सारांश : राज्यसभा उपचुनाव के परिणामों ने एनडीए को 10 साल बाद राज्यसभा में बहुमत दिलाया है। भाजपा ने 9 सीटें और उसके सहयोगी दलों ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की। विपक्ष को केवल एक सीट पर सफलता मिली। एनडीए की कुल सीटें 112 पर पहुंच गईं, जो बहुमत के लिए जरूरी 119 सीटों से कम हैं, फिर भी गठबंधन ने बहुमत कैसे प्राप्त किया, आइए जानते हैं।
राज्यसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी दलों ने एक बार फिर अपनी मजबूती साबित की है। 12 सीटों पर हुए इन चुनावों में भाजपा ने 9 सीटों पर विजय हासिल की, जबकि उसके सहयोगी दलों ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की। दूसरी ओर, विपक्षी दलों को मात्र एक सीट पर संतोष करना पड़ा। इस जीत के साथ एनडीए की राज्यसभा में कुल सीटें 112 हो गईं, जो बहुमत के लिए आवश्यक 119 सीटों से कुछ कम हैं। बावजूद इसके, एनडीए ने बहुमत प्राप्त कर लिया है। इस अद्भुत जीत के पीछे का कारण क्या है, इसे समझने के लिए हमें राज्यसभा की संरचना और चुनावी समीकरणों पर नजर डालनी होगी।
एनडीए की जीत के पीछे की रणनीति:
राज्यसभा में कुल 245 सीटें होती हैं, जिनमें से 8 सीटें इस समय खाली हैं। इनमें 4 सीटें जम्मू-कश्मीर से हैं, जो विधानसभा भंग होने के कारण रिक्त हैं, और 4 सीटें मनोनीत सदस्य की हैं। वर्तमान में एनडीए के पास 112 सीटें हैं, जिसमें 96 सीटें भाजपा की और 16 सीटें उसके सहयोगी दलों की हैं। हालांकि, बहुमत के लिए 119 सीटों की आवश्यकता होती है, लेकिन एनडीए ने 6 मनोनीत सदस्यों और 1 निर्दलीय सदस्य के समर्थन से बहुमत हासिल कर लिया है। यह राजनीतिक चालबाजी एनडीए को राज्यसभा में स्वतंत्र रूप से कार्य करने की शक्ति प्रदान करती है।
भाजपा के विजेता उम्मीदवार:
इन उपचुनावों में भाजपा ने कई राज्यों में अपने उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की। राजस्थान से रवनीत सिंह दुबे, हरियाणा से किरण चौधरी, मध्य प्रदेश से जॉर्ज कुरियन, बिहार से मनन कुमार मिश्रा, असम से रामेश्वर तेली, महाराष्ट्र से धैर्यशील पाटिल, ओडिशा से ममता मोहंता, और त्रिपुरा से राजीव भट्टाचार्या ने जीत हासिल की। इन सभी ने भाजपा की चुनावी रणनीति और संगठन की ताकत को दर्शाया।
सहयोगी दलों का समर्थन:
एनडीए के सहयोगी दलों ने भी इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एनसीपी (अजित पवार गुट) से नितिन पाटिल और राष्ट्रीय लोक मोर्चा से उपेंद्र कुशवाहा ने अपने-अपने क्षेत्रों में विजय प्राप्त की। इन दलों का समर्थन एनडीए के लिए निर्णायक साबित हुआ है।
विपक्ष का संघर्ष:
विपक्षी दलों की स्थिति इस उपचुनाव में कमजोर रही। कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी ने तेलंगाना से जीत हासिल की, लेकिन यह जीत विपक्ष के लिए सांत्वना से अधिक कुछ नहीं है। विपक्ष की एकमात्र जीत ने उनके राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखा है, लेकिन एनडीए के सामने उनकी चुनौती कमजोर पड़ती दिखाई दी।
राज्यसभा में एनडीए की नई ताकत:
2014 के बाद पहली बार एनडीए को राज्यसभा में बहुमत हासिल हुआ है। पिछले 10 सालों में, एनडीए को राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण कई विधेयकों और प्रस्तावों के पास होने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। लेकिन अब, बहुमत के साथ एनडीए किसी भी विधेयक या प्रस्ताव को बिना किसी बाधा के पास करा सकता है। यह जीत एनडीए के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो आने वाले समय में उनके लिए लाभकारी साबित हो सकती है।
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