सारांश : रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को पीएम मोदी ने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है। भारत वैश्विक शांति के प्रयासों में मध्यस्थता की भूमिका निभाने के लिए तत्पर है। डोभाल की मास्को यात्रा को लेकर विश्व की निगाहें भारत पर टिकी हैं। क्या भारत इस संघर्ष को सुलझाने में सफल होगा?
भारत को हमेशा से शांति और कूटनीति का समर्थक माना गया है। वैश्विक संघर्षों को हल करने के प्रयासों में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। इस बार फिर दुनिया की निगाहें भारत पर टिकी हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने प्रमुख राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल को रूस-यूक्रेन संघर्ष को सुलझाने के लिए भेजा है। यह संघर्ष, जो अब तक कई लोगों की जान ले चुका है और विश्व राजनीति को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है, इसे शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त करने की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले कुछ महीनों में रूस और यूक्रेन दोनों के नेताओं से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की है। यूक्रेन की अपनी हालिया यात्रा के दौरान, मोदी ने राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की से मुलाकात की और युद्धविराम के लिए चर्चा की। इसके बाद प्रधानमंत्री ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी फोन पर वार्ता की और उन्हें शांति स्थापना के प्रयासों के बारे में अवगत कराया। दोनों देशों के नेताओं से संवाद के बाद यह निर्णय लिया गया कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मास्को जाएंगे और शांति वार्ता का नेतृत्व करेंगे।
भारत की भूमिका और वैश्विक उम्मीदें
यह पहली बार नहीं है जब भारत ने रूस-यूक्रेन संघर्ष में मध्यस्थता की कोशिश की हो। पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत ने हमेशा शांति और कूटनीति के माध्यम से स्थायी समाधान की वकालत की है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भारत इस संघर्ष के शांतिपूर्ण और स्थायी समाधान के लिए प्रतिबद्ध है। इस दिशा में भारत का योगदान विश्व के नेताओं द्वारा सराहा जा रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को दो भागों में बांट दिया है, जहां अधिकांश बड़े देशों ने किसी एक पक्ष का समर्थन किया है। हालांकि, भारत ने शुरू से ही शांति का समर्थन किया है और दोनों देशों के साथ संपर्क बनाए रखा है। इस स्थिति में, अजीत डोभाल की मास्को यात्रा विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि उन्हें इस जटिल संघर्ष को सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
प्रधानमंत्री मोदी का संवाद
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी यूक्रेन यात्रा के तुरंत बाद 27 अगस्त को पुतिन से फोन पर बातचीत की। इस वार्ता के दौरान, मोदी ने पुतिन को कीव की अपनी यात्रा और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से हुई बातचीत के बारे में जानकारी दी। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि भारत राजनीतिक और कूटनीतिक माध्यमों से यूक्रेन संकट का समाधान लाने के लिए प्रतिबद्ध है।
रूसी दूतावास द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि इस फोन कॉल के दौरान पुतिन ने यूक्रेन के पश्चिमी समर्थकों की नीतियों को लेकर अपना दृष्टिकोण साझा किया और रूस की रणनीति पर प्रकाश डाला। भारत ने भी जोर देकर कहा कि संघर्ष का समाधान केवल संवाद और कूटनीति के माध्यम से ही संभव है, और इसके लिए सभी हितधारकों के बीच ईमानदारी से जुड़ाव आवश्यक है।
भारत की मध्यस्थता की संभावनाएं
रूस और यूक्रेन दोनों देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध होने के कारण, यह उम्मीद जताई जा रही है कि भारत इस संघर्ष के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भारत उन कुछ देशों में शामिल है, जिनके साथ रूस इस संघर्ष को लेकर लगातार संपर्क में है। पुतिन ने चीन, ब्राजील और भारत को अपने प्रमुख साझेदारों के रूप में देखा है, जो इस मुद्दे को हल करने के लिए गंभीर प्रयास कर रहे हैं।
इटली के प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने भी भारत की भूमिका की प्रशंसा की और कहा कि चीन और भारत जैसे देशों की भूमिका इस संघर्ष को सुलझाने में अहम हो सकती है। इससे स्पष्ट है कि दुनिया भारत की कूटनीतिक ताकत को मान्यता दे रही है और उम्मीद कर रही है कि भारत इस संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान लाने में सफल होगा।
अजीत डोभाल की मास्को यात्रा
अजीत डोभाल की मास्को यात्रा का समय बेहद महत्वपूर्ण है। हालांकि इस यात्रा का विस्तृत कार्यक्रम अभी तक सार्वजनिक नहीं हुआ है, लेकिन यह माना जा रहा है कि डोभाल वहां शांति वार्ता में एक प्रमुख भूमिका निभाएंगे। उनकी कूटनीतिक सूझ-बूझ और अनुभव को देखते हुए, उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। डोभाल ने पहले भी कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को सफलतापूर्वक संभाला है, और यह यात्रा उनके लिए एक और महत्वपूर्ण कदम हो सकती है।
भारत का कूटनीतिक दृष्टिकोण
प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि यह युद्ध का समय नहीं है। उन्होंने रूस-यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के लिए कूटनीति और संवाद को प्राथमिकता दी है। जब मोदी ने जुलाई में रूस की यात्रा की थी और राष्ट्रपति पुतिन से मिले थे, तब उन्होंने जोर देकर कहा था कि शांति ही इस समस्या का एकमात्र समाधान है।
दूसरी ओर, ज़ेलेंस्की ने भी रूस द्वारा किए गए हमलों का कड़ा विरोध किया और यह उल्लेख किया कि भारत जैसे बड़े लोकतंत्र के नेता को इस संघर्ष में शांति के पक्ष में बोलने की जरूरत है। दोनों पक्षों के नेताओं के साथ भारत के संबंधों को देखते हुए, भारत की भूमिका इस संघर्ष में निर्णायक हो सकती है।
निष्कर्ष:
रूस-यूक्रेन संघर्ष का समाधान अब विश्व की प्रमुख चिंताओं में से एक है। वैश्विक राजनीति पर इस युद्ध का गहरा प्रभाव पड़ा है, और इस स्थिति में भारत की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति और अजीत डोभाल की मास्को यात्रा से यह उम्मीद बढ़ गई है कि भारत इस संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत ने पहले भी वैश्विक मंचों पर शांति स्थापना के प्रयास किए हैं, और इस बार भी दुनिया भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही है।
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