सारांश : भारत में जनवरी 2025 के बाद जनगणना की संभावनाएं तेज हैं, जिससे देश का राजनीतिक परिदृश्य भी बदल सकता है। इस जनगणना से सीटों का पुनर्निर्धारण, महिला आरक्षण, और नई राजनीतिक समीकरणों की संभावना है, जो 2029 के चुनावों में अहम भूमिका निभाएंगे।
भारत में जनगणना को लेकर हलचल शुरू हो गई है, और अनुमान है कि केंद्र सरकार जनवरी 2025 के बाद इसे शुरू करने की घोषणा कर सकती है। 2020 में होने वाली यह जनगणना कोरोना महामारी और अन्य राजनीतिक कारणों से कई बार टल चुकी है। अब सरकार द्वारा दिसंबर 2024 तक सभी राज्यों को अपनी सीमाएं सुधारने की समय सीमा दी गई है। इस बार की जनगणना से सिर्फ जनसंख्या के आंकड़े ही नहीं, बल्कि राजनीतिक समीकरण भी बदलने की संभावना है।
जनगणना और इससे जुड़े मुद्दों ने राजनीतिक गलियारों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जैसे – क्या जनगणना में जातियों की गिनती होगी? इसके अलावा, इस जनगणना से परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होने की उम्मीद है, जो देश के निर्वाचन क्षेत्रों और सीटों की संख्या में बदलाव ला सकती है।
क्या होगी जातिगत जनगणना?
इस बार के जनगणना में सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि क्या जातिगत गिनती भी की जाएगी। विपक्षी पार्टियां लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रही हैं। वर्तमान में संविधान के अनुसार, केवल नाम, जेंडर और उम्र जैसी जानकारी ही ली जाती है। जातिगत जनगणना के लिए नियमों में बदलाव जरूरी है। सरकार इस पर अपना रुख साफ नहीं कर पाई है, और इस फैसले की घोषणा केवल जनगणना के आधिकारिक आदेश के साथ ही हो सकती है।
जनगणना का राजनीतिक असर
जनगणना का मुख्य उद्देश्य सरकारी योजनाओं को बेहतर बनाने के लिए जनसंख्या आंकड़ों को इकट्ठा करना होता है, लेकिन इसके साथ ही राजनीतिक बदलाव भी देखने को मिल सकते हैं।
1. परिसीमन की दिशा में कदम
परिसीमन का मतलब चुनाव क्षेत्रों की सीमा निर्धारण प्रक्रिया है। जनगणना के डेटा के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी। वर्तमान में परिसीमन 2026 तक स्थगित है, लेकिन नई जनगणना से यह प्रक्रिया फिर से शुरू हो सकती है। इससे लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या में बदलाव संभव है, जिससे देश की राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं।
2. सीटों की संख्या में बढ़ोतरी
लोकसभा और विधानसभा सीटों का पिछला परिसीमन 2008 में किया गया था, जो केवल सीमाओं के पुनर्निर्धारण तक सीमित था। जबकि 1976 के बाद से सीटों की संख्या में बदलाव नहीं किया गया है। उस समय भारत की आबादी 50 करोड़ थी, जबकि आज यह आंकड़ा करीब 150 करोड़ है। ऐसे में कई नेताओं, विशेषकर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, ने सीटों की संख्या बढ़ाने की मांग की है। लोकसभा में 1000 सीटों तक की संभावना पर भी चर्चा हो रही है। इससे राज्यों में भी विधानसभा सीटों की संख्या में इजाफा होने की उम्मीद है।
3. महिला आरक्षण बिल का प्रभाव
महिला आरक्षण बिल को भी लागू करने में जनगणना और परिसीमन का महत्वपूर्ण योगदान है। 16वीं लोकसभा के दौरान इस विधेयक को मंजूरी मिली थी, जिसके अनुसार लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की जानी हैं। अगर परिसीमन होता है, तो यह विधेयक लागू हो सकेगा। इससे महिलाओं की भागीदारी में बड़ा इजाफा होगा, जो भारतीय राजनीति में एक नई दिशा और दशा देगा।
4. जनसंख्या के आधार पर हिस्सेदारी
जनगणना के बाद उत्तर और दक्षिण भारतीय राज्यों में आबादी के आधार पर हिस्सेदारी को लेकर भी राजनीति गरमा सकती है। दक्षिण भारतीय राज्यों का दावा है कि उनकी कर अदायगी ज्यादा है, जबकि उन्हें केंद्र से अनुपातिक लाभ नहीं मिलता। ऐसे में जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, यदि उत्तर भारत की आबादी बढ़ी हुई पाई जाती है, तो हिस्सेदारी की मांग बढ़ सकती है।
जनगणना और परिसीमन की समय-सीमा
ऐसी संभावना है कि 2029 के लोकसभा चुनावों से पहले जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो जाए। यदि 2025 में जनगणना को स्वीकृति मिलती है, तो इसे होने में लगभग दो साल का समय लगेगा। इसके बाद परिसीमन की प्रक्रिया में भी एक साल लग सकता है।
इस प्रकार, 2029 के चुनाव तक देश का राजनीतिक नक्शा पूरी तरह से बदल सकता है। जनगणना और परिसीमन के बाद भारत की राजनीति में महिलाओं, आबादी आधारित हिस्सेदारी और जातिगत संरचनाओं पर जोर बढ़ने की संभावना है, जो कि भारतीय राजनीति में नए अध्याय की शुरुआत होगी।
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