्रपति शासन का इतिहास


पश्चिम बंगाल में अब तक चार बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है। आखिरी बार 29 जून 1971 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा था। इसके पहले भी 1962, 1968, और 1970 में बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।


बंगाल में एक बार फिर इस संभावित संवैधानिक संकट के बीच, ममता बनर्जी को न केवल अपने राजनीतिक विरोधियों से बल्कि केंद्र सरकार से भी कड़ा मुकाबला करना होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि ममता बनर्जी इस संकट से कैसे निपटती हैं और क्या वह इस राजनीतिक खेल में अपनी सत्ता बचा पाती हैं या नहीं।

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